बोलती तस्वीरें- “ये जो है ज़िंदगी (1984)”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

दरहक़ीक़त, ज़िंदगी में खुशियां कम, रंज-ओ-ग़म ज़्यादा होते हैं, लेकिन कई दफ़ा, हंस भर लेने से बहुत से मसले सुलझ जाते हैं, ज़िंदगी आसान मालूम होती है। हर बार, कुछ किरदार हमारी हंसी का सबब होते हैं, वे हमें ज़िंदगी में  किसी भी तरह से मिल जाते हैं। कभी किताबों में, कभी किस्सों और बातों में। 1984 में ये किरदार हिन्दुस्तान के लोगों को टेलीविज़न पर मिलने लगे। धारावाहिक, “ये जो है ज़िंदगी”, टेलीविज़न पर आने लगा था। इसे भारत का पहला सिटकॉम कहा जा सकता है।

“सिटकॉम (sitcom), जो कि situational comedy का छोटा रूप है, पहले रेडियो पर प्रसारित हुआ करता था, लेकिन टेलीविज़न पर पहला सिटकॉम, 1946 में BBC द्वारा प्रसारित किया गया और इसका नाम था, “Pinwright’s Progress.” 1950 से 1970 के बीच, अमरीका में, विलियम ऐशर ने कई मशहूर सिटकॉम बनाए और यहाँ से कई देशों में इसका चलन हो गया।”

1983 में आई फ़िल्म, “जाने भी दो यारों” ने कॉमेडी को एक नए अंदाज़ में पेश किया था और निर्देशक, कुंदन शाह को इसके लिए बहुत तारीफ़ मिली थी। जब टेलीविज़न के लिए, कॉमेडी सीरीज़ बनाने की बात आई, तो मंजुल सिन्हा और रमन कुमार के साथ, कुन्दन शाह को भी जोड़ा गया। इस धारावाहिक का शीर्षक गीत महान गायक किशोर कुमार ने गाया था। इस धारावाहिक का लेखन, शरद जोशी ने किया। इतने माहिर लोग तो पीछे थे पर्दे के। कलाकार भी सब, एक से एक चुने गए थे। शफ़ी इनामदार (रंजीत वर्मा) और स्वरूप संपत (रेणु वर्मा), राकेश बेदी (राजा), फ़रीदा जलाल (चाची) और सतीश शाह (विभिन्न किरदार) में नज़र आए।

सीरियल के मुख्य पात्र

ये रोज़मर्रा की ज़िंदगी के हल्के फुल्के और हंसने हंसाने वाली घटनाओं पर आधारित धारावाहिक था और इसके 67 एपिसोड बने। इतने ही एपिसोड में, इस धारावाहिक ने, कभी न भूलने वाली यादों को जोड़ दिया, दर्शकों की ज़िंदगी से।

एक दृश्य में ‘फरीदा जलाल’

सिटकॉम का एक नया रूप, ड्रामेडी (ड्रामा+कॉमेडी), इस धारावाहिक से भारतीय दर्शकों के बीच प्रचलित हो चला था और आने वाले समय में अन्य विधाओं और कलाकारों से जुड़कर, ऐसे कई और धारावाहिक, दर्शकों को मिलने वाले थे।

“ये जो है ज़िंदगी” के लगभग सभी किरदार निभा रहे कलाकारों ने सिनेमा जगत में भी कामयाबी के झंडे गाड़े। सिनेमा और टेलीविज़न के मज़बूत रिश्तों की क़ाबिल-ए-तारीफ़ बुनियाद पड़ चुकी थी और कई चेहरे इसी टेलीविज़न से निकल कर भारतीय सिनेमा की पहचान बन जाने वाले थे।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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