सौम्या केसरवानी| Navpravah.com
CBI vs CBI मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है, सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ मामले की सुनवाई कर रही है, विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने न्यायालय से कहा गया है कि सरकार निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी जांच को तर्कपूर्ण अंजाम तक लेकर जाए।
तुषार मेहता ने कहा कि CBI में जैसे हालात थे, उसमें CVC मूकदर्शक बनकर नहीं बैठा रह सकता था, ऐसा करना अपने दायित्व को नज़रअंदाज़ करना होता, दोनों अधिकारी एक-दूसरे के ऊपर छापा डाल रहे थे, कुछ और दलीलों के साथ इस केस में CVC की बहस पूरी कर ली गई है।
इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सीबीआई के दोनों अधिकारियों के बीच टकराव क्या रातों-रात हो गया जो चयन कमेटी की मंजूरी के बिना सरकार को आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला लेना पड़ा।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, सीबीआई डायरेक्टर के कार्यकाल को दो साल तय करने के पीछे मकसद इस पद को स्थायित्व देना था, आलोक वर्मा की दलील है कि उनको छुट्टी पर भेजने का फैसला विनीत नारायण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है और ये फैसला उनके चयन करने वाले पैनल की मंजूरी लिया जाना चाहिए था।
इससे पहले बुधवार को सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि सीबीआई के दो बड़े अधिकारी निदेशक और विशेष निदेशक आपस मे लड़ रहे थे, ख़बरें मीडिया में आ रही थीं, जिससे सीबीआई की छवि ख़राब हो रही थी।
वेणुगोपाल ने कहा था कि, वर्मा का ट्रांसफ़र नहीं किया गया, इसलिए चयन समिति से परामर्श लेने की ज़रूरत नहीं थी और आलोक वर्मा अभी भी सरकारी आवास और दूसरी सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं, PM की अध्यक्षता वाला पैनल डायरेक्टर के लिए चयन करता है, उसे नियुक्त करने का अधिकार नहीं है।
दरअसल, इससे पहले आलोक वर्मा से कामकाज वापस लिए जाने के आदेश को सही ठहराते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि चयन और नियुक्ति में अंतर होता है, तीन सदस्यीय समिति सीबीआई निदेशक के लिए नामों का चयन करती है और पैनल तैयार करके सरकार को भेजती है, उसमें किसे चुनना है यह सरकार तय करती है और सरकार ही नियुक्ति करती है।