इलेक्टोरल बॉन्ड्स का काला सच!

नृपेन्द्र कुमार मौर्य| navpravah.com

नई दिल्ली| लोकसभा चुनाव शेड्यूल जारी होने से पहले सुप्रीम काेर्ट के आदेश का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा मिले इलेक्टोरल बॉन्ड डिटेल अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिए. इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े आंकड़ों को लेकर अब कई हैरान करने वाली खबरें भी सामने आ रही हैं. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक 2019 और 2024 के बीच राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले टॉप 5 डोनर्स में से तीन ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने उस वक्त इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जब उनके यहां ईडी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की जांच चल रही थीं. टॉप 5 इलेक्टोरल बॉन्ड डोनर्स में ये तीन कंपनी- फ्यूचर गेमिंग, मेघा इंजीनियरिंग और वेदांता शामिल हैं.

मेसर्स फ्यूचर गेमिंग सॉल्यूशंस (पी) लिमिटेड के खिलाफ पीएमएलए के प्रावधानों के तहत जांच शुरू की. फिलहाल इस कंपनी का नाम मेसर्स फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज (पी) लिमिटेड और पूर्व में मार्टिन लॉटरी एजेंसीज लिमिटेड था. ईडी की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई द्वारा दायर एक याचिका के बाद शुरू की हुई थी. ईडी के अनुसार, मार्टिन और अन्य ने लॉटरी विनियमन अधिनियम, 1998 के प्रावधानों का उल्लंघन करने और सिक्किम सरकार को धोखा देकर गलत लाभ प्राप्त करने के लिए एक आपराधिक साजिश रची. ईडी ने 22 जुलाई, 2019 को दिए अपने एक बयान में कहा था कि मार्टिन और उनके सहयोगियों ने 1 अप्रैल 2009 से 31 अगस्त 2010 के दौरान पुरस्कार विजेता टिकटों के दावे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाकर 910.3 करोड़ रुपये की अवैध कमाई की थी. 2019 से लेकर 2024 के बीच कंपनी ने 21 अक्टूबर, 2020 को इलेक्टोरल बॉन्ड की पहली किश्त खरीदी थी.

चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों मुताबिक दूसरी सबसे बड़ी इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदार कंपनी मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड है. जिसने 2019 और 2024 के बीच 1000 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे हैं. कृष्णा रेड्डी (Krishna Reddy) की कंपनी मेघा इंजीनियरिंग तेलंगाना सरकार की कालेश्वरम डैम प्रोजक्ट (Kaleswaram Dam project) जैसी कई परियोजनाओं में शामिल है. अक्टूबर 2019 में आयकर विभाग ने कंपनी के दफ्तरों पर छापेमारी की थी. इसके बाद ईडी की ओर से भी जांच शुरू की गई. उसी साल 12 अप्रैल को मेघा इंजीनियरिंग ने 50 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे थे.

राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के वास्ते इलेक्ट्रोरल बॉन्ड खरीदने वाला पांचवां सबसे बड़ा डोनर अनिल अग्रवाल (Anil Aggarwal) का वेदांता ग्रुप है, जिसने 376 करोड़ रुपये के बांड खरीदे हैं, कंपनी ने अप्रैल 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड की पहली किश्त खरीदी थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 के मध्य में, ईडी ने दावा किया था कि उसके पास वीज़ा के लिए रिश्वत मामले में वेदांता ग्रुप के शामिल होने से जुड़े पर्याप्त सबूत हैं, जिसमें कंपनी ने चीन के कुछ नागरिकों को नियमों को कथित रूप से तोड़कर वीजा दिया था. ईडी द्वारा सीबीआई को भेजे गए एक रेफरेंस में 2022 में भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया, जिसके बाद ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू की और उसके बाद इस कंपनी ने भी 39 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे थे.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने आज एसबीआई को फटकार लगाया सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े यूनिक अल्फान्यूमरिक कोड नहीं बताने के मामले में नोटिस जारी किया है.

इसी कोड के ज़रिए इलेक्टोरल बॉन्ड्स से चुनावी चंदा देने वालों और राजनीतिक पार्टियों के बीच मिलान संभव होगा. यानी पता चलेगा कि किस कंपनी या व्यक्ति ने किस राजनीतिक पार्टी को चुनावी चंदे के रूप में कितनी रक़म दी है.

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एसबीआई से कहा, ”हमने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सभी अहम जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कहा था. इनमें बॉन्ड के ख़रीदार, बॉन्ड की रक़म और ख़रीदने की तारीख़ शामिल हैं. बॉन्ड के सीरियल नंबर को आपने नहीं बताया है. हमने अपने फ़ैसले में सभी जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कहा था.”

चुनाव आयोग की ओर से जारी की गई 763 की दो लिस्ट में से एक पर बॉन्ड ख़रीदने वालों की जानकारी है तो दूसरी लिस्ट में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड का ब्यौरा है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखा है कि एसबीआई ने चुनाव आयोग के जो आँकड़े दिए हैं, उससे ये पता करना मुश्किल होगा किस बॉन्ड ख़रीदार ने किस पार्टी के लिए इसे ख़रीदा. एसबीआई ने ये जानकारी देने के लिए जून 2024 तक का समय मांगा था.”

ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आँकड़े सार्वजनिक होते ही यह पता चल जाएगा कि किस राजनीतिक पार्टी को किससे कितनी रक़म चंदे के रूप में मिली है. लेकिन यूनिक नंबर न होने से ये नही पता चल पा रहा है कि किस पार्टी को कौनसी कंपनी ने कितने रकम दिए.

चुनावी बॉन्ड स्कीम में याचिकाकर्ता एडीआर की तरफ़ से अदालत में पेश हुए सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने एक्स पर लिखा, ”चुनाव आयोग की ओर से अपलोड की गई इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी में बॉन्ड के सीरियल नंबर नहीं हैं. इसी सीरियल नंबर से ये पता चलता है कि किसने किसके लिए बॉन्ड ख़रीदा जबकि एसबीआई के शपथपत्र में कहा गया था कि ये जानकारी अलग-अलग जगह दर्ज हैं.”

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखा है कि एसबीआई ने चुनाव आयोग के जो आँकड़े दिए हैं, उससे ये पता करना मुश्किल होगा किस बॉन्ड ख़रीदार ने किस पार्टी के लिए इसे ख़रीदा. एसबीआई ने ये जानकारी देने के लिए जून 2024 तक का समय मांगा था.” लेकिन एसबीआई ने जानकारी तो दी लेकिन बॉन्ड नंबर नहीं बताया!

अब देखते हैं कि आज के सुप्रीम फटकार के बाद क्या एसबीआई यूनिक नंबर भी जारी कर सकता है क्या? और फिर ये मामला और रोचक हो जाएगा. और लोकसभा चुनाव को और रोचक बनाएगा.

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