डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
लोकतंत्र मे, शासन एक ऐसी अवस्था का नाम है, जिसे ग्रहण करते ही कोई भी व्यक्ति, समूह या संगठन, सामान्यता का प्रतीक और प्रतिनिधि दोनों एक साथ हो जाता है। ऐसे में ये आवश्यक हो जाता है कि जिनका प्रतिनिधित्व हो रहा है, यानि कि जनता , समय समय पर ये जाने और जांचे कि , जो हो रहा है या किये जाने की योजना बन रही है , वो किस सीमा तक, सार्थक होगी उनके लिए। सामान्यता का प्रतीक होने के बाद भी सत्ता धारण करने वाले लोग स्वयं को विशेष मानने लगते हैं और बहुत बदल जाता है उनका व्यवहार।
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कई बार तो ये इतना ज़्यादा आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय हो जाता है कि लगता ही नहीं , ये हमारे प्रतिनिधि हैं, बात शासक और शासित वाली स्थिति में पहुँच जाती है। ऐसी स्थिति में ये बताना आवश्यक हो जाता है कि जो हो रहा है या किया जा रहा है, वो सही नहीं है और सबसे सुन्दर और प्रभावकारी माध्यम होता है साहित्यिक चित्रण, इन परिस्थितियों का। अगर ऐसी प्रस्तुतियों में हास्य को एक उपकरण के रूप में लाया जाए तो बात दूर तक और बहुत लोगों तक पहुंचा पाने की संभावना अधिक होती है।
“ब्रिटेन में 1980 से 1984 तक BBC पर एक सिटकॉम प्रसारित किया गया और उसका नाम था, “Yes Minister ” और उसमें ऐसी राजनैतिक परिस्थितियों और भ्रष्टाचार को दिखाया जाता था हास्य पर आधारित कर के। इस से यथास्थिति का चित्रण भी हो जाता था और लोग अवगत भी होते थे कि उनके देश के शासन तंत्र में क्या अच्छी या बुरी बातें हैं।”
उसी समय भारत के तत्कालीन सूचना और प्रसारण सचिव एम०एस०गिल ने साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी जी से कहा कि कुछ ” Yes Minister ” जैसा ही वे लिखें और इसे दूरदर्शन पर दिखाया जाए।
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जोशी जी ने लिखा भी, लेकिन गिल साहब के रिटायर होते ही कहा गया कि , दूरदर्शन ये नहीं दिखा सकता। जोशी जी ने दुबारा लिखा और इस बार अपनी लेखनी के शीर्षक से, “मंत्री” शब्द हटा दिया और उसकी जगह “नेता ” लिख दिया। लेकिन इतना भी पर्याप्त न था। इसके दो पायलट को नकार दिया गया और जब इजाज़त मिली तो “नेता जी” को “कक्का जी” करवा दिया गया।
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मनोहर श्याम जोशी के विख्यात स्तम्भ लेख, “नेता जी कहिन ” पर ये धारावाहिक आधारित अवश्य था और इसे प्रसारित करने की अनुमति भी मिल गयी 1988 में , लेकिन बहुत सारी बाधाओं के साथ। इस धारावाहिक का निर्देशन बासु चटर्जी ने किया था और लेखन पूरी तरह से मनोहर श्याम जोशी जी का ही था।
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इस धारावाहिक में दिग्गज अभिनेता ओम पूरी और प्रसिद्द हास्य कवि शैल चतुर्वेदी जी थे। दोनों का अभिनय शानदार रहा और हर उम्र, हर वर्ग के लोगों ने इसे पसंद किया। एक तो वैसे ही इसके शुरू होने में बहुत सी बाधाएं थीं और जब ये शुरू भी हुआ तो मात्र कुछ एपिसोड के बाद, ये कह कर इस धारावाहिक को बंद करा दिया गया कि इसमें नेताओं को बदनाम किया जा रहा है। ये बात बहुत आश्चर्यजनक है कि हमारा देश जहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर इतने वक्ता उभर कर आये हैं, उस दौर में , इनमे से एक भी न हो पाया।
“कक्काजी कहिन ” को बहुत जल्दी बंद कर दिया गया लेकिन उसकी स्मृतियाँ आज भी लोगों को गुदगुदाती हैं।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)