एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को लेकर एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने रेप, यौन उत्पीड़न और छेड़खानी़ के मामले को जेंडर न्यूट्रल बनाए जाने वाली याचिका को शुक्रवार को खारिज करते हुए कहा कि यह एक ‘‘काल्पनिक स्थिति’’ है और महिलाओं पर रेप और छेड़छाड़ का मामला नहीं चल सकता है। इस अर्जी को खारिज करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़ की पीठ ने कहा कि कोर्ट इस मामले में कुछ नहीं कर सकती, अगर संसद चाहे तो सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखकर इस पर विचार कर सकती है।
अपने फैसले में शुक्रवार को कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भारतीय दंड सहिंता (आईपीसी) की धारा 354 और 375 में दुष्कर्म और छेड़छाड़ की वारदात को परिभाषित किया गया है। साथ ही इन सभी धाराओं में साफ तौर पर स्पष्ट किया गया है कि इस तरह के मामलों में सिर्फ महिलाएं ही पीड़ित हो सकती हैं। जबकि पुरुष अपराधी याचिकाकर्ता ने कहा कि दुष्कर्म और छेड़छाड़ की वारदातों में किसी तरह का कोई भी लिंग भेद नहीं हो सकता है। इस तरह के मामलों में लिंग भेद नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसा आवश्यक नहीं है कि हर मामले में पुरुष ही अपराधी हो, क्योंकि कई बार महिलाएं भी अपराध में संलिप्त हो सकती हैं।
सुनवाई के दौरान अर्जी खारिज करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़ की संयुक्त पीठ ने कहा कि यह एक ‘‘काल्पनिक स्थिति’’ है और सामाजिक जरूरतों के मुताबिक संसद इस पर विचार कर सकती है । बहरहाल , पीठ ने यह भी कहा कि संसद चाहे तो कानून में ऐछिक बदलाव कर सकती है और न्यायालय इसमें दखल नहीं दे सकता। इसके बाद याचिकाकर्ता वकील ऋषि मल्होत्रा ने कोर्ट में कहा कि कानून किसी पुरुष के खिलाफ भेदभावपूर्ण नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ‘‘अपराध का कोई लिंग नहीं होता और न ही कानून लिंग आधारित होना चाहिए। आईपीसी में किसी शख्स की ओर से इस्तेमाल किए गए शब्दों को हटाया जाना चाहिए। कानून अपराधियों के बीच भेदभाव नहीं करता और अपराध को अंजाम देने वाले हर शख्स को सजा मिलनी चाहिए, चाहे वह पुरुष हो या महिला हो।’’
इस केस में बड़ा मोड़ तब आया, जब कार्यवाही के दौरान न्यायालय ने कहा, ‘‘आप कह रहे हैं कि एक महिला भी किसी पुरुष का पीछा कर सकती है। क्या आपने किसी महिला को शिकायत दाखिल करते देखा है, जिसमें वह कह रही हो कि किसी और महिला ने उससे बलात्कार किया या उसका पीछा किया? यह एक काल्पनिक स्थिति है। सामाजिक जरूरतों के मुताबिक संसद चाहे तो कानून में बदलाव कर सकती है।’’