लखनऊ. बहुजन समाज पार्टी उपचुनाव के सहारे वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव का रास्ता तैयार करने की तैयारी में जुट गई है। लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से उत्तर प्रदेश में नंबर दो की हैसियत मिलने से मायावती को लगने लगा है कि पार्टी उपचुनाव में भी बहुत ज्यादा सीटों पर सफलता हासिल कर लेगी और अगले विधानसभा चुनाव में भी बाजी मार सकती है।
लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा के उपचुनाव में भी बसपा के लिए हारने को कुछ है नहीं, जीतने को सारा मैदान और लड़ने का भरपूर माद्दा भी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर और सपा-कांग्रेस गठबंधन से अकेले लोहा लेकर भी मायावती अपना ‘बेस वोट’ बचाने में सफल रहीं हैं। इसीलिए बसपा मुखिया ने गठबंधन के बैगर ही उपचुनाव में अकेले हाथ अजमाने की सोची है। बसपा प्रमुख मायावती के पास उपचुनाव की 11 में से कम से कम चार सीटों पर जीत की उम्मीदें सजाने का आधार जरूर है।
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि गठबंधन में दोनों दलों के बीच यह सहमति बनी थी कि सपा लोकसभा चुनाव में मायावती को प्रधानमंत्री के तौर पर पेश कर अपनी रजामंदी देगी, जबकि बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के पद का समर्थन करेगी। बसपा केंद्र की राजनीति में रहेगी और सपा उप्र की सियासत को संभालेगी। इसीलिए गठबंधन भी बना था, लेकिन चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आने से दोनों के मंसूबों पर पानी फिर गया।
हालांकि, भविष्य की राजनीति के लिए मायावती शायद अभी समीक्षा और संगठन की ताकत परखने के मूड में हैं। शायद इसीलिए उपचुनाव के लिए गठबंधन तोड़ने के बाद भी सपा से पूरी तरह ब्रेकअप न होने की बात कहकर फिर हाथ मिलाने का विकल्प खुला रखा है। उपचुनावों के नतीजे काफी हद तक एक इशारा कर ही देंगे कि अब अकेले सियासी सफर बसपा के लिए मुश्किल होगा या सामान्य।
बसपा की इस समय विधानसभा में महज 19 सीटें हैं, जबकि पार्टी ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें सपा को 47 और कांग्रेस को महज 7 सीटें ही मिली थीं। बसपा के नेताओं का कहना है कि उनके पास 2022 के चुनाव में रणनीति बनाने के लिए ठीकठाक वक्त है।