न्यूज़ डेस्क | नवप्रवाह न्यूज़ नेट्वर्क
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अहमद पटेल का बुधवार सुबह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। उनके बेटे फ़ैसल ने इस बात की जानकारी ट्वीट के ज़रिए दी। एक माह पहले अहमद पटेल कोरोना से संक्रमित पाए गए थे, जिसके बाद उनको गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अहमद पटेल के निधन की ख़बर से राजनीतिक गलियारे में शोक व्याप्त हो गया है। अहमद पटेल काफ़ी रसूखदार नेता थे, 1977 से वे लगातार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे। अहमद पटेल गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर में पैदा हुए। अहमद पटेल तीन बार (1977, 1980,1984) लोकसभा सांसद और पांच बार (1993,1999, 2005, 2011, 2017 से वर्तमान तक) राज्यसभा सांसद रह चुके थे। पटेल ने अपना पहला चुनाव 1977 में भरूच से लड़ा था, जिसमें वो 62,879 वोटों से जीते। 1980 में उन्होंने फिर यहीं से चुनाव लड़ा और इस बार 82,844 वोटों से जीते थे। 1984 के अपने तीसरे लोकसभा चुनाव में उन्होंने 1,23,069 वोटों से जीत दर्ज की थी।
1993 से अहमद राज्यसभा सांसद थे और 2001 से सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार भी थे।
राजनीतिक यात्रा:
1977 से 1982 तक अहमद पटेल गुजरात की यूथ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। सितंबर 1983 से दिसंबर 1984 तक वो ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। 1985 में जनवरी से सितंबर तक वो प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव रहे। उनके अलावा अरुण सिंह और ऑस्कर फर्नांडिस भी राजीव के संसदीय सचिव थे। सितंबर 1985 से जनवरी 1986 तक पटेल ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी रहे। कांग्रेस के तालुका पंचायत अध्यक्ष के पद से राजनीति की शुरुआत करने वाले पटेल जनवरी 1986 में गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बने, जो वो अक्तूबर 1988 तक रहे। 1991 में जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने, तो पटेल को कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाया गया, जो वो अब तक थे।
1996 में पटेल को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का कोषाध्यक्ष बनाया गया था। उस समय सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। हालांकि, साल 2000 सोनिया गांधी के निजी सचिव वी जॉर्ज से तकरार होने के बाद उन्होंने ये पद छोड़ दिया था और अगले ही साल से सोनिया के राजनीतिक सलाहकार बन गए थे। संगठन में इन पदों के अलावा वो सिविल एविएशन मिनिस्ट्री, मानव संसाधन मंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय की मदद के लिए बनाई गईं कमेटी के सदस्य भी रह चुके थे। 2006 से वो वक्फ संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य थे। अहमद गुजरात यूथ कांग्रेस कमेटी के सबसे युवा अध्यक्ष तो थे ही, वो अहसान जाफरी के अलावा दूसरे ऐसे मुस्लिम थे, जिन्होंने गुजरात से लोकसभा चुनाव जीता।
1977 में बचाई थी कांग्रेस की साख-
अहमद इंदिरा गांधी के वक्त से कांग्रेस में थे। 1977 के चुनाव में जब इंदिरा को भी पासा पलटने की आशंका थी, तब ये अहमद पटेल ही थे, जो उन्हें अपनी विधानसभा सीट पर मीटिंग आयोजित करने के लिए राजी कर लाए थे। 1977 के आम चुनाव में जब कांग्रेस औंधे मुंह गिरी थी और गुजरात ने उसकी कुछ साख बचाई थी, तो अहमद उन मुट्ठीभर लोगों में एक थे, जो संसद पहुंचे थे। 1980 के चुनाव में धाकड़ वापसी करने के बाद जब इंदिरा ने अहमद को कैबिनेट में शामिल करना चाहा, तो उन्होंने संगठन में काम करने को प्राथमिकता दी।
10 जनपथ के चाणक्य:
अहमद पटेल को 10 जनपथ का चाणक्य भी कहा जाता था। वो कांग्रेस परिवार में गांधी परिवार के सबसे करीब और गांधियों के बाद ‘नंबर 2’ माने जाते थे। बेहद ताकतवर अहमद लो प्रोफाइल रखते थे, साइलेंट और हर किसी के लिए सीक्रेटिव थे। गांधी परिवार के अलावा किसी को नहीं पता कि उनके दिमाग में क्या रहता था। पटेल की कोशिश रहती थी कि दिल्ली और देश के मीडिया में उनकी जरा भी प्रोफाइल न हो, वो कभी टीवी चैनलों पर नहीं दिखते, लेकिन उन पर खबरें कंट्रोल करने का आरोप लगता रहा। गांधी परिवार और प्रधानमंत्रियों से लगातार मिलते रहने के बावजूद उनके साथ पटेल की तस्वीरें बेहद चुनिंदा हैं।