सौम्या केसरवानी । Navpravah.com
बहुमत के साथ सत्ता में आई बीजेपी ने सत्ता के सौ दिन पूरे कर लिये, इस मौके पर सरकार ने पिछले साल के मुकाबले अपराध के ग्राफ में गिरावट का दावा किया, इन दावों पर दम भरते हुए योगी सरकार पूरे जोश में नजर आई, लेकिन सूबे की पुलिस की ओर से जारी किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार के इन दावों की हकीकत कुछ और ही नजर आती है।
सरकार ने दावा किया कि योगीराज के इन सौ दिनों में हत्या में 4.43 फीसदी, दहेज हत्या में 6.68 फीसदी, सड़क पर अपराध में 100 फीसदी की गिरावट आई है। लेकिन योगी सरकार लूट, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण और रेप जैसे अपराधों के ग्राफ पर रोशनी डालना भूल गयी।
यूपी पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, 15 मार्च से 15 जून तक इन तीन महीनों में डकैती के मामले 13.85 फीसदी, लूट 20.46 फीसदी, फिरौती के लिए किए गए अपहरण 44.44 फीसदी और बलात्कार के मामलों में 40.83 फीसदी का इजाफा हुआ है।
राज्य में हुई हत्याओं के गिरते ग्राफ पर जरूर योगी सरकार के आंकड़े यूपी पुलिस के साथ मेल खा रहे हैं। लेकिन बाकी अपराधों पर चुप्पी साध लेना शायद सरकार की कार्यक्षमता पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।
यही नहीं योगी सरकार सहारनपुर में जातीय संघर्ष भी रोकने में नाकाम रही, सहारनपुर हिंसा पर यूपी सरकार की रिपोर्ट में कानून व्यवस्था की नाकामी के लिये डीएम और एसएसपी के बीच तालमेल की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया। सहारनपुर में बेखौफ भीड़ ने एसएसपी के घर पर ही हमला कर दिया था। भीम आर्मी के चंद्रशेखर को पकड़ने के लिये यूपी पुलिस का चप्पे-चप्पे को तलाशना यूपी पुलिस की बेबसी का उदाहरण बनी।
कहीं भीड़तंत्र हावी है तो कहीं योगी सरकार के लिये गौरक्षक और हिंदू युवा वाहिनी चुनौती बन रहे हैं, जिनसे निपटने में पुलिस प्रशासन के हाथ-पांव फूल जाते हैं। बीच में कुछ उन पोस्टरों से भी बवाल हुआ जिसमें ये लिखा था कि यूपी में रहना है तो ‘योगी योगी कहना है’, पोस्टरों की जांच की जा रही है।
ये तपिश बीजेपी की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है, हालांकि योगी आदित्यनाथ कट्टर हिंदू छवि के बावजूद सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों की समस्या सुनकर दिल जीतने का काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उस सेना पर भी लगाम कसनी होगी जो बेकाबू होने पर पूरे सरकार के लिये सिरदर्द बन सकती है।