सौम्या केसरवानी
मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद केंद्रीय कर्मचारी की न्यूनतम बेसिक सैलरी 18 हजार रुपये हो जाएगी। उनके हाथ में करीब 20 हजार रुपये से ज्यादा ही आएंगे। जबकि यूपी में एक हेक्टेयर की जोत वाले किसान की औसत कमाई 1600 रुपये है, यानि केंद्र सरकार में चपरासी की कमाई किसान से करीब 13 गुना ज्यादा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की मंजूरी दे दी गई। अब क्लास वन अधिकारी का शुरुआती वेतन 56,100 रुपए होगा। कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, “छठे वेतन आयोग के हिसाब से जो वेतन था हमने उसे 2.57 गुना बढ़ाया है। सिफारिशें एक जनवरी 2016 से लागू होगी। इससे सरकार पर सालाना 1.02 लाख करोड़ रुपए का भार आएगा।”
बढ़ोत्तरी के बाद भी संतुष्ट नहीं केंद्रीय कर्मचारी-
बढ़ोतरी को नाकाफ़ी बताते हुए नाराज 52 लाख केंद्रीय कर्मचारी हड़ताल पर जाने की तैयारी में हैं। उधर, नाराजगी और मायूसी देश के करोड़ों किसानों में भी है, उत्तर प्रदेश में छोटी जोत का किसान महीने का औसतन 1611 रुपए ही कमा पाता है। इस हिसाब से केंद्रीय सरकार के चपरासी की सैलरी भी किसान की आय से करीब 13 गुना ज्यादा है।
लखनऊ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर उत्तर दिशा में बख्शी का तालाब तहसील के अकड़रिया कलां गाँव के किसान कन्हैया बताते हैं, “पिछले साल बारिश ने पकी फसल बर्बाद कर दी थी, इस बार सूखा मार गया। सिर्फ 10 कुंतल गेंहू हुआ है, जबकि होना कम से कम 20 चाहिए था।” वे बताते हैं कि 20-25 कुंतल गेहूं होते भी थे, लेकिन इधर दो सालों से सब बर्बाद हो रहा है।
कन्हैया बताते हैं, “एक एकड़ में जुताई, बीज, सिंचाई व कटाई तक करीब 12 हजार रुपये खर्च हुए। गेहूं का सरकारी मूल्य 1450 रुपये है, जबकि बाजार में 1300-1400 में बिक रहा है। अगर सरकारी रेट की भी बात करें तो 14,500 रुपये ही मिलेंगे। बचा क्या, वो आप खुद जोड़ लो।” कन्हैया स्वयं और उनकी पत्नी व बच्चे यानि तीन किसानों ने इस फसल पर मेहनत की थी। इस हिसाब से एक महीने की एक किसान सदस्य की कमाई महज़ 1611 रुपए बनती है। यानि एक गेहूं किसान की तीन महीने की कमाई करीब 1600 रुपए वहीं इन तीन महीनों में 150 रुपए की दिहाड़ी पर भी एक मजदूर की कमाई 13,500 रुपए आती है। किसान की कमाई से कई गुना ज्यादा। अगर एक चपरासी की 20,000 रुपए प्रति महीने की कमाई से तुलना करें, तो यह किसान की कमाई से 13 गुना ज्यादा है।
उद्योगपतियों की होकर रह गई है सरकार-
बांदा जिले के प्रगतिशील किसान और ह्यूमेन ह्मेन एग्रेयिशन सेंटर, (किसान विद्यापीठ) के संस्थापक प्रेम सिंह (57 वर्ष) कहते हैं, “दरअसल देश की सोच ही किसान विरोधी है। अंग्रेजों ने किसानों के लिए जो दृष्टिकोण बनाया वही अब तक है। सालाना बजट में किसानों का बड़ा योगदान होने के बावजूद उन्हें वो तवज्जो नहीं मिलती।”
अपनी तर्क को और सरल करते हुए वो बताते हैं, “देश की सरकारें हमेशा उद्योगपतियों और सर्विस सेक्टर के साथ खड़ी नजर आती हैं। सर्विस सेक्टर को अच्छी सैलरी के साथ त्यौहारी और बोनस मिलता है। कारोबारियों को जमीन, रजिस्ट्री और तमाम करों में छूट दी जाती है। लेकिन किसान को क्या मिलता है।” देश में 14 करोड़ से ज्यादा किसान हैं। जबकि 70 फीसदी से ज्यादा आबादी आज भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं।