बोलती तस्वीरें- “शम्मी नारंग”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

दस्त- ब- दस्त ली जाती हैं ख़बरें, जिन्हें ख़य्याम नहीं बताते , कुछ शख्स, किसी तरफ़ से नहीं , बस आवाम के लिए कहते हैं , और जब से दूरदर्शन पर ये खबरें सुनाई जाने लगीं , तब से इस के साथ कुछ चेहरे जुड़ गए और आदत  की तरह जुड़ गए, उन लोगों के साथ जो उस दौर में ज़िन्दगी को बदलते हुए देख रहे थे। ये अंदाज़ा तक न था कि  एक ऐसा भी वक़्त आएगा जब खबरें कही और बताई नहीं जायेंगी, चीख़ चीख़ कर मनवाई जाएंगी। शोर शराबे से बिलकुल दूर, ख़बर बताने वाले,  पूरे अदब और तहज़ीब के साथ ख़बरें सुनाते थे। न कोई हड़बड़ी, न कोई बेचैनी, बस ज़िम्मेदारी से ख़बरें बता देना इनका काम होता था। इतनी ख़ूबसूरती से ख़बरें सुनाना, एक अदायगी के जैसा ही था और जब इन आवाज़ों की याद आती है, तो एक चेहरा ज़रूर ज़हन में आता है, शम्मी नारंग का चेहरा।

‘शम्मी नारंग’

बात 1982 की है, जब हज़ारों की भीड़ का हिस्सा एक नौजवान भी था, मौक़ा था दूरदर्शन पर न्यूज़ रीडर बनने के लिए इंटरव्यू का। शम्मी नारंग ही वो नौजवान थे, जो भीड़ का हिस्सा थे, और बस अपने वालिद के कहने के कारण यहाँ तक आ गए थे। इसके कुछ दिन पहले ही ये Voice of America के लिए काम कर चुके थे। United States Information Service के तकनीकी निर्देशक, फ़्लैनेगर ने माइक टेस्टिंग के दौरान इनकी आवाज़ सुनी और इन्हें मौक़ा दिया।

एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो में ‘शम्मी नारंग’

इंटरव्यू का दिन आसान न था और सभी लोग जो वहाँ इसके लिए आए थे, उनको बस एक लाइन पढ़ने के बाद रोक दिया जाता था और बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया जाता था। जब शम्मी नारंग की बारी आई, तो ये भी एक लाइन पढ़ कर रुक गए, लेकिन उन्हें आगे पढ़ने को कहा गया, ये कुछ दूर पढ़ कर फिर रुके, और फिर आगे पढ़ने को कहा गया। ऐसा करते इन्होंने पूरा पृष्ठ पढ़ दिया।

“उस ज़माने में टेलीप्रॉम्पटर नहीं होते थे और पृष्ठों को ही पढ़ना पड़ता था। जब शम्मी नारंग पढ़ रहे थे, दूसरे लोगों की तरह पृष्ठों से ज़्यादा कैमरे में देख रहे थे, ये कमाल की बात थी। जब इन्होंने पढ़ लिया और बाहर खड़े हो गए तो अंदर से एक बुज़ुर्ग आए और उन्होंने पूछा, ” ये अभी तुमने ही पढ़ा था क्या”, शम्मी बोले , “जी हां”, बुज़ुर्ग ने कहा, ” बहुत अच्छा पढ़ा”, और चले गए। उनके जाते ही, एक नौजवान दौड़ता हुआ, इनके पास आया और पूछा कि क्या शम्मी उन्हें पहचानते हैं? जब शम्मी ने कहा “नहीं”, तब उन्हें बताया गया कि वे देवकीनंदन पांडेय थे, जिनकी आवाज़, पूरे हिन्दुस्तान का ख़ैर-ओ-ख़बर बताती आ रही थी।”

इसके बाद कुछ और इम्तिहान पार कर, शम्मी नारंग, दूरदर्शन समाचार का हिस्सा बन गए। इनकी आवाज़, इतनी साफ़ और तल्लफ़ुज़ इतना बेहतरीन था कि बहुत जल्दी ये तय कर दिया गया कि स्व० श्रीमती इंदिरा गांधी के विदेशी दौरे की सारी रिपोर्ट, शम्मी से ही पढ़वाया जाए।

ई०श्रीधरन जब दिल्ली मेट्रो के लिए काम कर रहे थे, तब उनकी ही गुज़ारिश पर शम्मी नारंग से बात की गई, अपनी आवाज़ देने को, दिल्ली मेट्रो के लिए। इसके अलावा कई शहरों में कई ख़्वाब और हसरतें, इन्हीं की आवाज़ के साथ रोज़ एक तवील सफ़र तय करती है।

एक लंबा वक़्त गुज़र चुका है और जब तक वक़्त के साथ मेट्रो की पटरियों पर ज़िन्दगी, रफ़्तार को ज़रिया बना कर ख़ूबसूरत बनती रहेगी, शम्मी नारंग की आवाज़ हमारे साथ, हमसफ़र की तरह चलती रहेगी।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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