जवाहर लाल नेहरू | नवप्रवाह डॉट कॉम
प्रो.(डॉ.) हरेराम त्रिपाठी संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं। वे यहीं सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र रहे, अब वे इसी विवि के वाइस चांसलर बने हैं।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का कुलपति बन चुके प्रो.(डॉ.) हरेराम त्रिपाठी संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं। दिलचस्प तथ्य ये हैं कि वे यहीं स्टूडेंट रहे, अब उन्हें यहां का वीसी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। कुलपति बनने से पहले वे श्री लाल बहादुर राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में सर्व दर्शन विभाग में वरिष्ठ आचार्य (प्रो.) की हैसियत से छात्रों को पढ़ाया करते थे। उनके कुलपति बनने से संस्कृत जगत में हर्ष का माहौल है। शांत स्वभाव के और पढ़ाई में शुरू से होनहार प्रो. त्रिपाठी ने गांव- चकिया, जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का नाम रोशन किया है।
संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में प्रो. त्रिपाठी के अनुपम योगदान को देखते हुए उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति आनन्दीबेन पटेल ने बुधवार 9 जून को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के 35 वें कुलपति के रूप में नियुक्त किया। कुलाधिपति के पत्र के मुताबिक, प्रो त्रिपाठी का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि तक होगा। गौरतलब है कि संस्कृत विश्वविद्यालय के निवर्तमान कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल का तीन वर्षों का कार्यकाल 23 मई को पूरा हो गया।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के चकिया ग्राम में जन्मे प्रो. त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही विद्यालय में हुई थी। उसके बाद सन् 1986 में वे आगे की पढ़ाई करने बनारस चले आए। रामाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय से उत्तर मध्यमा (इंटरमीडिएट) की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शास्त्री (स्नातक), आचार्य (स्नातकोत्तर) व पीएचडी तक की पढ़ाई संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से किया। यहां उन्होंने न्यायशास्त्र के प्रकांड विद्वान प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी के निर्देशन में पीएचडी की डिग्री हासिल किया। उन्होंने अध्ययन काल में आठ स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
प्रोफ़ेसर त्रिपाठी ने शैक्षणिक करियर की शुरुआत वर्ष 1993 से राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के जम्मू परिसर में सहायक आचार्य सर्वदर्शन विभाग से किया। वर्ष 2001 से श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में सह- आचार्य के रूप में अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया। वर्ष 2009 में सर्वदर्शन विभाग में प्रोफेसर बने। प्रो. त्रिपाठी को वर्ष 2003 में महर्षि वादरायण राष्ट्रपति पुरस्कार, शंकर वेदांत, पाणिनी, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से विशिष्ट पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कार व सम्मान मिल चुका है। उन्होंने अब तक 30 से अधिक ग्रंथों का संपादन व लेखन का कार्य भी किया हैं।
प्रो. त्रिपाठी विश्वविद्यालय में विभिन्न प्राशासनिक पदों जैसे छात्रावास अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, संकायाध्यक्ष इत्यादि दायित्वों का भी कुशलतापूर्वक निर्वहन किया हैं। अध्यापन, शोध, प्राशासनिक जिम्मेदारियों के साथ उन्होंने संस्कृत शिक्षा एवं भारतीय दर्शन को बढ़ावा देने के लिए देश-विदेश का दौरा करते रहे। वे भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (ICPR) के मानित सदस्य के रूप में 2016 से वर्तमान समय में भी कार्य कर रहें हैं।
प्रो. त्रिपाठी ICPR के गवर्निंग बाडी के सदस्य भी हैं। वे राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के बोर्ड आफ मैनेजमेंट के सदस्य 2016 से 2019 तक रहे। इसके अतिरिक्त वे सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, गुजरात के एकेडमिक काउंसिल के सदस्य 2019 से हैं तथा महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के प्लानिंग बोर्ड के भी सदस्य 2019 से हैं।
(लेखक युवा पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)