सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
समाजवादी पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव के हाथों में जाने के बाद शिवपाल यादव के लिए यह पहला चुनाव होगा, जब उनकी कोई भूमिका नहीं होगी। वे महज एक प्रत्याशी के तौर पर मैदान में खड़े हैं।
अक्टूबर 1992 के बाद जब समाजवादी पार्टी अस्तित्व में आई, शिवपाल यादव ने मुलायम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, हर चुनाव में अहम भूमिका निभाई। इतना ही नहीं सभी चुनावों में टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक की अहम जिम्मेदारी शिवपाल के ही पास रही।
आज 25 साल बाद समाजवादी पार्टी में एक युग का अंत हो चुका है। अखिलेश यादव की नए ‘नेताजी’ के रूप में ताजपोशी हो गई है और मुलायम पार्टी में महज संरक्षक की भूमिका में है। मुलायम अपने राजनीतिक जीवन में सफलता का श्रेय हमेशा शिवपाल को देते रहे हैं। वे अक्सर कहते रहें हैं कि कैसे शिवपाल ने उनके लिए लाठियां खाईं, मुकदमे झेले और जेल गए। यही वजह है कि मुलायम की सरकार में वे अहम पदों पर रहे। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नेता विपक्ष तक का पद उनके पास रहा, अखिलेश सरकार में भी चार साल तक वे मजबूत मंत्री थे, लेकिन अखिलेश यादव से बढ़ी तल्खी के बाद अब वे पूरी तरह से किनारे लगा दिए गए हैं।
निर्वाचन आयोग की ओर से साइकिल चिन्ह अखिलेश को देने के बाद शिवपाल के समर्थकों ने भी अब उनसे दूरी बना ली है। उनके समर्थकों को डर है कि शिवपाल से नजदीकियां आने वाले दिनों में उनके राजनैतिक भविष्य को खतरे में डाल सकता है। शिवपाल की गतिविधियां उनके अपने आवास, मुलायम आवास और अपने विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर तक सिमट कर रह गई है।
अखिलेश यादव की ओर से स्टार प्रचारकों की सूची में शिवपाल यादव शामिल नहीं है, जहां पिछले सभी चुनावों में मुलायम के साथ शिवपाल की चुनाव प्रचार के लिए बड़ी डिमांड रहती थी, वहीं इस बार उन्हें कोई पूछ नहीं रहा है।