डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
किसी भी स्वस्थ समाज में, जो बुद्धि और भावना से धनी होता है, वहां, साहित्य और बाक़ी कलात्मक अभिव्यक्तियों का एक बिन्दु पर अक्सर मिलते रहना अवश्य होता रहता है। एक स्तर और ऊपर उठने पर, विज्ञान भी इस बिन्दु पर आ मिलता है। विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना का अद्भुत विकास हुआ है पिछले कुछ दशकों में, लेकिन 80 का दशक वो अंतिम दशक था, जहाँ साहित्य, संगीत और चित्रकला के संगम ने, सांस्कृतिक रूप से हमारी पीढ़ी को बहुत समृद्ध किया और प्रस्तुतियों के सभी माध्यमों ने इसे खूब बढ़ाया।
दूरदर्शन भी एक माध्यम था और यहाँ, साहित्य, संगीत और चित्रकला के संगम ने एक कभी न भूलने वाला धारावाहिक दिया, भारत को, नाम था, “मालगुडी डेज़”।
1986 में ये धारावाहिक दूरदर्शन पर आया और इसने लोकप्रियता के शिखर तक की यात्रा, बहुत कम समय में कर ली। इस धारावाहिक के कुल 54 एपिसोड्स बने, जिसमें से 39 का निर्देशन, शंकर नाग ने किया था और ये 1986 में प्रसारित किया गया, दूरदर्शन पर।
बाक़ी के 15 एपिसोड, कविता लंकेश ने निर्देशित किए और इसे 2006 में प्रसारित किया गया। पहले 13 एपिसोड हिन्दी और अंग्रेज़ी, दोनों भाषाओं में बने, लेकिन बाद के बाक़ी, केवल हिन्दी में।शंकर नाग की मात्र 35 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई, नहीं तो सारे एपिसोड बहुत पहले बन गए होते।
“भारत के महान लेखक, आर०के० नारायण की किताबें, “A Horse and Two Goats”, “Swami and Friends” और “Malgudi Days”, बहुत प्रसिद्ध थीं। इस धारावाहिक की सारी कहानियां, इन्हीं किताबों से ली गईं थीं।”
आर०के० नारायण के भाई और महान कार्टूनिस्ट, आर०के० लक्ष्मण ने शीर्षक गीत के बैकड्रॉप में दिखने वाले कार्टून बनाए। जो चीज़ सबसे ज़्यादा, यादों में जा बसी दर्शकों के, वो था शीर्षक गीत, “ता ना ना ता ना ना ना ना”। इसके संगीतकार , एल० वैद्यनाथन थे।
ऐसा बहुत बार होता आया है कि अपनी कहानियों को उचित प्रसार देने के लिए, साहित्यकारों ने कल्पनात्मक स्थानों का वर्णन किया। प्रसिद्ध अंग्रेज़ उपन्यासकार टॉमस हार्डी का काल्पनिक स्थान, “वेसेक्स” था, “मालगुडी” को भी दर्शकों और पाठकों ने ख़ूब पसंद किया। इतनी गहरी छाप पड़ी इस जगह के प्रस्तुति की, कि भारतीय रेलवे ने, कर्नाटक के शिमोगा ज़िले के अरासलु स्टेशन का नाम “मालगुडी” रख दिया है।
गिरीश कर्नाड, अनंत नाग और दीना पाठक जैसे दिग्गज कलाकारों ने, इस धारावाहिक में काम किया। “स्वामी” बने मास्टर मंजूनाथ का चेहरा, अब तक कोई नहीं भूला।
सुनें शीर्षक गीत-
उस दौर के बच्चे, जो अब बच्चों के माता-पिता हैं, वे स्कूल में जब अपने बच्चों को अपने दोस्तों के साथ देखते हैं, तो अकेले भी मुस्कुराने लगते हैं और निश्चित तौर पर जो संगीत, उनके मन में चलता होगा, वो, होता होगा, “ता ना ना ता ना ना ना ना”।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)