न्यूज़ डेस्क | नवप्रवाह न्यूज़ नेटवर्क
आत्महत्या एक एेसा क्षण है, जिसने यदि टालना संभव हो जाए, तो अनेक लोगों की जान बच सकती है. कई ऐसे लोग भी है, जिन्हें आत्महत्या से बचाया जा सका, ऐसे लोग मानते हैं कि यदि वे आत्महत्या कर लेते, तो बहुत बड़ी गलती करते. लेकिन आत्महत्या एक ऐसा क्षण होता है, जब व्यक्ति को लगता है कि अब कुछ नहीं बचा, मृत्यु के अलावा कोई चारा नहीं है. आत्महत्या के अनेक कारण हो सकते हैं, इनमें निराशा या असफलता के कारण सर्वाधिक है. इसके अलावा आत्मसम्मान, बेरोजगारी, घरेलू मामले, हताशा आदि. माना जाता है कि आर्थिक तंगहाली से लोग सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं, लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार घरेलू विवाद आत्महत्या के कारणाों में सबसे आगे है. इनमें पुरुषों की संख्या सबसे ज्यादा है. दूसरी ओर नौकरी पेशा महिलाओं की तुलना में घरेलू महिलाएं ज्यादा आत्महत्या करती है. हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने भी सुसाइड को लेकर नया डेटा जारी कर दिया है. इस डेटा के मुताबिक, 2019 में 1.39 लाख से ज्यादा लोगों ने सुसाइड कर अपनी जान गंवा दी. यानी हर दिन 381 और हर घंटे 16 लोग खुदकुशी कर रहे थे.रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में सुसाइड करने वालों का आंकड़ा 2018 की तुलना में 3.4% ज्यादा है. 2018 में 1.34 लाख लोगों ने सुसाइड की थी.
पिछले साल सुसाइड करने वाले 23.4% लोग दिहाड़ी मजदूरी करते थे. ऐसे 32 हजार 563 लोगों ने खुदकुशी कर ली. दिहाड़ी मजदूरों के बाद घर का काम संभालने वालीं हाउस वाइफ ने सबसे ज्यादा जान गंवाई. 2019 में देशभर में 21 हजार 359 हाउस वाइव्स ने सुसाइड कर ली. सुसाइड करने वालों में 14 हजार से ज्यादा लोग बेरोजगार थे. 10 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने भी आत्महत्या कर ली. इन सबके अलावा खेती-किसानी से जुड़े 10 हजार 281 लोगों ने भी सुसाइड कर जान दे दी. 2019 में देशभर में 72 मामले मास या फैमिली सुसाइड के भी दर्ज किए गए, जिनमें 180 लोगों ने जान दे दी. सबसे ज्यादा 16 मामले तमिलनाडु में आए थे, जिनमें 43 लोगों की जान गई.
अक्सर लोगों का मानना होता है कि सुसाइड के पीछे खराब आर्थिक हालत वजह होती होगी या फिर बेरोजगारी. लेकिन ऐसा नहीं है. एनसीआरबी के मुताबिक, पिछले साल जितने लोगों ने सुसाइड किया, उनमें से सबसे ज्यादा 32.4% ने परिवार की दिक्कतों से तंग आकर आत्महत्या कर ली. 2019 में 45 हजार 140 लोगों ने परिवार की दिक्कतों की वजह से सुसाइड की. सुसाइड का दूसरा बड़ा कारण बीमारी है. पिछले साल 23 हजार 830 लोगों ने बीमारी से परेशान होकर सुसाइड कर ली. इससे पता चलता है कि देश में अभी भी एक तबके तक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. तीसरा बड़ा कारण ड्रग एडिक्शन है, जिसकी वजह से पिछली साल 7 हजार 860 लोगों ने आत्महत्या कर ली. वहीं बेरोजगारी की वजह से 2 हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई.
सुसाइड करने वालों में 70% पुरुष पिछली साल सुसाइड करने वाले 1.39 लाख लोगों में से 70% से ज्यादा पुरुष थे. 2019 में पुरुषों ने 97 हजार 613 पुरुष और 41 हजार 493 महिलाएं थीं. जबकि, 17 ट्रांसजेंडर ने भी सुसाइड की.सबसे ज्यादा सुसाइड 18 से 30 साल की उम्र के लोगों ने की. इस एज ग्रुप के 48 हजार 774 लोगों ने सुसाइड की थी. जबकि, 45 साल से ऊपर 36 हजार 449 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी.करीब 50% सुसाइड सिर्फ 5 राज्यों में2019 में सुसाइड के 49.5% मामले सिर्फ 5 राज्यों में ही दर्ज किए गए.
इनमें सबसे ज्यादा 13.6% मामले महाराष्ट्र में सामने आए.बाकी 50.5% मामले देश के बचे 24 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में मिले. एकमात्र लक्षद्वीप ही ऐसा था, जहां सुसाइड का एक भी मामला नहीं आया. 5 साल में कितने बढ़ गए सुसाइड के मामले?2015 में देश में 1.33 लाख से ज्यादा सुसाइड के मामले दर्ज किए गए थे. 2019 में यह आंकड़ा 1.39 लाख के पार पहुंच गया. यानी पिछले पांच साल में खुदकुशी के मामलों में 4% से ज्यादा का इजाफा हो गया है.एनसीआरबी का डेटा बताता है कि 2016 और 2017 में सुसाइड के मामलों में कमी आई थी. 2016 में 1.31 लाख और 2017 में 1.29 लाख लोगों ने सुसाइड की थी. लेकिन, 2018 और 2019 में मामले बढ़ गए. 2018 में 1.34 लाख मामले आए थे.
सुसाइड के मामले में भारत पहले नंबर परपिछले साल डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि साउथ-ईस्ट एशियाई देशों में भारत में सुसाइड रेट सबसे ज्यादा है. डब्ल्यूएचओ ने 2016 के डेटा के आधार पर ये रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक, भारत में एक लाख आबादी पर 16.5 लोग सुसाइड कर लेते हैं. दूसरे नंबर पर श्रीलंका है, जहां एक लाख में 14.6 लोग खुदकुशी कर लेते हैं.डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल 8 लाख से ज्यादा लोग सुसाइड करते हैं, यानी हर 40 सेकंड में एक सुसाइड.0