आनंद द्विवेदी,
उत्तर प्रदेश के चुनावों के पहले ‘समान नागरिकता संहिता’ के मुद्दे की आग पर घी डाला गया है, जिसके चलते देश का सियासी माहौल फिर गरमाया हुआ है। देश को आज़ाद हुए 68 वर्ष हो गये, लेकिन किसी भी सरकार में इतना दम नहीं रहा जो यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को लेकर एकमत बनाने में सफल हो सकें। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस बार ये जोखम उठाया है और इस सम्बन्ध में विधि आयोग को निर्देश दिए हैं कि समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने के लिए जरूरी बातों पर गौर करें।
यूनिफार्म सिविल कोड से तात्पर्य है, देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून, जिसमें सम्प्रदाय विशेष के लिए किसी पर्सनल लॉ के लिए कोई स्थान नहीं हो। संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार, यूनिफार्म सिविल कोड को लागू करना राज्य का दायित्व है। फिलहाल देश में हिन्दुओं, मुस्लिमों आदि के लिए उनके अपने अपने धर्माधारित संपत्ति, विवाह, विवाह-विच्छेद, उत्तराधिकार जैसे कानून हैं।
कुछ लोग समान आचार संहिता के पक्ष में हैं तो समाज का एक हिस्सा इसका धुर विरोधी है। ऐसे लोग यूनिफार्म सिविल कोड को अपने धार्मिक स्वतंत्रता का हनन मानते हैं। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भाजपा इसके पक्ष में है तो कांग्रेस इसके विरोध में खड़ी है। अब चूंकि मामला धर्म-मज़हब से जुड़ा हुआ है, तो धर्मनिरपेक्षता के बड़े हिमायती माने जाने वाले विद्वान भी इसके विषय में स्पष्ट मत देते नजर नहीं आ रहे हैं।
देश में यूनिफार्म सिविल कोड का विषय पहली बार सन 1840 में उठाया गया था। उसके बाद 1985 में राजीव गाँधी शासन काल में प्रसिद्द शाहबानो मामले से यूनिफार्म सिविल कोड एक बार फिर सुर्ख़ियों में छाया रहा। सरकार को इस मामले में लेकर काफी खींचातानी भी करनी पड़ी थी। मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पूर्व पति को शाहबानो को गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए थे। इसी केस में सुप्रीम कोर्ट ने पर्सनल लॉ में यूनिफ़ोर्मिटी अर्थात एक समानता लाये जाने की बात कही थी। तत्कालीन सरकार ने उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश को उलटने के लिए संसद में एक विवादों से घिरा हुआ बिल पास कराया था। तब से लेकर आजतक कोई भी सत्तारूढ़ दल इसके सम्बन्ध में एकमत नहीं बना पाया, इसका कारण है कि देश में जनहित से अधिक वोट बैंक पर फोकस किया जाता है. अब जाकर विधि मंत्रालय ने रिटायर्ड जस्टिस बलबीर सिंह चौहान की अगुआई में मुद्दे से जुड़े आवश्यक तथ्यों व उनपर आधारित दस्तावेजों की मांग की है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कमीशन विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर रिपोर्ट देगा।
साल के शुरुआत में विधि मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा था, “देश की एकता के लिए यूनिफार्म सिविल कोड को ध्यान में रखना होगा। देश में पर्सनल कानूनों के अंदर ही तरह-तरह के रीति-रिवाज़ आदि हैं, जिनसे जनभावनाएं जुड़ी हुई हैं, इसीलिए वक़्त लगेगा।” वहीं विरोधियों ने भाजपा पर सियासी रोटियाँ सेंकने, चुनावी माहौल में वोट काटने जैसे आरोप भी मढ़ने शुरू कर दिए हैं।
गौरतलब है कि किसी भी देश की आर्थिक, सामाजिक स्थिति का जिम्मा उस देश की कानून व्यवस्था पर होता है। खासकर जब देश भारत जैसे तमाम धर्मों को समाहित करने वाला विशाल राष्ट्र हो। देश की एकता अनिवार्य होती है, जिसके सुचारू रूप से चलते रहने के लिए कानून व्यवस्था का एक समान होना भी बेहद आवश्यक है।