बोलती तस्वीरें- “परमवीर चक्र (1988)”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

किसी भी व्यक्ति, समाज या वर्ग के सभी मानवीय गुणों का सम्मान अत्यंत आवश्यक है, सभी भावनाओं का ध्यान रखा जाना भी बहुत ज़रूरी है लेकिन वर्तमान में जिस किसी समाज को उत्थान का उत्कर्ष देखना है, वहाँ के लोगों, विशेषकर युवाओं में सबसे ज़रूरी भावना है देश प्रेम की भावना। मानवतावादी होने के लिए देश हित में सोचना या बोलना बंद करने की अनिवार्यता नहीं होती और देश को प्रमुखता देना, मानवता से विमुख होना भी नहीं होता।

चेतन आनंद पर जारी डाक टिकट 

समाज में हर व्यक्ति अपने कृत्यों को उत्साह और कुशलता से सम्पादित करते हुए, अपने देश और समाज की सेवा कर सकता है और इसके लिए वो प्रशंसा का पात्र भी होता है।

“..लेकिन एक सैनिक जिस भावना से अपने देश की सेवा करता है , उसका मान हमेशा सबसे ज़्यादा होना चाहिए और उसकी वीरता को नमन करना चाहिए क्योंकि जिस देश में रहते हुए हम मानवीय स्वतंत्रता के विचार गढ़ते हैं , वहाँ विचार करते रह सकने की स्थिति बस सैनिकों के कारण ही होती है। सारी कलाओं, विधाओं, ग्रंथों और ज्ञान को मिटा दिया जाता है और मिटा दिया जाता है गौरवशाली इतिहास के पृष्ठ पर लिखा हुआ हर शब्द , जिस देश के सैनिक हार जाते हैं, इतनी महत्ता होती है सैनिकों की।”

कलात्मक प्रस्तुतियों में भी बार बार ऐसे निर्माण कार्य होने चाहिए जो युवा पीढ़ी के मन में सैनिकों और अपने देश के प्रति श्रद्धा और विश्वास पैदा कर सके और एक ललक जगे कि अपने देश के लिए जब कभी प्राणों की आहुति देने की बात आये तो हर बच्चा तैयार मिले। सिनेमा और टेलीविज़न ने ऐसी कई प्रस्तुतियां की हैं और बहुत बार ये फिल्में या धारावाहिक, युवाओं के लिए प्रेरणा बने हैं। 1988 में दूरदर्शन द्वारा प्रसारित धारावाहिक “परमवीर चक्र ” भी एक बहुत प्रेरणादायी प्रस्तुति थी।

फारुख शेख़ बतौर ‘मेजर सोमनाथ शर्मा’

चेतन आनंद ने “हकीकत” और “हिन्दुस्तान की क़सम” जैसी युद्ध और भारतीय सेना पर आधारित फिल्में बनाई थीं और इन फिल्मों को अपार सफलता भी प्राप्त हुई थी। 1980 के दशक में देश में बहुत अस्थिरता रही थी और इसका मुख्य कारण राजनैतिक स्वार्थ था। ये बहुत आवश्यक था कि उस दौर में युवाओं के मन में देश प्रेम की भावना को प्रबल किया जाए। ये बहुत ही प्रशंसनीय है कि दूरदर्शन ने इस उत्तदायित्व को समझा और चेतन आनंद ने केतन आनंद के साथ मिलकर ये धारावाहिक निर्देशित किया। इसके संपादक जेठू मंडल थे और भारत के सम्मानित सैनिक , जिन्हे परमवीर चक्र मिला था, उनकी जीवनी इस धारावाहिक में दिखाई गयी। उनके पारिवारिक जीवन और युद्ध क्षेत्र में उनके शौर्य का भी सुन्दर चित्रण किया गया था इस धारावाहिक में।

पुनीत इस्सर बतौर ‘नाइक जदुनाथ सिंह’

मेजर सोमनाथ शर्मा से लेकर लांस नाइक अल्बर्ट एक्का और मेजर धन सिंह थापा तक कई वीरों का जीवन इस धारावाहिक में दिखाया गया। इन किरदारों को निभाने वाले कलाकार भी चुनिंदा थे। फ़ारूक़ शेख , कंवलजीत, पुनीत इस्सर , नसीरुद्दीन शाह, गुरदास मान और पंकज धीर जैसे प्रसिद्ध चेहरों ने ये किरदार निभाए थे। अब तक 21 परमवीर चक्र दिए गए हैं और 14 वीरों को ये मरणोपरांत दिया गया है।

इन कहानियों को, इन वीर गाथाओं को केवल धारावाहिकों और फिल्मों तक ही नहीं रखना चाहिए। इस लेख के माध्यम से मैं ये आग्रह करता हूँ कि इन वीर गाथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए और बच्चों और युवाओं को, जो हमारे देश का भविष्य हैं, उन्हें ये बताया जाए कि कर्त्तव्य भी अधिकारों जितने ही महत्त्वपूर्ण हैं और ये सब हमें देश ही देता है। किसी भी अधिकार के लिए देश का होना बहुत आवश्यक है और देश का सुरक्षित और संपन्न होना सबसे महत्त्वपूर्ण है।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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