एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.co
फरवरी 2004 में फेसबुक की शुरुआत हुई थी। और तब किसी ने नहीं सोचा था कि, फेसबुक के इतने बड़े यूजर्स हो जायेगें। शुरुआत से ही उसमें ऐसे फीचर जोड़े गए, जो यूजर्स को आकर्षित करें।
धीरे-धीरे फेसबुक दुनिया का सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क बन गया, 2017 तक फेसबुक के दुनियाभर में 2.2 बिलियन यूजर्स हैं। लेकिन, यूजर्स को नहीं पता था कि वे जो जानकारियां दे रहे हैं। उनका दुरुपयोग होगा, यूजर्स ने फेसबुक पर भरोसा किया, लेकिन वो भरोसा टूट गया।
अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव से फेसबुक के कामकाज की असलियत सामने आई। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के चार महीने के बाद ही फेसबुक जैसा लोकप्रिय नेटवर्क विवादों में घिर गया। कुछ विशेषज्ञों ने पता लगा लिया कि फेसबुक ने रूसी लोगों के संपर्क में आकर अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप किया। जिससे ट्रंप को जीतने में मदद मिली थी।
इसके बाद बात तो कुछ दब गई, लेकिन कुछ लोगों ने अपनी जांच आगे जारी रखा और पता लगा लिया कि कैम्ब्रिज एनेलिटिका और उसके प्रोफेसर एलेक्जेंडर कोगन ने 5 करोड़ से अधिक फेसबुक यूज़रों की सूचनाएं चुराईं है। बाद में फेसबुक संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने यह बात कबूली और माफी भी मांगी।
वर्ष 2014 की शुरुआत में कोगन ने एकेडमिक रिसर्च के नाम पर फेसबुक यूजर्स का डाटा चुराया। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि चोरी की जानकारी मिलने के बावजूद फेसबुक ने यूजर्स को अलर्ट नहीं किया गया।
ब्रिटेन में जांचकर्ता यह पता लगा रहे हैं कि कहीं 2016 के ‘ब्रेग्जिट’ जनमतसंग्रह में भी इसी तरह परिणाम प्रभावित तो नहीं किए गए हैं। हाल ही में चैनल-4 न्यूज ने कुछ फुटेज जारी किया। उसमें कैम्ब्रिज के एग्जीक्यूटिव बता रहे हैं कि उनकी कंपनी नेताओं को फांसने के लिए रिश्वत देने सहित कई विकल्प आजमाती है। इस फर्म के पास आज भी करोड़ों फेसबुक यूजर्स का डाटा मौजूद है। जो डिलीट नहीं किया गया है।