सौम्या केसरवानी । Navpravah.com
मध्य प्रदेश के नीमच जिले के एक गांव से प्राइमरी स्कूल के नाम पर जो तस्वीरें सामने आई हैं, वो हैरान करने वाली हैं। यहां स्कूल की बिल्डिंग नहीं होने की वजह से शौचालय ही बच्चों ही पाठशाला बन गया है। देश को आजादी मिलने के सात दशक बाद भी एक स्कूल की ऐसी तस्वीरें तमाम शिक्षा व्यवस्था पर तमाचा है।
नीमच जिले की मनासा तहसील के मोकलपुरा गांव में प्राइमरी स्कूल की स्थापना कागजात में तो साल 2012 में ही हो गई, लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी यहां बच्चों के पढ़ने के लिए एक कमरा तक नहीं बन सका। स्कूल में पहली से चौथी कक्षा तक के कुल 17 बच्चे पढ़ते हैं, इन सभी को पढ़ाने के लिए स्कूल में एक ही शिक्षक कैलाश चंद्र राठौर हैं। साल भर राठौर खुले में बच्चों को पेड़ के नीचे पढ़ाकर काम चला लेते हैं, लेकिन बारिश के दिनों में ऐसा करना संभव नहीं हो पाता।
शिक्षक राठौर अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए उनकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा ना आए। बारिश के दिनों में बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए भी समाधान उन्होंने ढूंढ निकाला, गांव में सरकारी बिल्डिंग के नाम पर एक टॉयलेट का निर्माण हो रखा है, लेकिन यह टॉयलेट जिस मूल उद्देश्य के लिए बनाया गया था, उसके लिए कभी शुरू नहीं हो सका, ऐसे में इस टॉयलेट का ही बच्चों की पाठशाला के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा।
राठौर का कहना है कि बारिश के दिनों में खुले में बच्चों को पढ़ाना खतरे से खाली नहीं है, एक तो बच्चों के बीमार होने का खतरा रहता है, वहीं सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीवों के काटने की भी आशंका होती है।
वहीं, गांव वाले राठौर की तारीफ करते नहीं थकते, उनका कहना है कि राठौर बच्चों की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं करते। कैसे भी हालात हों, वो बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूर आते हैं। इस मामले में मनासा की एसडीएम वंदना मेहरा से बात की गई, तो उन्होंने बेबाकी से स्वीकार किया कि गांव में स्कूल की बिल्डिंग ना होने की वजह से टॉयलेट में ही बच्चों को पढ़ना पढ़ रहा है, हालांकि उन्होंने यह भी साथ जोड़ा कि टॉयलेट के लिए जो निर्माण हुआ उसका कभी टॉयलेट की तरह इस्तेमाल नहीं हुआ। एसडीएम ने कहा कि वहां 20 से कम बच्चे हैं, जिन्हें पास के स्कूल में शिफ्ट करने के आदेश दिए गए हैं।