इस बार प्रत्याशियों के बीच में बैनर युद्ध अपने चरम पर है। पूरा इलाहाबाद शहर बैनरों और पोस्टरों से ढंका हुआ है। अगर इस पर हुए पूरे खर्च का आकलन करें, तो मोटे तौर पर यह लाखों से ऊपर का खर्च नजर आता है। प्रत्याशियों द्वारा अपनी छवि निर्माण के खातिर प्रचार-प्रसार में कोई कमी नहीं की जा रही है। छात्र संघ चुनाव से पहले लगभग सभी छात्र नेता यही कहते दिखते हैं कि हम सादगी से चुनाव लड़ेंगे पर चुनाव आते ही सब कुछ बदल जाता है। पूरा चुनाव छात्र हितों से इतर धनबल का खेल बनकर रह जाता है ।
गौरतलब है कि छात्र संघ चुनावों में लिंगदोह कमेटी के नियम लागू किये जाते हैं। इसके अनुसार एक प्रत्याशी का अधिकतम खर्च पांच हजार रुपये होना चाहिए और प्रिंटेड पोस्टर, पैम्प्लेट्स या प्रचार सामग्री के प्रयोग की अनुमति नहीं होती। कैंपेन में लाउड स्पीकर, वाहन एवं जानवरों का प्रयोग अनुबंधित होता है, लेकिन अफसोस की बात तो यह है कि इन सारे नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
अगर छात्रों की बात करें तो इस भारी भरकम खर्च को देखकर छात्र बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हो रहे हैं। अधिकांश छात्रों का कहना है कि इस बार बैनर्स, पोस्टर्स से वोट नहीं मिलने वाले । इस बार हम प्रत्याशियों से मुद्दों पर बात करके वोट देना चाहते हैं। इतना है कि प्रत्याशियों द्वारा बेइंतेहा पैसा खर्चे करने के कारण कैम्पस के चुनावी मुद्दे हवा होते जा रहे हैं, जिस कारण आने वाले समय में एक अच्छे छात्र संघ की कल्पना फिर से बेमानी ही साबित होगी।
ऐसा नहीं है कि सभी प्रत्याशी अपने प्रचार प्रसार में बड़े बजट का प्रयोग कर रहे हैं। कुछ प्रत्याशी तो ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक अपने बैनर्स ,पोस्टर्स नहीं लगवाये। उनका कहना है कि जब हमने पिछले कई वर्षों से लगातार छात्रों के हक की लड़ाई लड़ी है, तो फिर किस बात के लिए बैनर्स, पोस्टर्स लगायें? हमें छात्रों के वोट धनबल के दम पर बिलकुल नहीं चाहिए, बल्कि अपने मनोबल के दम पर चाहिए।