अमित द्विवेदी | Cinema Desk
नवप्रवाह रेटिंग :
निर्देशक अनुराग कश्यप की फ़िल्म चोक्ड नेटफ़्लिक्स पर रीलीज़ हो गई है। इस फ़िल्म से ऐसी उम्मीद की जा रही थी, कि इसमें पहले वाले अनुराग कश्यप की बारीकी नज़र आएगी। अनुराग के निर्देशन के अलावा उनकी ख़ासियत उनकी कहानी का आधार और पटकथा होती है। सिनेमा की समझ रखने वाले उनकी कुछ फ़िल्मों के क़ायल हैं, लगा कि इसमें कुछ बेहतर मिलेगा। लेकिन चोक्ड में भी वे कहानी और पटकथा की नक़्क़ाशी में चूक गए।
सय्यामी खेर का पदार्पण गुलज़ार की फ़िल्म मिर्ज़्या से हुई थी। उस फ़िल्म में उनके अभिनय को समीक्षकों ने सराहा था, उम्मीद जताई थी ये अभिनेत्री ज़रूर बेहतर करेगी। इस फ़िल्म में उनके किरदार के चयन को देखकर समझ आता है कि सिनेमाई चुनौती को स्वीकार करने वाली अभिनेत्री हैं। नहीं तो हीरोईन वाली उम्र में वज़न बढ़ाकर, इस तरह के मध्यमवर्गीय चरित्र का चुनाव शायद न करतीं।
ख़ैर, बढ़ते हैं कहानी की ओर-
कहानी-
सय्यामी खेर बैंक में बतौर कैशियर काम करती हैं। पैसे तो दिन भर गिनती हैं, लेकिन उनका होता कुछ नहीं। लोअर मिडिल क्लास की वो सारी पंचायतें फ़िल्म में हैं, जिनसे चाह कर भी निकला नहीं जा सकता। रोशन मैथ्यू ने फ़िल्म में सय्यामी के पति का किरदार निभाया है, ये कमाता तो नहीं लेकिन उधार ले-लेकर बवाल ज़रूर करता रहता है। इन दोनों का एक बच्चा तो है, लेकिन ज़िंदगी में रोमांस नहीं नज़र आता। फ़िल्म ऑक्टोबर-नवम्बर 2016 के नोटबंदी की घटना के इर्द-गिर्द घूमती नज़र आती है।
सय्यामी के किचेन के बेसिन की पाइप बार-बार चोक हो जाती है। इस बात से वो बहुत चिढ़ती है। एक दिन इसी वजह से किचेन में पानी बहने लगता है। वो किचेन पहुँचती है, तो देखती है एक प्लास्टिक की थैली निकल रही है। वो उसे खोलकर देखती है, तो पता चलता है उसमें पाँच सौ रुपए की पूरी गड्डी होती है, वो उसे बैंक में जाकर चेक करती है तो पता चलता है नोट तो असली हैं। उसे लगता है ग़लती से ऐसा हुआ होगा, लेकिन ऐसा जारी रहता है। उसकी ज़िंदगी में रोमांच बढ़ जाता है, लेकिन कुछ ही दिन बाद नोटबंदी हो जाती है।
उसके बाद भी ये सिलसिला चलता रहता है। अब ये नोट किसका है, कौन कर रहा है ये सब? ये अंत के दस मिनट में पता चलेगा। जिसके लिए आपको फ़िल्म देखना होगा।
अनुराग की लेखन शैली की जो बारीकी लोगों को पसंद है, वो इस फ़िल्म में क़तई नज़र नहीं आती। ऐसा माना जाता है कि अनुभव के साथ काम चोखा होता है, लेकिन अनुराग लगातार पीछे की तरफ़ खिंचते नज़र आ रहे हैं। निर्देशन ठीक है, लेकिन पटकथा बेहद निराश करता है। कुछ सीन बेहद सुस्त और बेवजह के हैं। जो अनुराग जैसे स्तरीय निर्देशक से अपेक्षित नहीं होता।
अभिनय-
सय्यामी ने बेहतरीन काम किया है। इनके अलावा रोशन मैथ्यू और अमृता सुभाष ने बढ़िया अभिनय किया है। निर्देशक ने कलाकारों से अभिनय अच्छा कराया है।
देखें या नहीं-
कुल मिलाकर यह फ़िल्म ऐसी नहीं है कि इसे न देखी जाए, तो पश्चाताप होगा। यह बेहद औसत दर्ज़े की फ़िल्म है, जो नोटबंदी जैसे संवेदनशील मुद्दे के बावजूद रोमांचित नहीं करती। सब देख चुके हों, तो देख सकते हैं। निराश करती है अनुराग की फ़िल्म ‘चोक्ड’।
(अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर की गई समीक्षा एक जटिल काम है, जिसके अंतर्गत केवल पॉजिटिव कमेंट्स की उम्मीद रखना अनुचित है। हमारे यहाँ पेड रिव्यू जैसी भी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।)