मोदी सरकार की मुश्किलें, पीएम के ‘डेवेलपमेन्ट’ के दावे की खुली पोल!

अनुज हनुमत

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के सामने डब्ल्यूजेपी की ताजा रिपोर्ट एक और मुश्किल खड़ी कर सकती है। डब्ल्यूजेपी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, कानून के शासन मामलें में 0.51 स्कोर के साथ भारत इस बार 66वें पायदान पर है।

गौरतलब हो कि अमेरिकी शोध संगठन वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (डब्ल्यूजेपी) ने अपने रूल ऑफ इंडेक्स-2016 में दुनिया के 113 देशों की आठ कारकों के आधार पर रैंकिंग की है। पहले पायदान पर 0.89 रैंकिंग के साथ डेनमार्क देश है। इनमें प्रत्येक कारक के आधार पर भी देशों की रैंकिंग हुई है। अधिकांश कारकों में भारत, चीन और पाकिस्तान से आगे है। वहीं सबसे ख़राब कानून का शासन वेनेजुएला में है। यदि पिछले वर्ष की बात करें तो 102 देशों की लिस्ट में भारत 59वें पायदान पर था। भारत के लिए राहत की बात यह कि रैंकिंग में वह चीन और पाकिस्तान से आगे है। चीन और पाकिस्तान की रैंकिंग क्रमशः 80 और 106 है। वहीं दक्षिण एशिया क्षेत्र की रैंकिंग में भारत दूसरे स्थान पर है।

रैंकिंग के आधार -आठ कारक

1. कानून के दायरे में सरकार
2. भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी महकमे
3. सरकार की पारदर्शिता
4. मूलाधिकारों की रक्षा
5. नागरिक सुरक्षा
6. सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन
7. नागरिक न्याय प्रणाली
8. आपराधिक न्याय प्रणाली

आपको बता दें कि डब्ल्यूजेपी का गठन वर्ष 2006 में हुआ था। यह इसका छठा रूल ऑफ लॉ इंडेक्स (कानून का संशोधन सूचकांक) है। यह संगठन विश्व में बेहतर कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए काम करता है।

सबसे अहम बात यह है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ कानून का अहम योगदान है। लेकिन जब से भारत स्वतन्त्र हुआ है, तब से हालत जस की तस है। अभी भी एक गरीब व्यक्ति थाने में जाने से घबराता है। जहाँ पर उसे न्यायिक सुरक्षा का अनुभव होना चाहिए वहां असुरक्षा महसूस होती है। केंद्र की मोदी सरकार के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती है कि वह कानून के शासन को भलीभांति लागू करें, जिसमे प्रत्येक राज्यों को भी केंद्र का साथ देना चाहिए।

खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब और मध्य प्रदेश की सरकारों को जहाँ कानून की स्थिति बहुत खराब है। सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति तो यूपी और बिहार की है, जहाँ दिनदहाड़े कहीं भी कभी कानून की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं। ये आंकड़ें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जारी होते हैं, इसलिए भारत का पायदान ठीक ठाक नजर आता है। लेकिन अगर यही आंकड़े केवल भारत के लिए पेश किये जाये तो तस्वीर और भी भयावह देखने को मिल सकती है।

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