अंकित द्विवेदी | नवप्रवाह डॉट कॉम
नई दिल्ली | कोरोना की दवाई बनाना और उसका पूरे ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार करना बाबा रामदेव को मंहगा पड़ता नज़र आ रहा है। मंगलवार को पतञ्जलि योगपीठ ने कोरोना की दवाई कोरोनिल बनाने की घोषणा की, उसके कुछ समय बाद ही भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने इस पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए इसका प्रचार तत्काल प्रभाव से बंद करने की बात कह दी। आज केंद्र सरकार के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने बाबा की कंपनी को नोटिस भेज दिया।
उत्तराखण्ड आयुर्वेद विभाग के लाइसेंस अफसर वाई एस रावत ने कहा कि पतञ्जलि के कोरोना की दवा बनाने के दावे पर केंद्रीय आयुष मंत्रालय के रिपोर्ट मांगने के बाद उत्तराखंड सरकार के आयुर्वेद विभाग ने पतंजलि के दावों को गलत बताते हुए नोटिस जारी किया है। रावत ने स्पष्ट किया कि पतञ्जलि को कोरोना की दवा बनाने का कोई लाइसेंस जारी नहीं किया गया है।
१० जून को पतञ्जलि ने ३ प्रोडक्ट्स इम्युनिटी बूस्टर, खांसी और बुखार के प्रोडक्ट के लिए आवेदन दिया था। १२ जून को अप्रूवल दिया गया, पर उसमें कहीं भी कोरोना इलाज की दवा का जिक्र नहीं था।
ज़ाहिर है, सरकार द्वारा जारी इस नोटिस से बाबा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। साथ ही एक प्रश्नचिह्न ये भी भी लग गया कि क्या बाबा ने कोरोना की दवाई के उत्पादन के लिए किसी सरकारी तंत्र को इसकी सूचना देना ज़रूरी नहीं समझा। पतञ्जलि ट्रस्ट से नोटिस के ज़रिये यह पूछा गया है कि कोरोना किट समाचार चैनलों पर दिखाने की परमिशन ट्रस्ट को कहाँ से मिली।
उत्तराखण्ड आयुर्वेद विभाग के लाइसेंस अफसर वाई एस रावत ने बताया कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के नियम 170 के तहत उत्पाद का विज्ञापन करने के लिए लाइसेंस अथॉरिटी से परमिशन लेनी होती है। DMRI 1954 के अंतर्गत इस तरह के क्लेम करना वैधानिक नहीं है।