भारत भूषण ‘भारतेंदु’ @ नवप्रवाह.कॉम,
अष्टांग योग का दूसरा अंग “नियम” के बारे में चर्चा करेंगे
नियम
तपः संतोष आस्तिक्यं दानमीश्वरपूजनम
सिद्धांतवाक्यश्रवणं ह्रीमती च जपो हुतम
नियमा दशसंप्रोक्ता योगशाश्त्र विशार्दैह | ह .प्र.१८
जैसा की हठयोग प्रदीपिका के अनुसार तप,संतोष,आस्तिकता,दान,इश्वर पूजन,सिद्धांत,वाक्य श्रवण,लज्जा,बुद्धि,जप और होम ये दस तत्व नियम के है |जन जन का व्यक्तिगत जीवन शारीरिक मानसिक दृष्टि से अरोग्यपूर्ण होकर उसकी अध्यात्मिक प्रगति हो
महर्षि पातंजल योग सूत्र के अनुसार शौच,संतोष,तप,स्वाघ्याय,इश्वरप्राणीधान ये नियम के पांच मुख्या तत्व है |
शौच
यहाँ पर शौच शब्द का तात्पर्य शुद्धि से लिया गया है शुद्धि दो तरह की मानी जाती है बाहरी शुद्धि और आतंरिक शुद्धि |
बाहरी शुद्धि भी दो प्रकार के होते है
१- पानी से स्नान करना |
२- धूप स्नान, वायु स्नान, तेल,गोमूत्र आदि से मसाज करना |
आतंरिक शुद्धि
आतंरिक शुद्धि जैसे धौती,बस्ति,नेति,कपालभाती,नौली और त्राटक तथा और क्रियाएं कर के व उपवास,सात्विक आहार तथा औसधि की सहायता से शरीर को शुद्ध करना |
आतंरिक शुद्धि से मन की प्रसन्नता ,चित्त की एकाग्रता तथा आत्म दर्शन की योग्यता प्राप्त होती है|
प्रेम मैत्री भावना जगाकर अविद्या,क्रोध,द्वेश, आदि चित्त के मेल को दूर करना तथा अच्छे विचार करके और मन में आने वाले बुरे विचार को दूर करके कहने का तात्पर्य ज्ञान की सहायता से चित्त के मैल को सदा सदा के लिए साफ करना |
जैसा कि नाद साधना (सुर संगीत साधना) और प्राणायाम आदि की सहायता से ज्ञान की प्राप्ति होती है |
आतंरिक शुद्धि के बिना बाहरी शुद्धी का कोई उपयोग नहीं है | अर्थात जब तक आतंरिक निर्मलता न हो तब तक पूजा-पाठ, उपवास, तीर्थ-स्नान आदि सारे कर्म ब्यर्थ है |
न हि ज्ञानेनं सदृशं पवित्रमिह विद्यते |
इस संसार में ज्ञान के जैसी पवित्र दूसरी कोई वस्तु नहीं है
प्रश्न :- आदरणीय गुरूजी पढ़ते – पढ़ते सिर में दर्द होता है , ज्यादा समय तक पढ़ नहीं पाता | परीक्षा चल रही है , बताइए क्या करू ? ( बंटी, खुशी , ज्योति , यश )
उत्तर :- प्राथमिक कारण देर तक गलत शरीर विन्यास में बने रहना है | मानसिक तनाव , चिंता तथा सामान्य कड़ापन अन्य कारण है | नाड़ी सोधन प्राणायाम , भ्रामरी , नेति , ५ से १० मिनट तक कीजिये |
सबका मंगल हो.!!
(पाठक गण अपने प्रश्न www.bhartendu.com पर भेज सकते है |)