समीक्षा – अमित द्विवेदी
रेटिंग- ✯✯✯✯
फ़िल्म- तेरा सुरूर
निर्माता- सोनिया कपूर, टी-सीरीज़, राकेश उपाध्याय
निर्देशक- शॉन अरान्हा
मुख्य कलाकार- हिमेश रेशमिया, फराह करीमी, नसीरुद्दीन शाह, शेखर कपूर, कबीर बेदी।
निर्माता- सोनिया कपूर, टी-सीरीज़, राकेश उपाध्याय
निर्देशक- शॉन अरान्हा
मुख्य कलाकार- हिमेश रेशमिया, फराह करीमी, नसीरुद्दीन शाह, शेखर कपूर, कबीर बेदी।
कड़ी मेहनत का माद्दा और जूनून आप में है, तो दुनिया का हर काम आपके लिए संभव है। ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे आप हासिल करना चाहें और न हो पाए। हिमेश रेशमिया ने अपनी कड़ी मेहनत और अपनी शिद्दत से काफी हद तक ये सिद्ध किया है। फ़िल्म तेरा सुरूर में हिमेश के साथ पूरी टीम की मेहनत साफ़ नज़र आती है। कहानी, पटकथा, संवाद, निर्देशन और संगीत, लगभग हर पहलू पर भरपूर मेहनत की गई है। जिसका सुरूर नज़र आता है फ़िल्म में।
कहानी-
रघु के इर्द-गिर्द घूमती है ये कहानी। पिता के गुज़र जाने और माँ के बीमार रहने की वजह से रघु 10 साल की उम्र में ही चाय बेंचकर अपना और अपनी माँ का गुज़र बसर करता है। माँ फ़िल्म इंडस्ट्री में एक जूनियर आर्टिस्ट रहती है। एक दिन जब रघु को डॉक्टर बताता है कि अगर वो अपनी माँ को बचाना चाहता है तो उसे 10 हज़ार रूपए की व्यवस्था करनी होगी, जोकि उस बच्चे के लिए असंभव था। रघु एक ऐसी जगह चाय बेचने जाता था जहां औरंगज़ेब नाम का गैंगस्टर रहता है। औरंगज़ेब को ख़त्म करने के लिए उसका दुश्मन रघु का सहारा लेता है और उसे मार डालने के बदले में 10 हज़ार रूपए देने की बात कहता है। रघु का मन उसे मारने का नहीं होता लेकिन औरंगज़ेब ने जब उसकी माँ के बारे अभद्र बातें कहीं तो वो खुद को न रोक सका और अंटोनी के दिए रिवाल्वर से रघु औरंगज़ेब की जान ले लेता है। रघु को बाल कारागार में भेज दिया जाता है।
जेल से निकलने के बाद परिस्थितियां बदलती हैं और रघु एक गैंगस्टर बन जाता है। रघु की ज़िन्दगी तब बदलने लगती है जब उसकी दोस्ती तारा वाडिया से होती है। दोनों एक दूसरे को बेइन्तहां प्यार करते हैं। एक दिन रघु और तारा में किसी बात को लेकर झगड़ा होता है और तारा गुस्से में रघु से दूर डबलिन चली जाती है। और पूरी फ़िल्म तब एक अलग मोड़ लेती है, जब तारा को डबलिन में पुलिस पकड़ लेती है। कुछ ही समय बाद पता चलता है कि तारा को एक कॉन्सर्ट के लिए उसका एक फेसबुक फ्रेंड डबलिन बुलाता है, जो उसे ड्रग स्मगलिंग में फंसा देता है। यही फ़िल्म का असल हिस्सा कहा जा सकता है। तारा को रघु कैसे बचाएगा, और रघु को उसका प्यार मिलेगा या नहीं यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर की ओर रुख करना होगा।
फ़िल्म का लोकेशन, फोटोग्राफी और निर्देशन बेहतरीन है। पटकथा कमाल की है। पूरी फ़िल्म में आप कहीं बोर नहीं होंगे। संवाद भी बेहद रोचक है।
संगीत-
हमेशा की ही तरह हिमेश ने संगीत के साथ न्याय किया है। समीर अनजान, शब्बीर और आनंद राज आनंद के लिखे गीतों को बेहद कर्णप्रिय बनाया है। हालाँकि संगीत तो फ़िल्म के पहले ही हिट हो चुके हैं। रेडियो और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पहले ही फ़िल्म के गानों ने अपना जलवा बिखेरा है।
हमेशा की ही तरह हिमेश ने संगीत के साथ न्याय किया है। समीर अनजान, शब्बीर और आनंद राज आनंद के लिखे गीतों को बेहद कर्णप्रिय बनाया है। हालाँकि संगीत तो फ़िल्म के पहले ही हिट हो चुके हैं। रेडियो और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पहले ही फ़िल्म के गानों ने अपना जलवा बिखेरा है।
Loved the movie….good work