उरी में सैन्य शिविर में हुए आतंकी हमले की वजह से पूरा देश ग़म और आक्रोश में नज़र आ रहा है। बॉलीवुड भी अछूता नहीं है। हर कोई इस गतिविधि की निंदा कर रहा है। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया मंच पर यह बात तेज़ी से चल रही है कि पाकिस्तान जो भारत पर लगातार हमले करता रहा है, क्या ऐसे देश के किसी नागरिक को हमें शरण देना चाहिए? क्या हमारे जवान यह जानकर दुखी नहीं होंगे कि हमारे भाइयों को, जिस देश के आतंकी सोते वक़्त हमला करके मार दे रहे हैं, हम उन्हें दौलत और शोहरत देकर उनकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं! क्या हम भारतवासी अपने जवानों के इस सवाल का जवाब दे सकेंगे?
इस ज्वलंत मुद्दे पर हमारे संपादकीय मंडल के इंद्रकुमार विश्वकर्मा ने बात की एक्सपोज़ और आपका सुरूर जैसी तमाम फ़िल्मों के निर्माता राकेश उपाध्याय से। जिन्होंने इस मसले पर अपनी बेबाक़ राय रखी।
एक लंबी सांस लेते हुए राकेश कहते हैं, ‘भारत एक ऐसा देश है, जो सदैव अमन-चैन चाहता है। हम भारतीय अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान को उसी प्रेम व सहिष्णुता से देखते हैं, जैसे कि हम अपने सगे-संबंधी और प्रियजनों को देखते हैं। हम उनके खानपान, उनके रहन-सहन, उनके संगीत, उनकी फ़िल्में, उनके टेलीविज़न के कार्यक्रमों की चर्चा भोजन के समय भी करने से नहीं चूकते। मैं खुद को खुशकिस्मत समझता हूँ कि मुझे कुछ ऐसी हस्तियों के साथ कार्य करने का मौका मिला। बॉलीवुड में काम का अवसर मिलने से इन कलाकारों की जहाँ एक तरफ अच्छी आय हो जाती है, वहीं दूसरी तरफ मिलता है ढेर सारे भारतीयों का प्यार। हम चाहते हैं कि कला और प्रतिभा का यह मेल-जोल लंबे समय तक चलता रहे। जैसा कि कहा जाता है, प्रतिभा और रचनात्मकता पर सीमाओं का बंधन ठीक नहीं।
एक बात हमेशा कचोटती है कि ये जो कलाकार हमारे देश से पैसे कमाकर जाते हैं, अपने मुल्क में उसका टैक्स देते होंगे। और उसी टैक्स के पैसे से इनके मुल्क के लोग गोलियां और बारूद खरीदकर हमारे ही जवानों पर हमला करते हैं। सोचिए, हमारे देश का पैसा हमारे मुल्क के रखवालों की, हमारे जवानों की जान ले रहा है। और कुछ लोग इसपर भी सियासत करते हैं। लोग बस इस बात का जवाब दें कि क्या वे अपने जवानों के मौत की वजह बनना चाहते हैं?
अब, एक बड़ा प्रश्न..? क्या हमें पाकिस्तानी कलाकारों को काम देना जारी रखना चाहिए, जबकि उनकी सरकार कानून और व्यवस्था को बनाये रखने के अपने सारे वायदों को तोड़ती आ रही है..? आप कहेंगे, “फवाद खान इस गुड, राहत फ़तेह अली खान, आतिफ़ असलम आर ग्रेट सिंगर्स..!” इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन, जाइये और पूछिए भारतीय सेना के उस जवान के परिवार से, जिन्होंने अपने घर के चिराग को इस आतंक की आग में कुर्बान कर दिया हो- “वह प्रोमो कैसा लगा, जिसमें वह पाकिस्तानी ऐक्टर है, वह गाना कैसा लगा जिसमें उस पाकिस्तानी सिंगर ने गाया है..?”
ध्यान देने वाली बात यह है कि अपने खुद के देश की अपेक्षा जो नाम, शोहरत और पैसा इस देश में उन्हें मिला है, उसके मुकाबले भारत देश व यहाँ के नागरिकों के लिए सद्भावना के मामले में वे ज़ीरो हैं। वे हम भारतीयों से कहते हैं कि हम उनकी कला व कार्य की प्रशंसा करें, पर क्या एक बार भी उन्होंने मारे गए हमारे भारतीय सैनिकों के सम्बन्ध में कुछ कहा है? क्या उन्होंने एक बार भी आतंकियों द्वारा की गई भारतीय जवानों की नृसंश हत्या के सन्दर्भ में कुछ बोला है? क्या एक भी पाकिस्तानी आर्टिस्ट ने कहा है कि भारतीय नागरिकों और सेना के जवानों के साथ जो कुछ भी हो रहा है, वह गलत है? जब उन्हें उन लोगों की कोई परवाह नहीं है, जो उनके कला की सच्चे हृदय से प्रसंशा करते हैं, जिसके कारण उन्हें काम मिलता है, तो हम उनकी कला को सपोर्ट करना क्यों जारी रखें..!!
पाकिस्तानी कला को विराम दे देना इस सन्देश का अंतिम उद्देश्य नहीं है, पर जब तक सारी समस्याएँ हल न हो जाएँ और घाटी के लोगों के चेहरों पर पहले जैसी मुस्कान न लौट आए, हमें खुद से पूछना चाहिए कि हमें उन्हें इंडियन फ़िल्म इण्डस्ट्री में काम देना चाहिए या नहीं..!
क्या हम अपने जवानों की छाती में ऐसी गोली चाहते हैं, जिसकी फंडिंग हमारे द्वारा की गई हो? इस बारे में जरूर सोचें.!