“करवटें बदलते रहे सारी रात हम”

जटाशंकर पाण्डेय | Navpravah.com

“करवटें बदलते रहे सारी रात हम, आप की कसम आप की कसम।” ये अल्फ़ाज़ आज कल समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की ज़बान पर सज रहे हैं। 15 मार्च को उत्तर प्रदेश पुलिस के चंगुल में आये गायत्री ने कभी सपने में भी न सोचा होगा कि सत्ता हाथ से छूटते ही ऐसी दुर्गति होगी। एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी नाबालिग बच्ची के यौन शोषण के आरोपी गायत्री प्रजापति, जो सत्ता में रहते हुए पुलिस-रक्षित थे, सत्ता परिवर्तन के साथ ही पुलिस के कब्जे में आ गए और इन्हें लाव लश्कर के साथ लखनऊ जेल भेज दिया गया।

होत न एक समान सबै दिन, होत न एक समान। क्या पता था कि ऐसा दिन भी आएगा जब 7 सितारा होटलों से ले कर अच्छे से अच्छे गेस्ट हाउस, डाक बंगला, तथा सारी सरकारी सुख सुविधाओं को भोगने के बाद उन्हें लखनऊ जेल की सख्त फर्श पर तमाम कैदियों के बीच अपने पुराने कुकृत्यों को याद करते बुरे स्वप्नों के साथ रातें गुजारनी पड़ेंगी। जब इंसान जमीन से एक खास उचाई पर पहुँच जाता है, तो वह नीचे देखना बंद कर देता है। अगर वह नीचे भी देखता रहे, तो उसका पतन न हो, लेकिन वह सिर्फ ऊपर ही देखने लगता है और सत्ता का मद भी हो तो वह मदान्ध हो जाता है। भविष्य में उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है, ऐसा वह सोचता ही नहीं।

गायत्री प्रजापति के करीबी बताते हैं कि वो एक ग़रीब परिवार से आते हैं और साल 2002 तक उनकी स्थिति ये थी कि वो बीपीएल कार्ड धारक थे, यानी ग़रीबी की रेखा से नीचे आते थे। देखते ही देखते विधायक से कैबिनेट मंत्री तक का सफर सुपरसोनिक स्पीड में ऐसे तय कर गए, कि अच्छे अच्छे तिकड़मी गच्चा खा गए। ज़मीन घोटाला, खनन घोटाला, रोडवेज़ घोटाला, ऐसे तमाम प्रकार ले तमगे गले में लटकाए बिंदास उन्मुक्त पंछी का जीवन जी रहे गायत्री इस बलात्कार के केस में ऐसे फंसे, कि निकल नहीं पाए। निकल भी जाते, लेकिन ऐन वक़्त पर पार्टी की ‘हार’ ने ‘बेकार’ बनाकर रख दिया बेचारे मंत्री जी को!

जेल पहुँचने के बाद गुस्साए, तमतमाये  मंत्री जी ने सुबह का नाश्ता नहीं लिया। मुर्ग-मुसल्म और शाही कबाब का लंच और डिनर करने वाले साहब जी को रात में मिली आलू बैगन की सब्जी, उड़द की दाल और रोटियां। बताइये भला, कहाँ शाही कबाब और कहाँ कलूटे बैंगन! जो ‘आम’ कैदियों को खाना मिलता है, वही ‘खास’  मंत्री जी को भी दिया गया। गायत्री जब से जेल में आए थे, उन्हें काफी बेचैनी महसूस हो रही थी। वे कई बार पानी पी रहे थे, उनका माथा पसीने से सराबोर हो रहा था। उन्होंने इसकी शिकायत जेल अधिकारियों से भी की, लेकिन कोई खास असर नहीं हुआ। किसी प्रकार की सुविधा इन्हें प्रदान नहीं की गई। उनके लिए एकमात्र राहत की बात ये रही कि इसी केस से संबंधित इनके  2 अन्य साथीदार अपराधी भी इसी बैरक में बंद थे। शायद इससे उनको थोड़ी सांत्वना मिली हो।

देर रात उनको थोड़ी नींद आई, फिर सुबह जल्दी ही उठ कर, तरोताज़ा होकर इन्होंने कुछ समय भगवान की प्रार्थना भी की।  भगवान को मानने वाले ये लोग भी ऐसे कृत्यों में लिप्त होते हैं साहब, क्योंकि ये लोग सपा के मार्गदर्शक मुलायम सिंह के कथन को सर आँखों पर रखते हैं, ‘लड़के हैं, गलती हो जाती है कभी-कभी।’ इन्हें यह पता नहीं होता है कि भगवान कोई इनके खासम-खास नहीं होते हैं। जो भगवान इनके हैं, वही औरों के भी होते हैं और उनके दरबार में देर और अंधेर दोनों ही नहीं है। पहली बात, गलत काम करने वाले की आत्मा तुरंत वह कार्य करने से पहले हिचकिचाती है, लेकिन मन की सुनने के कारण अगर मान लीजिए इंसान ऐसा कर भी देता है, तो उसकी आत्मा उसे बाद में तो धिक्कारती ही है। सम्हलने वाला यहाँ भी सम्हल जाता है। जो ‘अति-चतुर’ होता है, वह यहाँ भी नहीं सम्हलता, वो ये समझता है कि भगवान की आंखें भी उसके सामने धोखा खा जाती हैं, लेकिन भगवान को वो धोखा देता नहीं है, वह अपने आप को धोखा  देता है। फिर आप यह तो जानते ही हैं कि ‘अति सर्वत्र वर्ज्यते’, एक न एक दिन पाप का घड़ा फूटता ही है।

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’। अब न सत्ता है, न परिजन हैं, न बाहु हैं, न बली हैं। अब एकमात्र अदालत के फैसले का आसरा है, इसमें भी इनका दिल इनसे तो जरूर कहता होगा कि क्या होने वाला है। सोचते ज़रूर होंगे कि मैंने अच्छा बुरा, जो किया है, उसकी क्या सजा होनी चाहिए। यदि अब भी गलती मान लें तो गनीमत है और ऐसा तभी संभव है, जब ये सत्ता के गरूर से नीचे उतरेंगे। दूसरी सम्भावना यह है कि मन ही मन सोच रहे होंगे, ‘निकलने के बाद सबकी खबर लेगें, या हमारी सरकार आने दो, तब बताऊँगा।’ अगर इंसान अपने अहंकार से नीचे उतरे तो सुधार हो सकता है, वर्ना ‘जस करनी तस भोगहु ताता..जेल सड़त काहें पछताता’!

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