इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल, ‘अगर मौत का सम्मान स्वीकार, तो मौत की प्रक्रिया का सम्मान क्यों नहीं?

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शिखा पाण्डेय|Navpravah.com

वर्ष 2014 से सुप्रीम कोर्ट में इच्छामृत्यु के मामले में दायर एक याचिका पर केंद्र सरकार ने कोर्ट में कड़ा विरोध किया है। केंद्र सरकार का मानना है कि अगर इच्छा मृत्यु को मान्यता दे दी जाती है तो कई मामलों में उसका दुरूपयोग किया जा सकता है। हालांकि याचिका पर सुनवाई के दौरान  सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर मौत के सम्मान को स्वीकार किया गया है तो मौत की प्रक्रिया के सम्मान को स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है? संविधान बेंच ने पूछा कि क्या किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ आर्टिफिशियल लाइफ सिस्टम के जरिये जिंदा रखा जा सकता है?

जानिए याचिका से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें-

-फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट में ‘ कॉमन कॉज़’ नामक एक एनजीओ द्वारा याचिका दायर की गई थी कि गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्ति, जो कि डॉक्टर्स के मुताबिक अब कभी ठीक नहीं हो सकता, उसके लिए पैसिव यूथेनेशिया अर्थात इच्छामृत्यु या दया मृत्यु को मंज़ूरी दी जाए।

-एनजीओ ने अपनी इस याचिका में ‘गरिमा के साथ मरने का अधिकार’ ‘यानी राइट टू डाय विथ डिग्निटी’ देने की दलील दी है।

-एनजीओ ने याचिका में कहा है कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत, जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है उसी तरह उसे मरने का भी अधिकार है।

-एक्टिव और पैसिव यूथेनेशिया में अंतर ये होता है कि एक्टिव में मरीज की मृत्यु के लिए कुछ किया जाए जबकि पैसिव यूथेनेशिया में मरीज की जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया जाए।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच ने ज्ञान कौर बनाम पंजाब सरकार के मामले में कहा था कि इच्छा-मृत्यु और खुदकुशी, दोनों भारत में गैरकानूनी हैं और इसी के साथ दो जजों की बेंच के पी रत्नम बनाम केंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया था। कोर्ट ने कहा था कि संविधान की धारा 21 के तहत जीने के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शॉनबाग बनाम केंद्र सरकार के मामले में कहा कि कोर्ट की कड़ी निगरानी में असाधारण परिस्थितियों में पैसिव यूथेनेशिया  यानि इच्छा मृत्यु दी जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 5 जजों की संवैधानिक बेंच कर रही है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में इसकी सुनवाई हो रही है। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भवन शामिल हैं। इस मामले की सुनवाई बुधवार को भी होगी।

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