श्रीहरिकोटा: आज लॉन्च होगा भारत का सबसे भारी सैटेलाइट जीएसएटी-19 , उल्टी गिनती शुरू

कोमल झा| Navpravah.com

देश के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3 के लॉन्च का काउंट डाउन शुरू हो चुका हैी।  ये अब तक का भारत का सबसे भारी रॉकेट हैी।  जो पूरी तरह देश में ही बना हैी।  इसमें देश में ही विकसित क्रायोजेनिक इंजन लगा हैी।  ये रॉकेट एक बड़े सैटेलाइट सिस्टम को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा. इस रॉकेट की कामयाबी से भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में भारत का रास्ता साफ़ हो जाएगाी।

इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (ISRO) आज (5 जून, 2017) जीएसएलवी मार्क-3 III, को आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से लांच करेगा। माना जा रहा है कि ये सबसे भारी लिफ्ट रॉकेट होगा जोकि मानव को भी अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम होगा। जीएसएलवी मार्क-3 III को शाम पांच बजे लांच किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार रॉकेट 3,136 किलोग्राम वजनी जीएसएटी-19 कम्युनिकेशन सैटेलाइट के साथ उड़ान भरेगा। जिसे पृथ्वी से 36,000 किलोमीटर की दूरी पर रखा जाएगा। रॉकेट करीब 15 साल के लिए विकसित किया गया है जिसके निर्माण में 300 करोड़ का खर्च आया है। वहीं वैज्ञानिकों ने इसे ‘राक्षस रॉकेट’ का नाम दिया है। रॉकेट में 4 टन तक के सैटेलाइट को लांच करने की क्षमता है। बता दें कि वर्तमान समय में भारत अगर 2.3 टन से अधिक वजन के सैटेलाइट लांच करता है तो इसके लिए विदेशी तकनीक की मदद लेनी पड़ेगी। लेकिन सबसे भारी रॉकेट को लांच करने के बाद भारत खुद के दम पर 2.3 टन से ज्यादा वजनी सैटेलाइट को लांच करने में सक्षम होगा।

जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान ही इतने रॉकेट लांच करने में कामयाबी हासिल कर पाए हैं। रॉकेट एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से चलता है जिसमें तरल ऑक्सीजन और तरल हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है। वहीं रॉकेट लांचिंग से भारत को अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने के उद्देश्य में बढ़ाया मिलेगा। रिपोर्ट के अनुसार इसरो ने अपने मिशन के तहत इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए केंद्र सरकार से 12,500 करोड़ रुपए की मांग की है। अगर सरकार इसे मंजूरी देती है तो इसरो द्वारा इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने में सात साल का समय लग सकता है। प्रीमियर स्पेस एजेंसी ने मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए पहले से ही महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं। अंतरिक्ष सूट का मॉडल पहले ही तैयार कर लिया गया है जबकि इसका टेस्ट साल 2014 में कर लिया गया है।

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