स्वतंत्रता संग्राम में बागी बलिया के बलिदान को जान लेना ज़रूरी है

Independence day history : we should know the balia connection

गौरव कुमार उपाध्याय | Navpravah.com

“चौदह दिन अपना राज रहा, इसके हम सब अभिमानी हैं ।
भारत छोड़ो के नारे की, बलिया अमिट निशानी है।”

उपरोक्त पंक्तियां बलिया के अमिट इतिहास को बतलाने के लिये काफी है, जहाँ की जनता ने अंग्रेजी हुक्मरानों की ईंट से ईंट बजा डाली और अपने इन्हीं तेवरों के कारण बलिया, बागी बलिया कहलाया।

दरअसल किस्सा अगस्त 1942 का है, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा करने और तदोपरान्त उनकी नज़रबंदी के बाद देश में जनाक्रोश फैल गया। चारों तरफ अंग्रेजो भारत छोड़ो के नारे लगने लगे। जनाक्रोश भी ऐसा कि इसे भारत का द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इस जनाक्रोश से बलिया कहाँ अछूता था। 9 अगस्त 1942 की सुबह बलिया के बागी तेवरों की बानगी बन कर आई। बलिया के अलग अलग तहसीलों मे लोग इकट्ठे होने लगे, जगह जगह तिरंगा लहराया जाने लगा। भीड़ का उन्माद इतना था कि पुलिस को कई बार लाठी चार्ज करना पड़ा। पर भीड़ तो जैसे स्वराज के लिये मतवाली थी, ट्रेनों मे भर भर कर जनता शहर की तरफ आने लगी। सबको स्वराज चाहिए था, और जेल में बंद नेताओ की रिहाई भी।

तब के आई सी एस और बलिया जिले के तत्कालीन कलेक्टर जगदीश्वर निगम को लगने लगा कि अब बलिया को आजाद किये बिना माहौल बदला नहीं जा सकता, जिसके बाद उन्होने निर्णय लिया और बलिया जिला जेल का फाटक खुलवा दिया तथा जेल मे बंद आन्दोलनकारी नेताओं चित्तू पाण्डेय, राधामोहन सिंह, महानन्द मिश्र आदि को रिहा किया। साथ ही साथ चित्तू पाण्डेय से निवेदन किया कि अब आप ही इस जनाक्रोश को सम्भालें।

इस प्रकार 19 अगस्त 1942 को एक स्वतंत्र बलिया प्रजातन्त्र सरकार का गठन हुआ, जिसके शासनाध्यक्ष बने शेरे बलिया चित्तू पाण्डेय। इस सरकार ने 14 दिनों तक बलिया पर हुकूमत की। शेरे बलिया की उपाधि चित्तू पांडे को स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दी थी। बलिया के इन बागी तेवरों से अंग्रेजी हुकूमत का हौसला पस्त होने लगा साथ ही, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे महत्वपूर्ण दौर भी आरम्भ करने में बलिया की क्रांति का अमित योगदान रहा।

*(लेखक, शेरे बलिया चित्तू पांडे के वंशज हैं)

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