गालियों की वेब सीरीज़ ‘मिर्ज़ापुर’ के मेकर्स पर मँडरा रहा बड़ा ख़तरा, सीरीज़ का एक सीन बना सिरदर्द

नामचीन लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक मेकर्स से बेहद ख़फ़ा।

• एक सीन को लेकर आपत्ति, लेखक ने भेजा नोटिस। 

• पाठक बोले, “सीन तत्काल प्रभाव से हटाया जाए, नहीं तो जाएँगे कोर्ट।”

अमित द्विवेदी | नवप्रवाह न्यूज़ नेट्वर्क 

गालियों की बौछार लगा देने वाले मिर्ज़ापुर के मेकर्स की हवा निकालने पूरी तैयारी लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक कर चुके हैं। क्रिएटिविटी के नाम पर गंद फैलाने वाले निर्माता-निर्देशकों पर शायद इस कठोर कदम से कुछ अंकुश लगे। जाने-माने लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक ने मिर्ज़ापुर के मेकर्स को उनकी और उनके पुस्तक की छवि ख़राब करने को लेकर एक नोटिस भेजा है। पिछले कुछ समय से मिर्ज़ापुर जैसी तमाम वेब सीरीज़ में क्रीएटिविटी के नाम पर अभद्र भाषा का प्रयोग बेहद आम हो गया है। ऐसे ट्रेण्ड सेट कर दिया गया है कि अगर सीरीज़ में गाली नहीं है, तो मेकर कमज़ोर है या वो डेली सोप वाला है।

गालियों की ऐसी लत लगी है युवाओं को कि रातों-रात ऐसी सीरीज़ हिट हो जा रही हैं और ऐसे निर्माताओं को बल मिलता जा रहा है। इस तरह की वेब सीरीज़ से आजिज़ आकर मिर्ज़ापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल ने भी शहर की छवि ख़राब करने को लेकर आपत्ति जताई है और सेंसरशिप लगाने की बात कही है।

दरअसल, ‘मिर्जापुर 2’ के तीसरे एपिसोड में एक सीन है जिसमें अभि‍नेता कुलभूषण खरबंदा, जिन्होंने सत्यानंद त्रि‍पाठी का किरदार निभाया है वो ‘धब्बाड’ नाम की एक उपन्यास पढ़ रहे हैं। उपन्यास पढ़ने वाले सीन के दौरान कुछ पंक्तियाँ सुनाई दे रही हैं। इस सीन में जो वॉइस ओवर है, वो बेहद अश्लील है और उसका इस पुस्तक से कोई लेना देना नहीं है। लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक ने स्पष्ट किया कि उनके उपन्यास का इन लाइंस से कोई सरोकार नहीं है और इसकी वजह से उनकी और उनकी कृति दोनों की छवि धूमिल हुई है।

एक अंग्रेज़ी अख़बार के खबर के मुताबिक, लेखक का कहना है कि मैं उनके रिस्पॉन्स का इंतज़ार कर रहा हूं। अगर एक हफ्ते में कोई जवाब नहीं आता तो मैं दिल्ली हाइकोर्ट में मेकर्स के खिलाफ केस फाइल करूंगा।

सुरेंद्र मोहन पाठक के इस ऐक्शन से यह तो निश्चित है कि मिर्ज़ापुर के मेकर्स की नींद उड़ी होगी। सीरीज़ को अलग लेवल का बनाने के चक्कर में उत्तर प्रदेश और बिहार को बदनाम करने का कोई मौक़ा मेकर्स नहीं छोड़ते और ग़ज़ब की बात यह कि इन फ़िल्मों की लीड में ऐसे ही अभिनेता अभिनय करते हैं, जो बख़ूबी जानते हैं कि ऐसी फ़िल्मों से उनके राज्य, शहर और उनके समुदाय की छवि ख़राब हो रही है।

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