आनंद रूप द्विवेदी,
“यही प्रसिद्ध लौहपुरुष प्रबल,
यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,
हिला इसे सका कभी न शत्रु दल,
पटेल पर स्वदेश को गुमान है।”
– हरिवंश राय बच्चन (1950)
15 अगस्त 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान का अलगाव, मजहबी कट्टरता का राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा बनना और मोहम्मद अली ज़िन्ना की कुटिल कोशिशें, इन सब के बीच अखण्ड भारत के स्वप्न को कोई जी रहा था तो वो थे “लौह पुरुष सरदार वल्लभ झवेर भाई पटेल”। ये हमारी खुशकिस्मती ही थी जो सरदार पटेल जैसे महापुरुषों ने भारत में जन्म लिया। गुजरात के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे सरदार पटेल लंदन गए, बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की और वापस अहमदाबाद में वकालत करने लगे।
महात्मा गांधी के आदर्शों-विचारों से प्रभावित सरदार पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूदे, तो गुजरात के खेड़ा में सूखे की मार झेल रहे गरीब किसानों पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारी कर लगाए जाने के विरोध में संघर्ष शुरू कर दिया, नतीजन हुकूमत को झुकना पड़ा। इसे सरदार पटेल की पहली बड़ी सफलता के रूप में देखा जाता है।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में 1928 के बारडोली सत्याग्रह का अहम स्थान है। गुजरात का यह किसान आन्दोलन ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर 30 प्रतिशत कर वृद्धि के खिलाफ था, जिसकी अगुवाई वल्लभभाई पटेल कर रहे थे। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को कुचलने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वल्लभभाई पटेल किसी अडिग चट्टान से डटे रहे और विवश होकर अंग्रेजों ने कर घटा लिया। इस आन्दोलन की सफलता ने वल्लभभाई की ख्याति पर चार चाँद लगा दिए तो बारडोली कि स्थानीय महिलाओं ने उन्हें “सरदार” कि उपाधि दे दी। वल्लभभाई अब सरदार वल्लभभाई पटेल हो चुके थे, जिन्हें महात्मा गांधी भी सरदार कहकर ही बुलाते थे।
देश कि आजादी के बाद जब प्रधानमंत्रित्व की बात आई तो सरदार ने गांधी जी की व्यक्तिगत भावनाओं की कद्र करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरु के विरुद्ध स्वयं का नाम वापस ले लिया ! उन्हें देश का गृह मंत्री व उप प्रधानमन्त्री बना दिया गया ! ये समय था जब भारत के बरसों से सोये हुए रियासतों के राजा और नवाब गण जो कभी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चूं से चां तक नहीं कर पाए, वो अपना शाही रौब झाड़ने लगे। सभी को पहले की तरह अपनी रियासतों पर हुकूमत कि स्वतंत्रता चाहिए थी। ऐसे में सरदार पटेल की प्राथमिकता थी कि वो बिना किसी सैन्य संघर्ष या रक्तपात के रियासतों का विलय भारत में करवा लें। बाकी देसी रियासतों ने भारत में विलय करना स्वीकार कर लिया, तो केवल तीन को ये नागवार गुजरा जिसमें जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद, और जूनागढ़ रियासतें शामिल थीं। हैदराबाद के निजाम नहीं माने तो सरदार पटेल ने ऑपरेशन पोलो के तहत सेना भेजी और हैदराबाद का विलय हुआ। जोधपुर के राजा हनुवंत सिंह को जिन्ना ने पाकिस्तान में शामिल हो जाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिए। बात जब सरदार पटेल तक पहुंची, तो वे आनन फानन में जोधपुर पहुंचे। हनुवंत सिंह उग्र स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने रौब झाड़ने क लिए सरदार पटेल के सामने टेबल में अपनी पिस्तौल निकालकर रख दी। सरदार पटेल के काफ़ी समझाने पर जब हनुवंत सिंह ताव में आ गये तो सरदार पटेल वही पिस्तौल राजा जोधपुर हनुवंत सिंह कि खोपड़ी पर तान कर बोले, “राजस्थान में विलय में हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा।” हनुवंत सिंह के पास विलय पत्र में हस्ताक्षर करने के सिवा कोई और चारा न था।
सरदार वल्लभभाई पटेल के हौसले के सामने समस्त राजा-महाराजा-नवाब-निजामों के हौसले पस्त पड़ते गये, लेकिन पंडित नेहरू ने कश्मीर मामले में सरदार की एक न चलने दी। नेहरु ने इसे अंतर्राष्ट्रीय मसला करार देते हुए सरदार के अखण्ड भारत के रथ पर रोक लगा दी। मशहूर राजनीतिज्ञ एच.वी. कामत के अनुसार पटेल कहते थे कि, “यदि नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृह मंत्रालय से अलग न करते तो हैदराबाद की तरह इस मुद्दे को भी आसानी से देशहित में सुलझा लेते।”
आज जिसे हम भारत माता मानते हैं, उसकी शक्ल-ओ-सूरत वैसी न होती जैसी हम मानचित्र में देखते हैं। ये सब सरदार पटेल के अद्भुत सूझबूझ और साहसिक निर्णयों- प्रयासों का परिणाम है, जिन्होंने 562 छोटी-बड़ी रियासतों को एक भारत संघ में विलीन करके एक भारत का निर्माण किया। ऐसा विश्व के इतिहास में कभी न हुआ! आज हम सभी सरदार पटेल के महान जन्मदिवस के रूप में “एकता दिवस” मनाकर एक भारत के निर्माता को शत-शत नमन करते हैं।
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