पीयूष चिलवाल | Navpravah.com
मैं भी उससे काफी बार मिला हूं और लोग जब भी उसके बारे में बात करते हैं तो यही कहते हैं “वो अजीब लड़की”। गलत भी क्या है उसमें? वो है ही एकदम अजीब, अजीब उन बाक़ी लड़कियों से और अजीब उस सोच से जो उसे अजीब होने का तमगा दे देती है, लेकिन वो सोच भी उसी की तरह है- एकदम अजीब।
ये अजीब लड़की यहीं कहीं है, मेरे आस-पास, तुम्हारे और मेर इर्द-गिर्द, किसी घर के अंदर तो किसी घर के बाहर, किसी स्कूल में गोरे लड़के को नकार सांवले लड़के से दोस्ती करने वाली या मेंटल असाइलम में अपने प्रेमी की मौत के बाद उसकी यादों के काफिले संग उसका इंतज़ार करती और पागल हुई जा रही है… संभावना तो इस बात की भी है कि वो अपने घर में ही सौतेलेपन की शिकार हो या भुक्तभोगी हो दो जिस्मों के बीच हुए तथाकथित प्रेम मेें होने वाले नाजायज प्रदर्शन की… हो सकता है कि वो अपने जिस्म की सौदेबाजी कर किसी जैन साहब की दुकान पर सिगरेट के उठते धुंएं से छल्ले बनाकर अपने खून को जला रही हो।
“वो अजीब लड़की” फि़लहाल कैद है बेहिचक और बेझिझक लिखने वाली प्रियंका ओम की कहानियों में, इंग्लिश लिटरेचर से ग्रेजुएट प्रियंका हिंदी में कमाल का लिखती हैं। अंजुमन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक चौदह लघु कहानियों का संग्रह है जिसकी हर कहानी पाठक के जेहन में उतर कर बाहर आने को छटपटाती हैं और किताब के 168वें पन्ने में जेहन की खिड़की खोल मस्तिष्क से बाहर आती हैं और अंतरात्मा से जवाब पाने की कश्मकश में बाहर ने जाने की शर्त रखकर दिल में अपने एक आशियाना बनाकर बैठ जाती हैं।
समाज के कड़वे सच को प्रियंका अपने जिस अंदाज में किताब की शक्ल देती हैं वो वाकई पाठकों के मन को झकदोर देता है और उन अनछुए पहलूओं को सोचने पर मजबूर कर देता है।
पहली कहानी में जहां लेखक एक ऐसी लड़की का जिक्र करती हैं जो अपने ही परिवार में अपनी छोटी बड़ी बहनों के बीच सौतेलेपन की शिकार हो जाती है तो दूसरी कहानी में वो उस पत्नि को लाने का प्रयास करती हैं जो अपने पति से सौरी नहीं बोलना चाहती और फिर एक के बाद एक तेरह पड़ाव पार करने के बाद जब पाठक आखिरी कहानी में फेयरनेस क्रीम के किस्से को पढ़ता है तो वो 21वीं सदी में भी जारी इस रंगभेद की परंपरा से खुद का बाहर निकालने की हर संभव कोशिश करता है। लेकिन इससे जब वो संग्रह की मुख्य कहानी “वो अजीब लड़की” को दसवें पाठ में पढ़ता है तो पुरूषवादी समाज से जुड़े कई सवाल उसके मन में आने लगते हैं और इसी वजह से लड़की का जैन साहब की दुकान से रोज सिगरेट पीना और उसके बाद हैपीडेंट चबाना उसे अजीब लगता है भले ही लड़की कहानी खत्म होते होते अपने ख़्वाब मुकम्मल कर लेती है लेकिन जैन साहब की दुकान में वो जिंदगी के पहलुओं का और बेहतर समझने के लिए जाना नहीं छोड़ती।
प्रियंका की बेस्टसेलर किताब जो अब तक तीन संस्करणों में आ चुकी है, हर तरह से बेहतरीन कहलाने की हक़दार है और अमेजॉन पर आसानी से उपलब्ध यह किताब फिलहाल आपकी लाइब्रेरी में आने का इंतज़ार कर रही है। प्रियंका को इस बेहतरीन कार्य के लिए मैं शुभकामनाएं देता हूं और भविष्य में और बेहतर साहित्यिक कृतियों के साथ मौजूदा समय में युवाओं के बीच लुप्त हिंदी साहित्य केे प्रति क्रेज को बढ़ाने की आशा करता हूं। बतौर समीक्षक पुस्तक को चार सितारे देने में किसी भी पाठक के हाथ नहीं कांपने चाहिए।
पुस्तक का नामः वो अजीब लड़की
लेखक का नामः प्रियंका ओम
प्रकाशकः अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद
Nice story
Awesome Story.. 👍👍