क्या जहाँ सोच है, वहीं बन रहे हैं शौचालय!

जहां सोंच है वही शौचालय
जहां सोंच है वही शौचालय

अनुज हनुमत-सचिन वन्दन । Navpravah.com

बुन्देलखण्ड – चित्रकूट

विश्व शौचालय दिवस है इसलिए शौचालय की चर्चा होना लाजिमी भी है । स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत शौचालय निर्माण की योजना ने देश मे बुलेट ट्रेन की रफ्तार पकड़ रखी है । अगर जनता ने सरकार पर पुनः विश्वास जताया तो बुलेट ट्रेन की रफ्तार भी आम लोगो को देखने को मिलेगी । लेकिन क्या सच मे बुलेट की रफ्तार देश के विकास की मौजूदा रफ्तार से मेल बैठा पायेगी । फिलहाल शौचालयों के निर्माण में तो ये होता असम्भव दिख रहा है । देश की मौजूदा मोदी सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से से एक है हर घर शौचालय योजना । इनके निर्माण की स्पीड भी काफी तेज है , कई राज्यो ने तो रैंकिंग भी बना रखी है । अब उत्तर प्रदेश को ही देख लीजिए तो इसकी रैंकिंग भी अव्वल दर्जे की बनी है ।

 स्वच्छ भारत मिशन

स्वच्छ भारत मिशन

बहरहाल कुछ भी लेकिन जिस स्पीड से पूरे देश मे शौचालय निर्माण हो रहा है उससे इतना तो स्पस्ट है कि सरकार, जनता को ये आवश्यक व्यवस्था देना नही बल्कि उस पर लादना चाहती है।  जिस सोंच की बात करते हुए कहा गया था कि ‘जहां सोंच है वही शौचालय है’ – फिलहाल ये लाइने दम तोड़ती नजर आ रही हैं । शायद इसलिए क्योंकि इस योजना में स्थानीय अधिकारी तक स्कीम को तय समयसीमा तक पूर्ण कराने को लेकर जबरदस्त दबाव है। अगर यही पैसा और दबाव गरीबो और शोषित तबके की शिक्षा पर खर्च किये जाते तो शायद शौचालय अपने आप बन जाते ।

आज विश्व शौचालय दिवस के मौके पर बुन्देलखण्ड के पाठा क्षेत्र का रिएल्टी चेक –

भृस्टाचार की भेंट चढ़ रहा शौचालय निर्माण – 
इस योजना की सबसे सुखद बात ये है कि ग्रामीण अंचलों में घर घर तक ये योजना तेजी से पहुंच रही है । लेकिन शायद यही तेजी शौचालय निर्माण में भृस्टाचार को जन्म दे रही है। अप्रत्यक्ष रूप से अधिकांश स्थानों पर प्रधानों और सचिवों द्वारा ही शौचालय निर्माण कराया जा रहा है जिस कारण खराब क्वालिटी का मसाला प्रयोग किया जा रहा है । शासन से लेकर जिलाप्रशासन और ब्लाक तक इस योजना को तय समयसीमा तक पूर्ण कराने हेतु सिर्फ तेजी के दिखावे के साथ दबाव ही नजर आ रहा है । यही दबाव निर्माण कार्य मे भृस्टाचार को जन्म दे रहा है ।

पानी की जद्दोजहद के बीच ‘शौचालय’

जी हाँ एक तरफ शौचालय निर्माण को लेकर प्रशासन तेजी से लगा है और अधिकांश गांवो में निर्माण प्रक्रिया अपने आखिरी चरण में है । लेकिन बुन्देलखण्ड जो कि सूखे के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है यहां शौचालय निर्माण होने के बाद लोग सिर्फ इसलिए प्रयोग नहीं कर रहे हैं क्योंकि पानी की समस्या है ।

फिलहाल शौचालयों के निर्माण
फिलहाल शौचालयों के निर्माण

इस समस्या के कारण सबसे ज्यादा दिक्कत पाठा क्षेत्र में हो रही है । यहां मारकुंडी , अमचूर नेरुआ , इटवां , डोडामाफी , ददरी , रुकमा ,रानीपुर ,कशेरुआ जैसे क्षेत्रों में पानी की समस्या के कारण शौचालय बनने के बाद भी अधिकांश ग्रामीण बाहर ही शौच के लिए जाते हैं । तकरीबन सैकड़ो गांव पानी की समस्या के कारण प्रभावित हैं। अशिक्षा के कारण खुले में शौच जाने के लिए अभिशप्त ग्रामीण

बाहर ही शौच के लिए जाते हैं
बाहर ही शौच के लिए जाते हैं

किसी भी योजना का आम लोग तभी फायदा उठा सकते हैं जब वह शिक्षित हों । शायद यही कारण है कि खुले में शौच जाने को लेकर ज्यादातर लोग सही मानते हैं ।जबकि ऐसा नही है । सरकार को यही तेजी और दबाव लोगो की शिक्षा की गुणवत्ता पर लगाना चाहिए था ।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र वैसे भी शिक्षा की दृष्टि से काफी पीछे है और इसका पाठा क्षेत्र तो काफी पीछे है । यहां रहने वाले आधे से ज्यादा आदिवासी जाति के लोग बड़ी मुश्किल से ही हाईस्कूल तक पढ़ने गए होंगे । ऐसे में जिस योजना का (शौचालय) का जागरूकता से सीधा ताल्लुक हो उसमे अशिक्षित लोगो के समूह से आप किंतनी आशा कर सकते हैं । शायद यही विडम्बना है कि सरकार को जिस क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता पर धन और बल खर्च करना चाहिए वहीं पूरा सरकारी सिस्टम शौचालय और आवास निर्माण में लगा है।

प्रधानमंत्री की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में एक स्वच्छ भारत मिशन के तहत युद्धस्तर पर गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा रहा लेकिन अनुपयोगी शौचालय, आंकड़ों की बाजीगरी और घोटाले कुछ और कहानी कह रहे हैं।

ओडीएफ के बावजूद खुले मे क्यों…..

स्वच्छ भारत मिशन बड़ी संख्या में गांवों को ओडीएफ घोषित करने के बावजूद खुले में शौच की आदत बरकरार है क्योंकि शौचालय तो बनवा दिए गये लेकिन शौचालय के महत्व के बारे मे नहीं बताया गया।

ओडीएफ की जल्दबाजी……

ओडीएफ की अनिवार्य शर्त शौचालय का इस्तेमाल है. यानी जब तक किसी गांव के सभी घरों के सभी सदस्य शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते, तब तक उस गांव को ओडीएफ घोषित नहीं किया जा सकता। लेकिन जल्दबाजी के चक्कर मे शौचमुक्त गांव का दिखावा किया जा रहा है।गावों को ओडीएफ घोषित करने मे जबरदस्त तेजी है।ओडीएफ घोषित करने के तौर-तरीकों पर सवालिया निशान लग रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.