शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान, 70 हज़ार करोड़ ख़र्च करने के बावजूद क्यों नहीं हो पा रहा सुधार!

सौम्या केसरवानी,

शैक्षिक मामले पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार है कि “शिक्षा से समाज और देश को निखारा जा सकता है” अर्थात शिक्षा ही वह कुंजी है, जिसकी मदद से आप किसी राष्ट्र का चरित्र निर्माण कर सकते हैं।

शिक्षा से समाज की दिशा तय होती है। वर्तमान में भारत की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है। आज़ादी के समय में यही दर 16 प्रतिशत के करीब थी। उस समय देश की जनसंख्या भी बहुत कम थी। हिन्दुस्तान में जीडीपी का कुल 4.3 प्रतिशत शिक्षा के ऊपर ख़र्च किया जाता है, कई देशों के मुकाबले में यह राशि बहुत ही ज़्यादा है।

भारत में शिक्षा को लेकर कई कानून बने हुए हैं। भारतीय संविधान के अनुसार 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को सरकार नि:शुल्क व अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा प्रदान करेगी। इसके अलावा सरकारी संस्थानों में बहुत कम फीस की व्यवस्था की गई है। देश में कई ऐसे संस्थान हैं, जहां छात्र आसानी से पढ़ सकते हैं।

100 बात की एक बात ये है कि शिक्षा से बेरोजगारी और अपराध जैसी समस्याओं को क्यों नहीं दूर किया जा रहा है। एक कदम तो हमने मंगल पर बढ़ा दिया, मगर दूसरा कदम अभी भी नाले में है!

देश में बेरोजगारी और अपराधिक मामलों का बढ़ना, ये दर्शाता है कि शिक्षा के मामले में हम अभी भी बहुत पीछे हैं। सरकार मिड-डे मील और आंगनवाड़ी जैसे कार्यक्रमों की मदद से एक कोशिश ज़रुर कर रही है। लेकिन दुख की बात ये है कि ये बस अधिकारियों के निवाले बनकर रह गए हैं।

इंजीनियर्स, डॉक्टर्स, नर्सेस और कुशल कारीगरों ने विदेशों में सफ़लता के झंडे गाड़ दिए, मगर हमारी नींव अभी भी कमज़ोर है। इसलिए समय रहते हमें इस पर ग़ौर करने की ज़रुरत है।

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