भारतीय मूल के वैज्ञानिक ने ढूंढ निकाला ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ का इलाज

शिखा पाण्डेय । Navpravah.com

आपने तमाम प्रकार के बैक्टीरिया के विषय में सुना होगा, लेकिन क्या कभी किसी ऐसे आंत के बैक्टीरिया के विषय में सुना है, जो आपके लिए सेहतमंद हो? अगर आपको इसके अस्तित्त्व के विषय में जानकारी नहीं है, तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आंत के ऐसे ही एक बैक्टीरिया की खोज की जा चुकी है। खास बात यह है कि भारतीय मूल के अमेरिकी वैग्यानिक डॉ. आशुतोष मंगलम की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने आंत के इस बैक्टीरिया ‘प्रीवोटेला’ की खोज की है, जिसका इस्तेमाल मल्टीपल स्क्लेरोसिस और इससे मिलती-जुलती अन्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के पैथोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर मंगलम मूल रूप से उार प्रदेश के रहने वाले हैं। मंगलम ने अमेरिका के आयोवा प्रांत से एक भारतीय न्यूज़ एजेंसी को फोन पर बताया कि उनका शोध आंत के बैक्टीरिया पर आधारित है। वह अपने शोध के जरिए बताना चाहते हैं कि आंतों के बैक्टीरिया इंसान को सेहतमंद रखने में कैसे मदद करते हैं। इस शोध कार्य में शामिल एक दर्जन से ज्यादा वैज्ञानिकों की अगुवाई मंगलम ने की।

पिछले करीब 15 साल से मल्टीपल स्क्लेरोसिस पर शोध कर रहे मंगलम ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “हमारी आंत में खरबों अच्छे बैक्टीरिया रहते हैं । वह हमें सेहतमंद बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं । अच्छे बैक्टीरिया हमारे भोजन को पचाने के अलावा हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं में मदद करते हैं।”

उन्होंने बताया,”नए शोध के मुताबिक, हमारी आंत के अच्छे बैक्टीरिया हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के विकास में मदद करते हैं। मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों की आंतों में अच्छे बैक्टीरिया की कमी हो जाती है, जिसकी वजह से कुछ लोगों में यह बीमारी होती है। इसलिए हमने मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों की आंतों में बैक्टीरिया की जांच की और उनकी तुलना सेहतमंद लोगों की आंत के बैक्टीरिया से की।”

मंगलम ने खोज में पाया कि मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों की आंत के बैक्टीरिया सेहतमंद लोगों से भिन्न थे। उनकी टीम ने उन विशेष बैक्टीरिया की पहचान की जिनकी कमी मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों में थी। इस खोज में उनकी टीम ने पाया कि मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों में प्रीवोटेला नाम के बैक्टीरिया की कमी थी। हालांकि, मंगलम ने चेतावनी दी कि अभी इस बैक्टीरिया पर और शाेध करने की जरूरत है ताकि इसके प्रभाव की जांच ठीक से की जा सके। इस टीम काे यह खाेज करने में करीब चार साल का वक्त और लगा।

मंगलम के साथ ही उनके सहयोगी डॉ. शैलेश शाही ने इसमें अहम भूमिका निभाई। इस शोध में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा और रोचेस्टर स्थित मेयो क्लीनिक के वैज्ञानिकों की भी अहम भागीदारी रही। मूल रूप से बिहार के रहने वाले शाही ने भारत के लिए इस शोध की अहमियत के बारे में पूछने पर एजेंसी को बताया कि पिछले कुछ दशकों में भारत में मल्टीपल स्क्लेरोसिस रोग की चपेट में आने वाले लोगों की तादाद काफी बढ़ी है। इस रोग का निदान थोड़ा कठिन होने के कारण डॉक्टरों का मानना है कि भारत में इसके मरीजों की सही से पहचान नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि लोगों में मल्टीपल स्क्लेरोसिस के बारे में और जागरूकता फैलाने की जरूरत है। सही पहचान न होने पर मरीजों को गलत दवा देने की आशंका रहती है।

क्या है मल्टीपल स्क्लेरोसिस

-मल्टीपल स्क्लेरोसिस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की बीमारी है जो दिमाग और रीढ़ को प्रभावित करती है।

-यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इम्यून सिस्टम के कमजोर होने और माइलिन कोशिकाओं का बनना बंद होने के कारण होती है ।

-आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों से भी यह बीमारी हो सकती है। इसमें शरीर के विभिन्न अंग प्रभावित होते हैं।

-वैसे तो यह लकवा से अलग तरह की बीमारी है, लेकिन करीब 20 से 50 साल की उम्र के बीच के लोगों को अपना शिकार बनाने वाली इस बीमारी की चपेट में लंबे समय तक रहने से मरीज को विकलांगता का शिकार होना पड़ता है।

शोधकर्ताओं की टीम ने प्रीवोटेला के विभिन्न उपभेदाें स्ट्रेन्स काे सेहतमंद लाेगाें की आंत से निकाला और उनका परीक्षण चूहाें पर किया। उन्हाेंने पाया कि बहुत सारे बैक्टीरिया में से एक प्रीवाेटेला हिस्टीकाेला में मल्टीपल स्क्लेराेसिस वाले चूहाें में बीमारी काे सुधारने की क्षमता थी। प्रीवाेटेला हिस्टीकाेला ने बीमारी के लक्षण में सुधार लाने के साथ-साथ दिमाग और रीढ़ में सूजन काे भी कम किया। उनकी टीम ने यह भी दिखाया की प्रीवाेटेला हिस्टीकाेला ने शरीर की प्रतिरक्षा काेशिकाआें काे बढ़ाया। यह खाेज इसी साल अगस्त महीने में सेल रिपाेर्ट पत्रिका में प्रकाशित भी हुई।

अमेरिका के लाेक स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ाें के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 30 लाख लाेग इस बीमारी की चपेट में हैं। साल 2015 में इस बीमारी से करीब 20,000 लाेगाें की मौत हुई थी।

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