बाबा साहेब आंबेडकर ने एक सभा के संबोधन में कहा था कि “लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं”
वैश्विक स्तर पर जब हम लोकतंत्र की परिचर्चा करते हैं तों तों हमें ज्ञात होता हैं कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं पर यहां फिर वो सवाल अपने अस्तित्व की तलाश तेज कर देती हैं जिसमें वह संवैधानिक अधिनियमों का हवाला देते हुऐ भारतीय राजनेताओं के चयन पर सवाल करता है सभी जानते हैं लोकतंत्र का महत्व शासनतंत्र से प्रदर्शित होता है और शासनतंत्र की बुनियाद राजनीति से आतीं हैं जिनके संचालन का भार जनता के चुने प्रतिनिधियों यानी राजनेताओं के जिम्मे होता हैं फिर चाहे वह पक्ष में हों या विपक्ष में.. कोई भी राजनेता सत्ता सुख से विमुख नहीं होना चाहता है और तब तों बिल्कुल भी नहीं काबिज सत्ता के दुबारा मिलने की संभावना प्रबल हों.
बीते दिनों उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में घटित घटना काफी ह्दयविदारक एवं अमानवीय रहीं राजनीतिक संलिप्ताओं से भङकी इस रक्त-रंजित चिंगारी कों भारतीय संग अंतरराष्ट्रीय मीडिया नें भी काफी सुर्खियों में रखा। यह घटना जितनी दुखद रही उससे कहीं ज्यादा शर्मनाक थी..
इस घटना ने ना सिर्फ बाबा विश्वनाथ के प्रदेश की छवि धूमिल की बल्कि “विविधता में एकता” के संदेश कों सत्यापित करतीं विश्व की सबसे महान एवं प्राचीन संस्कृति पर भी कई सवाल खड़े किए। इस घटना में चार किसानों सहित 8 लोगों की मौत ने ना सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार बल्कि केंद्रीय नेतृत्व कों भी सवालों के घेरे में ला कर रख दिया। सरकार की तत्परता एवं न्यायिक प्रक्रिया की सजगता से प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा चिन्हित एवं साक्ष्यों की प्रमाणिकता पर मुख्य आरोपियों कों गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में आगे की प्रक्रिया हेतु भेज दिया गया सत्तारूढ़ सरकार की शालीनता एवं उनके कियें सभी मुआवजों की जमहीनीयता भी दिखी जिसके अनुसार मृतकों के आश्रितों को 45-45 लाख रुपए और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी तथा घायलों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए दिए जाने थे जिसमें से मुआवजा राशि उनके परिजनों के हवाले कर दिया गयें हैं एवं बाकी के आदेश भी क्रमबद्ध होंगे..
बीते दिनों मृत किसानों की स्मृति में आयोजित अंतिम अरदास शांति पूर्ण स्वरुप में होना स्थानीय प्रशासन के लिए राहत की बूटी से कम नहीं रही.. हालांकि इसकी उम्मीद ना तो स्थानीय प्रशासन कों थी ना ही शासनतंत्र हालांकि परस्थितियों से निपटने हेतु सारे व्यापक व्यवस्था की गई थी परंतु शांतिपूर्ण ढंग से बीते कार्यक्रम बताते हैं कि सौहार्द की सौंदर्यता के समक्ष सब फीकें हैं..
लखीमपुर-खीरी की घटना से सभी वाकिफ होंगे क्यों हुआ? कैसे हुआ? किसने किया? इन सब सवालों के अब कोई मायने नहीं हैं ना हैं मैं यहां इनके जवाब देने आया हूं मेरा मानना है कि शायद ही कोई इंसान होगा जों इस ह्दयविदारक कृत से अवगत नहीं होगा फिर भी अगर अनभिज्ञ हैं तों निवेदन हैं कि इस डिजिटल युग में गुगल के रथ पर सवार हों ज्ञान की मीनार मजबूत कर सकते हैं।
अपने गन्ने की खेती एवं व्यवहारिक मधुरता के लिए मशहूर खीरी 7 तारीख के पहले भी शांत था और आज भी शांत हैं पहले की एकजुटता तंत्र के किसी कानून के विरुद्ध आंदोलन की ताकत दर्शाती थी वर्तमान एकत्रीकरण अंतिम अरदास के करुण शब्द सुनाते हैं…आज लखीमपुर-खीरी में ना कोई राजनेता हैं, ना कोई आंदोलनकारी, ना कोई मीडिया, न कोई अधिकारी.. अब हैं कुछ तो दर्द अफ़सोस, गुस्सा और कभी ना भुला देना वाला एक भयानक ज़ख्म..और एक बङा सा मौन..
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के मध्य सबसे बिफर जों चीज देखा गया लखीमपुर-खीरी में वों थी जनता के संवेदनाओं की आग में रोटी सेंकतें अति-संवेदनहीन राजनेताओं की सत्ता निहितता की भूख।
लोकतंत्र में सबकों अधिकार हैं कि आप अपनी मांगों कों मुखर स्वर में शासन के समक्ष रखें लेकिन जिस तरह की विपक्षी एकता लखीमपुर-खीरी में देखीं गयी वह निंदनीय हैं… उत्तर प्रदेश सरकार के निष्पक्ष न्यायिक जांच के लिए सहमत होनें के बावजूद भी किसानों कों उकसाना, तरह-तरह की अनुचित मांगों के लिए धरना प्रदर्शन कर उग्र करना उन्हें स्थानीय प्रशासन के विरुद्ध करना सुलझें अर्थों में बताता हैं कि चुनाव नजदीक हैं एवं इस मुद्दे के द्वारा विपक्षी दल वर्तमान सरकार कों घेरकर अपने राजनीतिक लाभों को सिद्ध करने में जुट हुआ हैं…
सियासत हों रहीं हैं और अभी और होने बाकी भी है. हालांकि इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सत्ताधारी दल की भूमिका समझदारी भरी रहीं हैं द्वारा राहत घोषणा, मुआवजा राशि, नामजदों पर एफआईआर अभियुक्तों की गिरफ्तारी जाहिर करतीं हैं कि प्रशासन का रवैया साफ हैं हालांकि इसकी संदर्भता आगामी विधानसभा चुनाव भी हों सकती हैं परंतु इन्हीं रवैयों ने जनता कें बीच न्याय की उम्मीद जगा रखीं हैं.. अपनों से विमुख हो चुकें लोगों के लिए संपूर्ण एवं उचित न्याय हीं एकमात्र आसरा हैं उनके जख्मों पर मरहम लगाने शायद इसी का नतीजा था कि जिस अंतिम अरदास में उम्मीद लगाई जा रही थी हंगामों की वह शांतिपूर्ण बीता। स्थानीय निवासी राजनीतिक मायाजाल से दूर हों अपनी एक नयी शुरुआत करना चाहते हैं।
लखीमपुर-खीरी जैसी घटनाएं अपने अंदर कई सबक लेकर आतीं हैं यह हमें हमारे समाज में छुपे राजनीतिक संरक्षणों में पल-बढ़ रहे आपराधिक तत्वों को भी दिखातीं हैं तों उन पर शिकंजा कसतें हमारे कानून व्यवस्था की मजबूती कों भी दिखती हैं, यह एक ओर हमारे प्रशासनिक तंत्र को नुकसान पहुंचाती दलगत पक्षपात कों दिखाती हैं तों वहीं दूसरी ओर शासन-प्रशासन एवं राज्य सरकार की एकजुटता से त्वरित कार्रवाई कर शांति बहाल करने के तरीकों को भी दर्शाती हैं..
उत्तर प्रदेश सरकार के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं एक ओर विपक्षी गठजोङों कों कमजोर करना वहीं दूसरी ओर शांति व्यवस्था कों बनाते हुए दुबारा सिंहासन पर विराजमान होना..
उम्मीदों कें सफ़र में गन्ने का यह क्षेत्र भी आगे बढ़ेगा एवं इन कङवी यादों कों पीछे छोड़ नयीं उर्जा के संग सौहार्द, सद्भावना, मिठास के साथ एक नयी सुबह का स्वागत करेंगा.
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