डॉ. मोनिका जौहरी | Navpravah.com
आप घर से कहीं बाहर जा रही हैं ? एक मर्तबा घड़ी देख लें, यदि शाम के सात से ज्यादा वक्त हो चुका है, तो बाहर जाना अगले दिन पर टाल दें। अगली सुबह जब घर से निकलें, तो आइने के सामने खुद को भली-भांति देख लें ! जांच लें, कहीं आप ने कोई भड़काऊ किस्म के कपड़े तो नहीं पहने हैं, कहीं आपने ज्यादा मेक-अप तो नहीं किया है, कहीं आप ने ज्यादा चुस्त या तंग कपड़े तो नहीं पहन रखे हैं !
यदि ऐसा कुछ पाएं, तो तुरन्त कोई सादा सलवार-कमीज पहनें, जिसमें आप पूरी तरह ढंकी हों। खुद को देखें और सुनिश्चित करें कि आप बिल्कुल साधारण दिख रहीं हो। आप जितनी साधारण और अनाकर्षक दिखेंगी, आपकी सुरक्षा के लिए बेहतर है। मुमकिन है आप इस पहलू से अनजान हों कि पुलिस और प्रशासन के कुछ नुमाइंदों का मानना है कि आपके भड़काऊ कपड़ों से झलकती ‘सेक्सुएलिटी’ आपको किसी मनचले की हवस का शिकार बना सकती है।
अब सोच लीजिए, आपकी इज्जत की हिफाजत आपके हाथों में हैं। कितना भी जरूरी काम-काज हो, आप रात गहराने से पहले घर लौट आएं। यदि घर आने के लिए किसी बस, टैक्सी या ऑटो में चढें, तो भीतर जांच ले कि कुछ संदेहास्पद तो नहीं है, आपको हर पल सतर्क रहना होगा। ऐसी घटना से बचने के लिए निजी वाहन का ही इस्तेमाल करें। दफ्तर के जरूरी कार्यों के अलावा किसी पुरुष से बातें करने से बचें, किसी भी स्थिति में पुरुष मित्र के साथ नहीं जाएं। सड़क पर कहीं पुरुषों का समूह दिखे, तो रास्ता बदल लें। नीची नजरें करके चलें। यदि सामने पुरुष दिखें, तो उनकी ओर नहीं देखें। कुछ वरिष्ठ और अनुभवी जनों का मत है कि पुरुष मित्रों से संपर्क बढ़ाना, उनके साथ बाहर जाना सुरक्षित नहीं है। ऐसे हालात में यदि आपके साथ कुछ दुर्घटना हो, तो उसके लिए आप स्वयं ही जिम्मेदार होंगी।
यदि आपकी उम्र 18 से अधिक है, तो आप यह सभी उपाय कर सकती हैं, लेकिन यदि आपके घर या पड़ौस में कोई किशोरी या बहुत छोटी ( 1 से 14 वर्ष ) लड़की है, तो उसे भी यह सब समझाने का प्रयास करें। अभी से उसे ढंक कर रखेंगी, तो वह आगामी कुछ वर्षों में यह सब भली-भांति जान पाएगी। जब तक वह बड़ी और ‘समझदार’ ना हो, उसकी इज्जत कभी भी खतरे में पड़ सकती है। आखिर एक बेटी को पालना बेहद मुश्किल जिम्मेदारी है, लेकिन अब दुर्भाग्यवश आपने एक बेटी के रूप में जन्म लिया है, तो अपनी सीमाओं में रहना आपको सीखना होगा। भूलें नहीं, आप एक भारतीय महिला हैं और मर्यादाओं का निर्वहन ही आपका धर्म है।
भारत संस्कारों, मर्यादाओं और सभ्यताओं की भूमि है, जहां महिलाओं को देवी तुल्य सम्मान दिया जाता है। बेटियों को बुजुर्गों के पैर स्पर्श नहीं करने दिया जाता। अब ऐसे संस्कारवान देश में यदि एक पुरुष किसी महिला का बलात्कार करे, तो दो ही स्थितियां संभावित हैं – या तो महिला ने पुरुष को उत्तेजित किया होगा या पुरुष मानसिक रूप से अस्थिर रहा होगा, अन्यथा भारतीय संस्कृति के गरिमामय परिवेश में पले-बढ़े पुरुष किसी महिला के साथ ऐसा अनाचार कैसे कर सकते हैं ?
आधुनिक युग में महिलाओं ने घर की दहलीज क्या लांघी, स्वयं को पुरुषों के बराबर आंकने लगीं। पुरुष सदैव महिला से बेहतर रहें हैं और रहेंगे, महिलाओं को यह समझ लेने की दरकार है। वे घर की चार-दीवारी में रहेंगी, पारिवारिक दायित्व निभाएगीं, तो पतिदेव कभी-कभार गुस्से में मार-पीट भले ही कर ले, लेकिन उनकी इज्जत पर किसी बाहरी पुरुष के हमला करने की आशंका बहुत कम ही रहेगी। और फिर एक भारतीय महिला की प्राथमिक जिम्मेदारी यही है कि उसका पति उस से खुश रहे, इसी में उसकी खुशी निहित है।
अब एक 23 वर्षीय छात्रा यदि एक पुरुष मित्र के साथ बाहर फिल्म देखने जाए और रात 9 बजे के बाद घर लौट रही हो, फिर घर पहुंचने के लिए किसी सार्वजनिक बस में सवार हो जाएं, यह तो स्वयं ही खतरे को आमंत्रित करने जैसा हुआ ना! फिर बस में पहले से बैठे छह पुरुष शराब के नशे में धुत हों, मस्ती और शरारत करने के मूड में हों, तो युवती को देख नियत बिगड़ना अस्वाभाविक कैसे कहा जा सकता है ?
उस पर बस चलाने वाले राम सिंह की दयनीय स्थिति पर नजर डालिए – उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है, एक हादसे में उसके दोनों हाथ टेढे हो चुके हैं, वह हीन भावना से ग्रस्त है। ऐसे में अपनी मर्दानगी साबित करने का मौका वह कैसे गंवाता ?
यूं भी अकेली महिला के साथ एक पुरुष हो (उसे भी मार-पीटकर बांध दिया गया हो) और सामने छह पुरुष हों, तो मर्दानगी दिखाने के मौके का भरपूर फायदा उठाने में कोई पीछे नहीं रहा होगा। यह एक साधारण घटना है, जिसे बेवजह ही तूल दिया जा रहा है। देश के किसी ना किसी हिस्से में रोज बलात्कार होते हैं, फिर इसी घटना पर इतना हंगामा क्यों ? हां, लड़की की स्थिति गंभीर है, उसकी पांच बार सर्जरी की जा चुकी है, 23 टांके लगे हैं, आंते निकालनी पड़ी हैं और वह जीवित भी रह पाए, संदेह है, लेकिन इससे अधिक कुछ नहीं है।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मार्कंडेय काटजू का भी यही तर्क है, कि देश में और भी बहस के मुद्दे बचे हैं, यह इकलौती गंभीर समस्या नहीं है। ग्रामीण भारत में इस तरह की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं, फिर दिल्ली में हुए एक हादसे को इतना तूल क्यों दे दिया गया ? अब तो समझ जाइए! यदि ऐसी दुर्घटनाओं से बचना चाहती हैं, तो अपनी सीमाओं को कदापि नहीं लांघें। राजधानी के हालिया मामले से तो आपके जेहन में यह बात पैठ गई होगी कि आखिर पुरुषों के सामने एक महिला की क्या बिसात है।
पुरुष जो चाहें, जैसा चाहें, महिला के साथ बर्ताव कर सकते हैं। आपकी भलाई इसी में है कि मौन रहें। यदि आप किसी छेड़छाड़, शारीरिक शोषण, हिंसा या बलात्कार की शिकार हुई हैं, तो भी चुप्पी बनाएं रखें। क्या मालूम, जिस पुलिस अधिकारी के पास आप रिपोर्ट दर्ज कराने जाएं, वहां दोबारा आपका बलात्कार हो जाए। कौन जाने, जिस डॉक्टर के पास आप मेडिकल जांच के लिए पहुंचे, वह भी आप पर टूट पड़े।
आप स्त्री हैं…याद रखिए, स्त्री और पृथ्वी को बहुत कुछ सहना पड़ता है। अपनी सहनशीलता बढ़ाइए, अपने दर्जे को जानिए और छोटी-छोटी बातों को तूल देना छोड़ दीजिए। यूं विरोध करना हम महिलाओं को शोभा नहीं देता। आप बचपन की सब सीख भूल गई हैं क्या? लज्जा ही स्त्री का सच्चा आभूषण है। अपने घूंघट में ही रहिए, इसी में आपकी बेहतरी है। इस सबक को भूलेंगी, तो तमाशबीनों के इस देश में कब आप खुद तमाशा बन जाएंगी, आपको भान भी नहीं होगा, इसलिए संभल कर रहिए, अपनी तथाकथित सीमाओं में.
(प्रस्तुत लेख डॉ. मोनिका जौहरी की फेसबुक वाल से साभार उधृत है. डॉ. जौहरी, लंदन में बतौर मनोवैज्ञानिक चिकित्सक कार्यरत हैं. फीचर्ड फोटो डॉ. जौहरी के इन्स्टाग्राम से साभार उद्धृत है.)