नीति आयोग की सूची में बिहार का नाम नीचे आया है।
ये खेदजनक है, मेरी अपनी समझ, अनुभव और जानकारी से मानना है कि बिहार में अन्तराष्ट्रीय धार्मिक पर्यटन और नॉलेज इकॉनमी बनने की संभावना जितनी है, उतनी संभावना शायद ही अन्य राज्यों में हो। बिहार के आगे बढ़ने के लिए कुछ बातें जो बेहद जरुरी है।
बिहार में 38 जिले है लेकिन सारा प्रमुख कार्य पटना और उसके आस-पास हुआ है। इस केन्द्रीयकरण प्रवृत्ति से बचते हुए बिहार के मोतीहारी, गया, भागलपुर, गोपालगंज, छपरा, किशनगंज, कटिहार, नांलदा, समस्तीपुर जैसे जिलो पर व्यापक रुप से व्यवस्थित शहरीकरण और बुनियादी ढांचे को विकसित किया जाये। राष्ट्रीय व राज्य स्तर के शिक्षा, चिकित्सा व अन्य संस्थानों की स्थापना के लिए भी पटना के बाहर के जिलों को वरीयता दी जाये। विकेन्द्रीकरण बढ़ने से पटना से दबाव कम होगा और पटना से बाहर के लोगों के लिए पटना आने की मजबूरी घटेगी। क्षेत्रीय असमानता और पिछड़ापन खत्म होगा।
आस्था व संस्कृति का केंद्र बिहार
बिहार में जैन व बौद्व धर्म की उत्पति हुई है, सिख धर्म की जड़े है, हिन्दू धर्म बहुसंख्यक है। मुस्लिम सबसे बड़े अल्पसंख्यक है। बिहार में धार्मिक पर्यटन और अर्थव्यवस्था की पर्याप्त संभावना है लेकिन इस क्षेत्र में पूरी योजना के साथ विजन के साथ काम करने की आवश्यकता है।
इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा काम होना चाहिये था। धार्मिक स्थलों को तीर्थाटन के लिए विकसित करना होगा, व्यवस्थित धर्मशालाएं, होटल, सड़क, खान-पान की सुविधा, यातायात का विकास करना होगा, आतिथ्य और सत्कार की भावना को अपनाना होगा, बेवकूफ बना कर लूट लेने की मंशा को त्यागना होगा, तंत्र सुविधाप्रदायक विकसित करना होगा। दूसरे राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए नांलदा, केसरिया, वैशाली अजूबा है, सीतामढ़ी आस्था है और जब वे यहां आते है और उन्हें वैसा दर्शन नहीं मिलता जैसा उन्होंने सोचा था तो ये बहुत गलत संदेश जाता है।
श्रेष्ठ दिमागों को तैयार करें
बिहार के युवा जो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, बंगाल और दिल्ली में उच्च शिक्षा के लिए जा रहे है, उनको वो उच्च शिक्षा यहीं देने के लिए बुनियादी ढांचा बनाना होगा, ऐसे में बिहार का रुपया भी बिहार से बाहर जाने से रुकेगा और इस रुपये से ही बिहार के भीतर ही शिक्षा के बुनियादी ढांचे का विकास होगा, नॉलेज इकॉनमी होने से बिहार के बाहर के लोग भी बिहार पढ़ने आयेंगे जैसे नांलदा के समय आया करते थे। बिहार भारत के श्रेष्ठ दिमागों को तैयार कर विकसित कर राष्ट्र निर्माण में भेजे, ऐसा होना चाहिए।
बिहार में जेजे स्कूल आफ आर्ट्स जैसे स्कूल खोले जाये ताकि मिथिला पेंटिग, पटना कलम को युवा पेशे के तौर पर अपना सकें। फैशन टेक्नोलॉजी, डिजाइन टेक्नोलॉजी, रिसर्च इंस्ट्रीटयूट , फिल्म इंस्टीटयूट, नाट्य संस्थान , संगीत संस्थान खोले जाये ताकि युवाओं को सरकारी बाबू बनने के अलावा कुछ और बनने और समझने का मौका मिले। नये नवाचारों का भरपूर मौका मिले।
तरीके में सुधार व सजगता की जरूरत
सबसे जरुरी बात लोगों को अपने तरीके में सुधार लाना होगा, जो भी राज्य आगे है, वे इसलिए आगे है क्योंकि वहां की जनता ज्यादा जिम्मेदार है, जनता जितनी जिम्मेदार, शासन-प्रशासन उतना प्रभावी और विजनरी हो जाता है। इंदौर का नाम या छत्तीसगढ़ के अंबीकापुर का नाम स्वच्छता में ऊपर आता है तो इसका कारण वहां के नागरिक है। इसलिए नागरिक जितने सजग, प्रगति उतनी ही ज्यादा।
ऐसे में दूसरों को मूर्ख मानने वाली ऐतिहासिक श्रेष्ठता की भावना से हटना होगा, सिविक सेंस विकसित करना होगा, सामाजिक द्वंद्व से उपजी जटिलता को छोड़कर साधारण बनना होगा, इसके अलावा लोगों को रचनात्मक रुप से कार्य करने वाला बनना पड़ेगा, अपनी कमियों में सुधार करने वाला बनना पड़ेगा और ऐसा हर व्यक्ति को करना पड़ेगा। तभी धीरे-धीरे बड़ा बदलाव आयेगा।
निश्चित तौर पर ये एक लंबी प्रक्रिया है लेकिन आज से ही शुरु किया जाये तो अगले ही कुछ वर्षो में तस्वीर कुछ और होगी।
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