डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
मुल्क़ का तक़सीम होना और एक लकीर के दोनों तरफ़ हमेशा के लिए अलग बसर करने की कवायद में लगना, कुछ लोगों के लिए सियासत था, कुछ के लिए हसरत लेकिन सब के लिए ये फ़ुरक़त भी था। कितना ख़ून बहा, कितनी जानें गईं, कितने सपने जले और कितनी तमन्नाएं दफ़न हुईं, इसका हिसाब नहीं और जो बच गए लकीर के दोनों तरफ़, उनके पास माज़ी की रोशनी और मुस्तक़बिल के सन्नाटे के अलावा कुछ भी न था। बस एक चीज़ मुसलसल चल रहा थी और आगे बढ़ रहा था, वो था समय। समय अपने साथ कई बुनियादों को हिला रहा था और ऐसी ही एक परिवार की बुनियाद की कहानी थी, “बुनियाद”।
1986 वो साल था, जब दूरदर्शन के पिटारे से, एक के बाद एक ऐसे नायाब तोहफ़े निकल रहे थे, जिन्हें और जिनकी यादों को आज तक सहेज कर रखा गया है। “बुनियाद”, एक बहुत बड़ा धारावाहिक था। ये हर मामले में बड़ा था। जी० पी० सिप्पी के संरक्षण में, इसके निर्माण का काम अमित खन्ना ने संभाला और निर्देशन, रमेश सिप्पी और ज्योति सरूप ने किया। ये एक सोप ओपेरा था और भारत के टेलीविज़न के इतिहास में, यही पहला धारावाहिक था, जो सप्ताह में एक से ज़्यादा दिन दिखाया जाता था। ये सप्ताह में दो दिन प्रसारित किया जाता था।
“ये वो दौर था, जब दूरदर्शन के निदेशक, हरीश खन्ना थे और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव, एस०एस० गिल थे। इन दोनों ने दूरदर्शन का द्वार, निजी प्रोडक्शन हाउसेज़ के लिए खोला और जब, अमित खन्ना और रमेश सिप्पी ने इसकी ज़िम्मेदारी ली, तो कोई कसर न छोड़ी। कला निर्देशन के लिए, सुधेन्दु रॉय जैसे बेहतरीन निर्देशक को चुना गया, और वेश-भूषा के लिए सरोश मोदी को चुना गया।”
200 लोगों की टीम के 15 महीनों की मेहनत के बाद ये धारावाहिक बना और इसके 104 एपिसोड प्रसारित किए गए। सिनेमाटोग्राफ़ी, के०के० महाजन जैसे दिग्गज ने किया और संपादन एम०एस०शिंदे ने किया। इतने बड़े नाम इस धारावाहिक से जुड़े थे कि इसका स्तर बहुत उठ चला था।
कलाकारों की बात की जाए, तो आलोकनाथ (हवेलीराम) के परिवार की ये कहानी उनकी आने वाली पीढ़ियों की ज़िंदगी तक चली। इतने बड़े कालखंड में बदलते तौर तरीकों और वेश-भूषा का भी पूरा ध्यान, निर्माता और निर्देशक ने रखा। अनीता कंवर (लाजो जी), गोगा कपूर (भाई आत्माराम),किरन जुनेजा (वीरावली), विजयेन्द्र घाटगे (वृषभान) के अलावा नीना गुप्ता, सोनी राज़दान, दलीप ताहिल, कंवलजीत, मज़हर ख़ान, लीला मिश्रा, कृतिका देसाई, गिरिजा शंकर, अभिनव चतुर्वेदी, राजेश पुरी, अरुण जोशी, विनोद नागपाल और अंजना मुमताज़ जैसे कई और बेहतरीन कलाकारों ने काम किया।
इतनी शानदार तैयारी के साथ, ये धारावाहिक दूरदर्शन पर आया कि इसने सबको अपना बना लिया। इस धारावाहिक के पहले एपिसोड में ही एक संवाद में अनीता कंवर (लाजो जी) कहती हैं, “कैसी रौनकें हुआ करती थीं इस गली में, लेकिन अब तो…” और यहीं से दर्शक, अपनी जिज्ञासा और कई सवाल लिए कथानक से सीधा जुड़ जाता है।
सुनें शीर्षक गीत-
इस धारावाहिक का शीर्षक गीत मशहूर गायक अनूप जलोटा ने बनाया था और हर एपिसोड के शुरू में जब ये बजता था, तो ज़िंदगी का एक फ़लसफ़ा दिल दोहराने लगता था, कितनी सच है ये बात कि:
“कहीं तो है सपना और कहीं याद
कहीं तो हंसी रे, कहीं फ़रियाद
पलछिन पलछिन तेरे मेरे
जीवन की यही बुनियाद…”
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)