इंडिया टुडे टीवी की रिपोर्टर इलमा हसन के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बेहद बदसलूकी की गई। दरअसल ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम छात्राओं की प्रतिक्रिया जानने पहुंची इलमा हसन ने जब वहां कुछ छात्राओं से सवाल पूछने शुरू किए, और जब एक छात्रा ने जवाब देना शुरू ही किया था कि कुछ स्थानीय लड़के आकर इलमा के साथ बदतमीजी करने लगे। लड़कों ने इलमा से पीआरओ की परमिशन का लेटर मांगना शुरू कर दिया।
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बकौल इलमा पहले दो तीन लड़के थे, फिर देखते ही देखते ये संख्या पंद्रह बीस तक जा पहुंची। निडर इलमा ने किसी प्रकार अपना बचाव किया। कुछ अन्य मीडिया कर्मियों ने इलमा को उस परिस्थिति से बाहर निकाला। चैनल को ये घटना बताते हुए इलमा ने जिक्र किया कि पीआरओ को उन्होंने फोन किया था लेकिन उनका फोन नहीं उठाया गया।
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सोचने वाली बात ये है कि तीन तलाक़ मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। देश की मुस्लिम महिलाओं में एक ओर जहां खुशी की लहर दौड़ रही है वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं। विरोध इस बात का है कि सरकार भाजपा की है और मामला मजहब विशेष का। अब चूंकि भाजपा का हिंदुत्व एजेंडा उसे मुस्लिम समुदाय के विपरीत रखता आया है इसलिए ये भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है कि इस्लामिक नियमों से कोई छेड़छाड़ की जाये। ये विरोध कुछ दकियानूसी सोच के लोग ही कर रहे हैं। बाकी प्रगतिशील सोच का मुसलमान हो या हिन्दू सभी ने माननीय उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को सम्मान पूर्वक स्वीकार किया है।
इलमा हसन के साथ हुई बदसलूकी से एक बात तो स्पष्ट है कि सरकार को पत्रकारों के साथ बढ़ती बदसलूकी की घटनाओं के प्रति अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। पत्रकार संघों को इसके प्रति गंभीरता पूर्वक विचार भी करना चाहिए।