By Amit Dwivedi
आप हीरो बनने आये थे ?
खैय्याम : मुझे सहगल साहब बहोत पसंद थे, जब भी उन्हें देखता मन में ये बात कौंधती की यार मुझे भी हीरो बनना है। मेरी इस बात पे मेरे घर का कोई भी शख्स राज़ी नहीं था सारे लोग इसके विरोध में थे । मेरी बातों और जिद से लोग नाराज़ थे और सब समझ भी गए थे कि अब शायद रोक पाना मुश्किल होगा। घर वालों ने तमाचे भी जड़े लेकिन क्या करें? घरवालों ने तो साफ़ कह दिया था कि अगर आपको हमारे साथ रहना है तो आप इन सब चीज़ों के बारे में सोचना छोड़ना पड़ेगा।
…तो हीरो बनने के लिए खैय्याम साहब ने क्या किया ?
खैय्याम : उन दिनों मैं गवर्नमेंट हाई स्कूल में पढता था , पांचवी में था उस समय। उस समय मन में ये ख्याल आया कि सारे बड़े काम दिल्ली से ही हुआ करते हैं तो शायद फिल्में भी वहीँ बनती होंगी. दिल्ली के लिए रवाना हो गए वहीँ दिल्ली में ही हमारे चाचा जान रहा करते थे. जब हम चाचा के यहाँ पहुचे तो वो बड़े खुश हुए लेकिन अगले ही पल उन्होंने पूछा कि भाई जान कहाँ हैं? तो मैंने कहा कि मैं अकेले आया हूँ सारा माज़रा वो समझ गए बस और क्या था जड़ दिए कुछ थप्पड़ | गनीमत थी कि दादी उन दिनों चचा के यहाँ ही रहती थीं उन्होंने बचाया मुझे. चचा ने मेरा एडमिशन वहीँ के एक स्कूल में कराया तो ज़रूर लेकिन जल्दी ही समझ गए कि इसका मन पढ़ाई में लगता नहीं मेरी रूचि
भी वो जल्दी ही समझ गए. हीरो तो नहीं बने लेकिन दिल्ली ने म्यूजिक के लिए एक दिशा ज़रूर दी |
चिश्ती बाबा से आपका गहरा जुड़ाव रहा , कुछ बताएं |
खैय्याम : चिश्ती बाबा से मेरी मुलाक़ात मेरे दोस्त ने करवाई थी . जब मैंने चिश्ती साहब को देखा तो वह उस वक़्त वो पियानो पर बड़ी सुन्दर धुन बजा रहे थे कुछ देर बजाने के बाद उन्होंने अपने एक साथी से पूछा की मैं कौन सा टुकड़ा बजा रहा था? साथी ने कहा बाबा आप इतनी साड़ी धुनें बजा चुके हैं याद नहीं आ रहा की कौन सी धुन थी , इतने में मैंने उनकी भूली हुई धुन बता दी। पहले तो गुस्सा हुए की बिना अनुमति के ये कौन घुस आया है लेकिन जब बाद में उन्हें सारी बातें पता चली तो खुश हुए और गले लगाया और तभी से मैं उनका शिष्य भी बना । उन दिनों चिश्ती बाबा के पास काफी प्रोजेक्ट थे काम करने के लिए। मुझसे उन्होनें रहने और खाने के बारे में पूछा तो मैंने स्पष्ट उन्हें बता दिया, कोई पनाह तो थी नहीं मेरे पास तो बाबा के यहाँ ही ठिकाना मिला।
आप चिश्ती बाबा के यहाँ सीखने लगे , आमदनी का कोई श्रोत था उन दिनों ?
खैय्याम : म्यूजिक के लोग बड़े खुशमिजाज़ और मौजी किस्म के होते हैं लेकिन मैं हमेशा से बड़ा शांत रहता था ,कोई नशा नहीं करता था मैं। मुझे इस बात की खबर नहीं थी की इस बात पर बी . आर . चोपड़ा साहब गौर कर रहे थे। एक दिन सबको पैसे दिए जा रहे थे ,सब बुलाया जाता और उन्हें पैसे दिए जाते लेकिन मेरा नाम अंत तक नहीं लिया गया तो चोपड़ा साहब ने पूछह की भाई खय्याम का नाम क्यूँ नहीं? चिश्ती सहा ने कहा की साहब ये तो अभी सीख रहे हैं। चोपड़ा साहब ने अपने असिस्टेंट को बुलाया और मुझे भी पैसे दिए, तब से मुझे हर महीने 125 रुपये हर महीने पगार मिला करता। इस तरह से मेरी पहली कमाई शुरू हुई।
जोहरा जी के साथ आपने ‘रोमियो-जूलिएट’ फिल्म में गाया भी। उससे कुछ फायदा हुआ कैरियर को?
खैय्याम : मेरे गुरूजी की वजह से मुझे ‘रोमिओ-जूलिएट ‘ फिल्म में जोहरा जी के साथ गाने का मौका मिला . इसी गाने को सुनकर नर्गिस जी की माँ नेमुझे बुलवाया। उन दिनों मेरा नाम ‘प्रेम कुमार’ रख दिया गया था। मुझे डर लगा कि मुझसे कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई, क्योंकि नर्गिस जी की माँ खुद संगीत की बहोत अच्छी जानकार थीं। उनका नाम जद्दन बाई था लेकिन उन्हें लोग बीबी के नाम से बुलाते थे। मुझे घर बुलाकर उन्होंने गाना सुना ,खुश हुईं और आश्वाशन दिया की मिलते रहना , काम देंगे तुम्हे। उनका इतना कहना ही मेरे लिए किसी काम से कम नहीं था।
फिल्म ‘फूटपाथ’के बारे में कुछ बताएं।
खैय्याम : फूटपाथ दिलवाने में नर्गिस जी की माँ का और दिलीप साहब का बड़ा योगदान था . इस फिल्म में आशा जी से मैंने चार गाने गवाए .
‘फिर सुबह होगी’ यह फिल्म काफी चर्चित रही। क्या कहेंगे आप इसके बारे में ?
खैय्याम : क्या कहने यार, आउटस्टैंडिंग …जितनी तारीफ करें कम होगी। साहिर साहब को जब डिटेल्स मिलीं तो उन्होंने म्यूजिक के लिए मेरा नाम लिया . सहगल साहब ने कहा की अगर खैय्याम राज साहब (राज कपूर) को धुन सुनाएं और उन्हें पसंद आ जाये तो मुझे कोई ऐतराज नहीं । साहिर साहब ने कविता लिखी ‘ वो सुबह कभी तो आएगी’ और मुझे सारी बातें बताई तो मैंने पांच धुनें बनाई उसकी। मैंने जब उन्हें पहली ही धुन सुनाई वो एकदम खुश हो गए,ऐसे ही एक एक करके मैंने उन्हें पाँचों धुनें सुनाई। सहगल साहब को राज साहब लेकर गए तो मैंने सोचा की अब हमें ये फिल्म तो नहीं मिलने वाली . हम इंतज़ार करते रहे ,सहगल साहब लौटे तो मेरा माथा चूमने लगे और बधाई दी। बाद में राज साहब आये तो फिर से पांचो धुनें सुने और कहा की हम पाँचों धुनें रिकॉर्ड करेंगे .
पहले कुछ ‘आखिरी ख़त’ के बारे में बताएं फिर ये बताएं की आखिरी ख़त के बाद ‘कभी-कभी’ में इतना लम्बा गैप क्यों ?
खैय्याम : चेतन साहब ने कहा की एक ही गाना करना है आपको। मैंने सोचा की खुद न खास्ता कुछ गड़बड़ हो गई तो … ? फिर से फ़ोन आया उनका मीटिंग हुई साथ में कैफ़ी साहब भी थे उन्होंने कहा की खैय्याम गाना एक ही है और आप ही को करनी है। “बहारों मेरा जीवन सँवारो ” यह उन्हें इतना पसंद आया की आगे हमने इसी फिल्म के लिए पांच गाने रिकॉर्ड किए . ‘आखिरी ख़त’ और ‘कभी-कभी’ के बीच में इतने लम्बे गैप के बारे में इंडस्ट्री के ही लोगो का सोचना है की फिल्म इंडस्ट्री ने मुझे अकेला छोड़ दिया था लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है। हम फिल्में चुनाव करके ही करते थे। उस दरमियान हमने ढेरों भजनों और ग़ज़लों के एलबम्स किये जो काफी ज्यादा लोकप्रिय रहे।
इतनी सारी बेहतरीन फिल्में आपने दी हैं, ढेरो सम्मान आपको मिला। इतना लम्बा सफ़र …कैसा लगता है बीते कल के बारे में सोचकर ?
खैय्याम : बड़ा सुकून मिलता है और इस बात की बड़ी ख़ुशी होती है की हमने जितनी भी फिल्में की भले ही वो अदद में कम हों लेकिन ऐतिहासिक रहीं । उम्र के इस पड़ाव पर बीते हुए कल को याद करके आप मुस्कुरा दें इससे अच्छा क्या हो सकता है।