पुण्यतिथि विशेष: “तिलक की ‘लोकमान्य’ पत्रकारिता से कोसों दूर है मौजूदा भारतीय पत्रकारिता”

अनुज हनुमत,

जिन वीर सपूतों ने हमारे देश को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए हँसते हँसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। आज मौजूदा समय में हम उन्हीं अमर शहीदों के उद्देश्यों, सिद्धांतों और उनके देखे गए सपनों का प्रतिदिन गला घोंट रहे हैं। भारत में पत्रकारिता ने अपने उद्भव के साथ ही राष्ट्र के पुनर्जागरण में अपनी भूमिका का निर्वहन करना प्रारंभ कर दिया था।

विभिन्न क्रांतिकारियों ने भी पत्रकारिता के माध्यम से स्वदेशी, स्वराज्य एवं स्वाधीनता के विचारों को जनसामान्य तक पहुंचाने का कार्य किया। ऐसे लोगों में  ‘लोकमान्य’ बाल गंगा तिलक का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। आज इसी महान पुरुष की पुण्यतिथि है। तिलक का जन्म २३ जुलाई १८५६ को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कॉलेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया।

अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है।
तिलक ने मराठी में मराठा दर्पण व केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए।

लोकमान्य तिलक के स्वदेशी प्रेम और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की नीति से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित थे। उन्होंने आगे चलकर तिलक के इस नीति का अपने सत्याग्रह में अनुसरण किया। महात्मा गांधी ने लोकमान्य तिलक के सम्बन्ध में कहा है कि, “तिलक-गीता का पूर्वाद्ध है ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, और उसका उत्तरार्द्ध है ‘स्वदेशी हमारा जन्मसिद्ध कर्तव्य है’।

स्वदेशी को लोकमान्य बहिष्कार से भी ऊंचा स्थान देते थे।” तिलक की पत्रकारिता राष्ट्रीयता से ओतप्रोत थी। राष्ट्रहित के सिवा उनकी पत्रकारिता का कोई उद्देश्य नहीं था। पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आज पत्रकारिता का हेतु, उद्देश्य और स्वरुप भी बदल सा गया है। आज की पत्रकारिता तथ्य और सत्य से अधिक जनता को भ्रम में डालकर उन्हें बरगलाने का काम करती है।

पत्रकारिता आज देशहित से अधिक लाभार्जन और अपना रौब झाड़ने का साधन बन गया है, यह आज किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में तिलक की ‘लोकमान्य’ पत्रकारिता से वर्तमान पत्रकारों और समाचार पत्रों के मालिकों को प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।

भारतीय पत्रकारिता का मुख्य कार्य जन भावना में राष्ट्रहित सर्वोपरि की भावना को जगाना होना चाहिए। साथ ही जन-जीवन से जुड़े विभिन्न पक्षों को सत्यता तथा निष्पक्षता से रखना अनिवार्य आवश्यकता है। आज मौजूदा समय में ऐसी ही पत्रकारिता की आवश्यकता है।

लोकमान्य तिलक क्रांतिधर्मी पत्रकार थे। जिन्होंने पत्रकारिता और स्वाधीनता तथा स्वदेशी के आंदोलन को एक-दूसरे के पूरक के रूप में विकसित किया था। लोकमान्य तिलक पत्रकारिता जगत के लिए प्रेरणापुंज हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति एवं जनसेवा के एक प्रमुख उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया।

आज ही के दिन 1 अगस्त, 1920 को लोकमान्य तिलक का अचानक देहांत हो गया था। आज ही के दिन भारत माता का एक और अमर सपूत हमें छोड़ चला गया था, लेकिन लोकमान्य तिलक आज भी उतने ही प्रासंगिक है।  उन्होंने पत्रकारिता जगत में राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने के लिए जिस साहस, संघर्ष और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया था, उनकी जरूरत आज भी महसूस होती है।

आज की मौजूदा पत्रकारिता तिलक की ‘लोकमान्य’ पत्रकारिता से कोसों दूर नज़र आती है। अगर हमें आज भी पत्रकारिता को उतना ही प्रासंगिक और जीवन्त बनाये रखना है, तो हमें लोकमान्य तिलक के उन्हीं सिद्धांतों और आदर्शों को शामिल करना होगा। भारत माता के इस अमर सपूत और ओजस्वी पत्रकार पर समूचे देश को गर्व है। भारतीय पत्रकारिता लोकमान्य तिलक की ‘ओजस्वी पत्रकारिता’ का हमेशा ऋणी रहेगा।

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