हेल्थ डेस्क. बिहार के मुजफ्फरपुर में पिछले साल इंसेफेलाइटिस के कारण बड़ी संख्या में मासूम बच्चों की मौत हुई थी। उस समय लीची को इंसेफलाइटिस फैलने की वजह बताया गया था। अब सामने आया है कि जो बच्चे इंसेफलाइटिस प्रभावित हुए हैं, उनमें आधे बच्चों ने लीची खाई ही नहीं थी। बाकी बच्चों में से ज्यादातर दो साल से कम उम्र के थे। वे लीची नहीं खा ही नहीं सकते थे। इस अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि लीची इंसेफलाइटिस फैलने का कारण नहीं है। इसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने आगे की जांच के आदेश दिए हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि काउंसिल अप्रैल-मई माह में एक अध्ययन भी लांच करेगी। उन्होंने बताया कि अब तक भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की ज्यादातर जांचों में लीची के कारण मौत की संभावना को खारिज कर दिया गया है। इसलिए वजह का पता लगाने के लिए आगे की जांच कर (बीमारी को) रोकना जरूरी हो गया है।
उल्लेखनीय है कि जून 2019 में बिहार में इंसेफेलाइटिस से 125 से ज्यादा मौतें हो गई थीं। इस दौरान पूरे राज्य में 550 ज्यादा मामले सामने आए थे। राज्य सरकार ने इंसेफलाइटि फैलने की वजह हीट वेव और लीची में मौजूद तत्व को जिम्मेदारी ठहराया था, जबकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने कुपोषण और खराब व्यवस्थाओं को रोग फैसने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। केंद्र सरकार ने आईसीएमआर, एनसीडीसी, एनआईएन और अटलांट के सीडीसीपी की टीमों को मुजफ्फरपुर भेजकर कारण पता लगाने का काम सौंपा था। शुरुआती रिपोर्ट्स में पता चला कि इसके पीछे किसी वायरस, बैक्टीरिया, फंगस या जीवाणु से संक्रमण कारण नहीं था।
विशेषज्ञों के अनुसार लीची में एक खास तत्व होता है जो अगर खाली पेट बहुत सारी लीची खाई जाए तो खून में शुगर के लेवल को कम कर सकता है, लेकिन इसके साथ दूसरे फैक्टर्स होना भी जरूरी है। आधिकारिक डेटा के मुताबिक बिहार सरकार जिले में बच्चों के पोषण और हेल्थकेयर को लेकर लापरवाह रही है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 के मुताबिक मुजफ्फरपुर में करीब 48 फीसदी बच्चों का 5 साल की उम्र के बाद बढ़ना रुक जाता है। 17.5 फीसदी ज्यादा पतले होते हैं, जबकि 42 फीसदी का वजन कम होता है। ये सब कुपोषण के चिह्न हैं।