डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
इतिहास की प्रस्तुति और लेखन, हमेशा प्रश्नों के घेरे में रहे हैं। भारत के परिप्रेक्ष्य में दुविधाएं बढ़ जाती हैं, जब भी इतिहास के लेखन और प्रस्तुति की बात आती है। भारत एक विशाल और महान संस्कृति वाला देश रहा है और आक्रांताओं के द्वारा, इसका दोहन लगातार किया जाता रहा है। यही कारण है कि इतिहास भी विजेताओं ने ही लिखा अधिकतर। पराजित जनता की चेतना गौरव गाथा को मिथ्या मानने लगती है या उसे मनवाया जाता है, ताकि विजेता अपने अत्याचारों और भ्रष्टाचारों को सार्थक सिद्ध कर सके। भारत की विदूषी, गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक ने, मूल और पराजित निवासियों के, विदेशियों द्वारा प्रस्तुत इतिहास के संस्करण को आसानी से मान लेने की प्रक्रिया को एक संज्ञा दी है, “Worlding”. इस प्रक्रिया के तहत शासित, अपना इतिहास प्रस्तुत नहीं कर पाता और मानने लगता है, वो सब कुछ, जो बाहरी लोग उसे बताते हैं। भारत में भी यही हुआ।
जब पं०जवाहरलाल नेहरू ने, “Discovery of India” लिखी, तब ये संतोष हुआ कि किसी भारतीय ने अपने देश का इतिहास लिखा। हालांकि उनके प्राथमिक स्त्रोत भी विदेशी पुस्तकें ही रहीं, लेकिन भारतीय होने के कारण, उनकी व्याख्या अधिक मान्य थी। ये किताब, भारत में लिखी गई सबसे प्रशंसनीय किताबों में से एक है और इसी पुस्तक को आधार बनाकर महान निर्देशक श्याम बेनेगल ने, 1988 में “भारत एक खोज” नाम का एक धारावाहिक बनाया और इसे दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया।
इस धारावाहिक के कुल 53 एपिसोड बने और भारत के 5000 साल का इतिहास इसमें दिखाया गया। लिखे गए इतिहास को “हिस्ट्रियोग्राफ़ी” कहते हैं और जब यही इतिहास, चित्रों या चलचित्रों के माध्यम से कलात्मक स्वतंत्रता के साथ दिखाया जाता है, तो इसे “हिस्ट्रियोफ़ोटी” कहा जाता है। हिस्ट्रियोफ़ोटी में तथ्यों से भटक जाने की पूरी संभावना होती है, लेकिन “भारत एक खोज”, इस मामले में एक अपवाद है। इसमें नेहरू जी की पुस्तक (अगर इसे विश्वसनीय इतिहास की पुस्तक मानें) का सटीक नाट्य रूपांतर प्रस्तुत किया गया ।
1988 नेहरू जी के जन्म का शताब्दी वर्ष था, इसलिए ये धारावाहिक, उसी साल प्रसारित होना शुरू हुआ। श्याम बेनेगल न केवल इस धारावाहिक के निर्देशक थे, उन्होंने इसके लेखन में भी योगदान दिया। पटकथा, शमा ज़ैदी, सुनील शानबाग और संदीप पेंडसे ने लिखा। संवाद, और हिन्दी में पूरी पटकथा के बड़े हिस्से का लेखन, वसंत देव और अशोक मिश्रा के ज़िम्मे था।
ये एक वृहद पैमाने पर बनाया गया धारावाहिक था और इसमें भारत का प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास दिखाया गया था, अतः उस समय के लगभग सभी बड़े, छोटे कलाकारों ने इसमें काम किया। इरफ़ान ख़ान से लेकर सदाशिव अमरापुरकर और आलोकनाथ से लेकर वीरेन्द्र सक्सेना तक ने इसमें काम किया। अखिलेन्द्र मिश्रा ने भी कुछ किरदार निभाए।
इस धारावाहिक में बीच-बीच में एक वाचक की आवाज़ आती थी और ये आवाज़, प्रसिद्ध अभिनेता, ओम पुरी की थी। रोशन सेठ, नेहरू जी का किरदार निभा रहे थे। इतिहास के हर काल के प्रदर्शन में, वेश-भूषा भिन्न थी और इसका ज़िम्मा सलीम आरिफ़ को दिया गया था। इसकी सिनेमैटोग्राफ़ी, वी०के०मूर्ति ने की थी और संपादन, सुतनु गुप्ता और दीपक सहगल का था। इस धारावाहिक के कार्यकारी निर्माता, राज पायस थे। कुछ भागों में संजय लीला भंसाली का भी संपादन था।
“वैसे तो इस धारावाहिक में सब कुछ बहुत उच्च स्तर का था लेकिन जब भी कभी सर्वोत्तम शीर्षक गीतों की सूची बनेगी, इस धारावाहिक का शीर्षक गीत, शीर्ष पर ही होगा। “सृष्टि से पहले सत् भी नहीं था, असत् भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं था, आकाश भी नहीं” , इस महान गीत की गूंज आज भी विशालता का द्योतक लगती है, ये शब्द, संस्कृत श्लोकों का हिन्दी अनुवाद हैं और ये कठिन कार्य, वसंत देव ने किया था।”
इस गीत के साथ, भारत की विशालता और महानता को दर्शाता और महसूस करवाता संगीत, वनराज भाटिया का था।
सुनें शीर्षक गीत-
दूरदर्शन ने भारत की, संभावना से भरी पीढ़ी को इतिहास का महत्व बताने और उसके प्रति रूचि जगाने का काम शुरू कर दिया था और आने वाले समय में और भी ऐसी प्रस्तुतियां होनी थीं, लेकिन जिस कौशल के साथ ये धारावाहिक बनाया गया था, वो दोबारा देखने को नहीं मिला।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)