संसद में पेश होगा ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल, देशभर में नई बहस शुरू

इशिका गुप्ता| navpravah.com

नई दिल्ली| एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए मोदी कैबिनेट ने बुधवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। इस फैसले से देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की राह साफ हो गई है। यह कदम पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया, जो इस व्यवस्था की व्यवहार्यता पर विचार कर रही थी।

2029 से पहले लागू होगी व्यवस्था: अमित शाह

कैबिनेट के इस फैसले से ठीक एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह साफ किया था कि 2029 से पहले हर हाल में वन नेशन, वन इलेक्शन लागू किया जाएगा। शाह ने कहा था, “हमारी योजना इस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही इसे लागू करने की है और इसे लेकर तैयारियां जोरों पर हैं।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में इस मुद्दे पर जोर दिया था। उन्होंने कहा, “देश में बार-बार चुनाव होने से विकास कार्य प्रभावित होते हैं। हमें वन नेशन, वन इलेक्शन की दिशा में आगे बढ़ना ही होगा।”

क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’?

इस नीति के तहत देशभर में एक ही समय पर लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे। अभी की व्यवस्था में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे प्रशासनिक और सुरक्षा तंत्र पर दबाव पड़ता है। नई व्यवस्था से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा और चुनावी प्रक्रिया में तेजी आएगी।

सरकार के अनुसार, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लागू होने से कई फायदे होंगे:

1. प्रशासनिक कार्यों में तेजी: बार-बार चुनाव से सरकारी मशीनरी पर पड़ने वाला दबाव कम होगा।

2. सतत विकास की ओर ध्यान: बार-बार चुनाव होने से अक्सर लोकलुभावन योजनाओं पर फोकस होता है, जो दीर्घकालिक विकास को प्रभावित करता है। नई व्यवस्था लंबी अवधि की नीतियों पर जोर देगी।

3. वोट प्रतिशत में वृद्धि: एक साथ चुनाव होने से मतदाता आसानी से एक ही दिन कई चुनावों में वोट डाल सकेंगे, जिससे वोट प्रतिशत बढ़ने की संभावना है।

चुनौतियां और विपक्ष का रुख

हालांकि, इस प्रस्ताव का विपक्ष ने तीखा विरोध किया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और सपा जैसे दल इसे असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी करार दे रहे हैं। उनका मानना है कि क्षेत्रीय मुद्दे हाशिए पर चले जाएंगे और राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहेंगे। इसके अलावा, संविधान में कई संशोधन करने की भी जरूरत पड़ेगी, जो अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने पर अक्सर मतदाता केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी को वोट देते हैं। क्षेत्रीय दलों को यह डर है कि यह व्यवस्था उनके राजनीतिक अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है।

क्या होगा आगे?

कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब इस प्रस्ताव को संसद में पेश किया जाएगा, जहां इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होगी। हालांकि, अभी यह देखना बाकी है कि यह बड़ा राजनीतिक बदलाव कब और कैसे लागू किया जाएगा, लेकिन इस कदम ने देश के राजनीतिक परिदृश्य में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

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