आनंद रूप द्विवेदी
सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में रोजाना न जाने कितनी बेटियाँ-लक्ष्मियाँ, लोगों की दरिंदगी व छल का शिकार होती हैं. उनमे से कुछ मामले सामने आ जाते हैं तो बाकी सामाजिक दबाव, लोकलाज, असहायता के चलते अपना दम तोड़ देते हैं. ऐसी लक्ष्मियाँ अन्याय को दुर्भाग्य समझकर चुप रह जाती हैं.
कहते हैं “प्यार अँधा होता है..और कानून भी”. ऐसा कई फ़िल्मों में भी आपने सुना होगा. लेकिन हम जिस लक्ष्मी की कहानी आपको सुना रहे हैं, उसके मामले में ऐसा बिलकुल नहीं है. इस बार प्यार अँधा नहीं बल्कि दगाबाज़ निकला जिसने एक असहाय लड़की को इस्तेमाल करने के बाद बियावान में ठोकरें खाने को छोड़ दिया. कानून जिसे हम अंधा मानते हैं, अब वही लक्ष्मी को इस दगाबाज़ प्यार के अन्याय से न्याय का रास्ता दिखा रहा है.
ये कहानी उत्तराखंड में उधमसिंह नगर जिले के बेरिया गाँव की रहने वाली लक्ष्मी देवी पुत्री चरण सिंह की है. लक्ष्मी को अपने गाँव के दिलीप सिंह पुत्र धरम सिंह से प्यार हुआ, बिलकुल सच्चा वाला. लक्ष्मी और दिलीप दोनों ही दलित तबके से हैं. लक्ष्मी का परिवार बेहद गरीब है और पिता शराबी. वहीँ दिलीप का परिवार काफी संपन्न और रसूखदार है. दरअसल साल २०११ में लक्ष्मी और दिलीप एक दूजे से मिले, प्यार हुआ और परवान चढ़ा. दिलीप के संग जीवन के हर बसंत के सपने सजा लेने वाली लक्ष्मी ने स्वयं को समर्पित कर दिया. मजदूर भाई की बहन, शराबी पिता और बिन माँ की बेटी, लक्ष्मी, ने २०१४ तक दिलीप के साथ अपने प्यार के रिश्ते को बेरोक-टोक जारी रखा.
एक ही बिरादरी के होने के कारण लक्ष्मी को अपने प्रेम सम्बन्ध पर कोई मुश्किल आती भी नहीं दिखाई पड़ी. निश्छल प्रेम और विश्वास से भरी लक्ष्मी ने अपने तन मन को दिलीप को समर्पित कर दिया. दिलीप ने लक्ष्मी को सशर्त आश्वासन दिया कि वो उससे शादी करेगा. २०१४ में भाई और पिता ने लक्ष्मी का विवाह किसी अन्य व्यक्ति से तय कर दिया. लक्ष्मी ने दिलीप पर दबाव बनाया कि वह उसके घर वालों से बात करे और कहे कि वो शादी करेगा. दिलीप ने लक्ष्मी को सही वक़्त आने देने का इंतज़ार करने को कहा और चुप करा दिया. फिर भी लक्ष्मी दिलीप पर लगातार दबाव बनाती रही. शादी के कुछ दिन पहले ही दिलीप ने उसको घर से भाग चलने का झांसा दिया और एक शाम गाँव के नज़दीकी रेलवे स्टेशन बेरिया दौलतपुर ले गया. उसने लक्ष्मी को एक बेंच पर बैठाया और ट्रेन का इंतज़ार करने को कहा. मौक़ा देखकर दिलीप, लक्ष्मी को अकेला छोडकर चम्पत हो गया.
निश्छल मन वाली लक्ष्मी जिसने अपना सर्वस्व प्रेम की वेदी पर भेंट स्वरुप अर्पित कर दिया था , रात भर उस स्टेशन पर दिलीप और उसकी ट्रेन के आने का इंतज़ार करती रही. लक्ष्मी के साथ छल हुआ था. वो अपने घर वापस आ गई, लेकिन घरवालों द्वारा तय की गई शादी करने से इनकार कर दिया. अब लक्ष्मी ने निश्चय कर लिया था कि वह अपने प्रति दिलीप का ये छल, अन्याय, बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेगी. वो उसकी खोज करेगी. काफी खोजबीन के बाद दिलीप मिला लेकिन अब वो लक्ष्मी का दिलीप नहीं है. लक्ष्मी को उस रात स्टेशन पर अकेला छोड़ कर भागा हुआ दिलीप दक्षिण अफ्रीका के घाना में पाया गया है. उसने लक्ष्मी को प्यार में धोखा दिया, उसका शोषण किया और अब घाना में मौज भरी जिन्दगी बसर कर रहा है. दिलीप के रसूखदार परिवार ने उसकी नैया पार लगाई है. उसके जीजा, देवी सिंह आयकर उपायुक्त हैं जिनकी मदद से दिलीप घाना में व्यवसाय कर रहा है.
लक्ष्मी ने दिलीप की तलाश में उम्मीद का हर दरवाजा खटखटाया. उसने थाना कोर्ट, हाईकोर्ट, सब एक कर दिया तब जाकर भगोड़े दिलीप का पता चला है. लक्ष्मी ने दिलीप के विरुद्ध, शादी के झांसे में फंसाकर शारीरिक और मानसिक शोषण किये जाने की प्राथमिकी दर्ज करवाई लेकिन दिलीप के परिवार ने अपने रसूख के बल पर उसके हाथ कुछ ख़ास लगने नहीं दिया. लक्ष्मी को पूरे ब्रह्माण्ड से लड़कर भी न्याय चाहिये. कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता से लक्ष्मी पहले जिला न्यायालय फिर नैनीताल हाईकोर्ट में इस मामले को ले गई.
न्याय के लिए संघर्षरत लक्ष्मी ने अदालत से दिलीप के विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट जारी करवा लिया, तमाम आदेश दिए गए, लेकिन इन सभी न्यायिक संस्थाओं से दूर घाना में आरोपी दिलीप सिंह मौज कर रहा है. पता चला है कि अदालत में लंबित इस मामले के दौरान ही दो महीने पहले दिलीप सिंह ने घाना में शादी कर ली है और अब वहीँ स्थाई तौर पर घर बसाने की तैयारी कर रहा है.
वकील रघुवंशी लक्ष्मी के इस संघर्ष में उसकी सहायता कर रहे हैं. लक्ष्मी की इस दास्तान को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पीएम मोदी तक पहुंचाने की पहल कई जागरूक लोगों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से की जा रही है. पीएमओ को टैग और शेयर किया जा रहा है, रिट्वीट्स किये जा रहे हैं. अपील की जा रही है कि सारी जुगत लगाकर किसी भी तरह लक्ष्मी को न्याय दिलवाया जा सके और उसके शोषक दिलीप को भारत लाकर न्यायालय के समक्ष खड़ा किया जा सके.
(यह आलेख अवनीश पी०एन०शर्मा जी की फेसबुक वाल पर पोस्ट की गई ‘लक्ष्मी की दास्तान’ पर साभार संदर्भित व आधारित है.)