…तब होगी सही मायने में ‘युवा क्रांति’!

जे.एस. पाण्डेय,

आम तौर पर ‘क्रांति’ शब्द का अर्थ किसी ‘भेड़ चाल’ व्यवस्था या दौड़ती व्यवस्था को फोर्सली तोड़ मरोड़ कर अलग निकलना समझा जाता है। कुछ ‘खास’ लोगों के लिए तो अपनी बात मनवाने के उद्देश्य से बसों को आग लगा देना, रास्ता जाम करना या रेल पर पत्थर फेंकना क्रांति है, लेकिन ‘क्रांति’ शब्द का वास्तविक अर्थ प्रधान मंत्री मोदी ने नोट बंदी का सशक्त, निर्भय फैसला लेकर बताया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश को ‘कॅश लेस’ बनाने की दिशा में हमारे देश का युवा क्रांति कर सकता है। शहरों का ही नहीं गांवों का युवा भी आज मोबाइल का उपयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि हर युवा आज अपने उन भाइयों का सहयोग करे, जो नेट बैंकिंग नहीं जानते, जो रुपे या पेटीएम यूज़ करना नहीं जानते, जो क्रेडिट कार्ड-डेबिट कार्ड का इस्तेमाल नहीं जानते। हर युवा उन अनजान, असमर्थ लोगों को आज डिजिटल ज्ञान दे सकता है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे प्रतिदिन कम से कम 10 परिवारों को कॅश लेस व्यवस्था के विषय में समझाए, यूज़ करना बताए, उसके हानि लाभ बताए। पूरे देश के युवा मोबाइल से फेसबुक-वाट्सअप में सिर्फ समय पास न करें अपना थोड़ा समय देश के विकास में योगदान करें।

जो शक्ति विनाश कर सकती है, वह विकास भी कर सकती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी शक्ति का प्रयोग किस ढंग से कर रहे हैं। सम्राट अशोक अपने 99 भाइयों को मार कर गद्दी पर बैठा था। अनगिनत युद्ध लड़ने के बाद, उसने ‘अहिंसा परमो धर्म:’ अपनाया। इतने विनाश के बाद उसने अपनी शक्ति का प्रयोग विकास की दिशा में किया। शक्ति एक ही है, अब यह हम पर निर्भर करता है, हम चाहें तो उसे विनाश में लगाएं या विकास में।

शादियां पहले भी होती थीं, आज भी हो रही हैं और होती रहेंगी। कई शादी ब्याह वाले परिवारों का कहना है कि हमारी शादियों के बीच ही क्यों, बाद में भी ये फैसला लिया जा सकता था। अब इन लोगों को कौन समझाए कि आज आपकी शादी है, कल किसी और की होगी, परसों किसी और की। तो क्या ये फैसला लागू ही न हो कभी? ऐसी विकट परिस्थिति में शादी करने वालों को तो गौरवान्वित महसूस करना चाहिए कि कई पीढ़ियों तक उनकी शादी का किस्सा अजर अमर बन जायेगा कि इनकी शादी के दौरान देश में नोट बंदी की क्रांति हुई थी। परेशानी थोड़ी बढ़ी ज़रूर है, लेकिन शादियों में परेशानी तो होती ही है। बिना छोटी मोटी परेशानी के कोई शादी नहीं होती। सूरत के दक्षा और भरत ने नोट बैन के माहौल में मात्र 500 रुपये के खर्च में ‘चाय पर चर्चा’ के तौर पर शादी कर पूरे समाज के लिए एक अप्रतिम मिसाल खड़ी कर दी है।

यदि इस दरम्यान मरने वालों की संख्या पर बात करें, तो कई लोग चिल्ल-पों मचा रहे हैं कि नोट बंदी के कारण 50 से अधिक लोग मर गए। मौतें पहले भी होती थीं, आज भी हो रही हैं। कई लोग, कई अलग कारणों को भी राजनीतिक रूप देकर इन मौतों को नोट बंदी से जोड़ दे रहे हैं। कई मामले वाक़ई दुखद हैं, लेकिन कई मामलों में जान बूझ कर तिल का ताड़ बनाया जा रहा है।

यूँ तो पहाड़ चढ़ना थोड़ा कठिन लग रहा है, लेकिन यदि हमारे युवा सहयोग करेंगे तो यही पहाड़ चढ़ना इतना आसान हो जाएगा कि पूरे देश की व्यवस्था बदल जाएगी। इस अभियान में युवा शक्ति के समर्थन मात्र की ही नहीं, सम्पूर्ण सहयोग की भी सख़्त जरूरत है। तब होगी सही मायने में ‘युवा क्रांति’।

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