गोरखपुर दुर्घटना: क्यों नहीं है सरकार जिम्मेदार?

पीयूष चिलवाल|Navpravah.com

कोयला घोटाला, टू जी घोटाला, काॅमनवेल्थ घोटाला और इस तरह के तमाम घोटालों की रोज़-रोज़ की ख़बरों से भारत की जनता त्रस्त हो चुकी थी. ऐसे में उन्हें एक विकल्प चाहिए था और विकल्प के तौर पर उभरे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। देश का विकास गुजरात की तर्ज़ पर करने की बात कही और अच्छे दिनों का ख़्वाब भारत की जनता को दिखाया गया। लेकिन सत्ता में आने के कुछ ही दिनों के बाद सरकार में मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने यह बात स्पष्ट कर दी की अच्छे दिन की बात महज़ एक जुमला थी। भारत की भोली भाली जनता को इस बात का कहां अंदाज़ा था कि ये बात जुमला होगी। उन्होंने तो इसे हक़ीक़त मानते हुए भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ भारत की सत्ता पर काबिज़ होने का मौका दे दिया। जनता बेचारी क्या जाने राजनीति के दाव पेंच, उन्हें तो जो कहा जाता है उसी बात पर वो विश्वास कर लेते हैं और देखिये अब भी अपने शहर में गुजरात जैसा विकास चाहती है लेकिन वो गुजरात है कहां। शायद यूपी के गोरखपुर में।

यूपी के गोरखपुर के मडिकल काॅलेज में हुई मौतों के लिए सरकार जिम्मेदार क्यूं नहीं है? अगर यह सवाल हम सत्ता पर काबिज़ योगी सरकार से पूछें या केंद्र में बैठी मोदी सरकार से, वे यही कहेंगे की बच्चों की मौत जापानी बुखार की वजह से हुई और हमें सत्ता में आए हुए वक़्त ही कितना हुआ है जो हम कुछ बदलाव ला सकें। चलिए इस बात को भी छोड़ देते हैं हम मान भी ले की इस हादसे में सरकार का दोष नहीं ये मौतें महज एक बीमारी या कुछ और कारणों से हुई हो जिनमें हम आॅक्सीजन की कमी को कहीं भी कारण नहीं मान रहे हैं। तो आप सिर्फ इतना जवाब दे दीजिए सप्लाई रोकने वाली कंपनी के ठिकानों पर क्यूं छापेमारी की जा रही है। मेडिकल काॅलेज के प्रधानाचार्य को क्यूं इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है? उन्हें क्यूं निलंबित किया गया है? शायद बीमारयां प्रिंसिपल साहब की वजह से फैली होंगी। मेडिकल काॅलेज के प्रिंसिपल पर आप यह जिम्मेदारी डालकर बच नहीं सकते हैं। सवाल यह उठता है कि फरवरी में कंपनी ने अस्पताल को पहला नोटिस भेजा और मार्च में आपकी सरकार बनी और उसके बाद कंपनी पांच महीनों तक आपके आगे हाथ फैलाते रही, क्या अस्पताल प्रशासन ने एक बार भी शासन प्रशासन में ये मामला नहीं भेजा? क्या आप चाहते थे कि प्रिंसिपल अपने घर से आॅक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का भुगतान करें? अगर हम यह स्वीकार भी कर लें की यह महल प्रिंसिपल की लापरवाही है तो क्या ऐसे में सिर्फ उन्हें निलंबित कर देना काफी होगा? खैर आप तो इस बात को स्वीकार ही नहीं कर रहे कि बच्चों की मौत आॅक्सीजन न मिल पाने के कारण हुई।

केंद्र में भी आप ही की सरकार पिछले तीन सालों से है। हर साल इंसेफिलाइटिस के मामले आते हैं और अगस्त में हर साल होने वाली मौतों की संख्या में इज़ाफा हो जाता है। तो क्या केंद्र सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए? क्या आपके संज्ञान में यह मामला तब तक नहीं था? आप तो गोरखपुर से सांसद है तो इस बात से भली भांति वाकिफ़ होंगे। क्या भारत की चिकित्सा व्यवस्था इतनी खस्ताहाल है? क्या भारत के वैज्ञानिक इतने दुर्बल हैं कि इस बीमारी का कोई तोड़ नहीं निकाल पाए? फिलहाल भारत की चिकित्सा व्यवस्था पर तो पूरी दुनिया थूथू कर रही है।

क्या केंद्र सरकार के पांच साल पूरे होने तक इसमें कोई सुधार आएगा? ये सवाल हम आपसे  ही पूछ सकते हैं पिछली सरकार से नहीं। क्यूंकि आपको तभी चुना गया था जब उनसे उम्मीदें नहीं थी और अगर आप यह कहते हैं कि ये पिछली सरकार की कमियां हैं तो स्पष्ट कीजिए तीन साल में आप इस में परिवर्तन क्यूं नहीं ला पाए।

सवालों की लिस्ट बहुत लंबी है- स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा, किसान से लेकर मेहनतकश मजदूर, बेरोजगारी महंगाई सब जस की तस है। जैसा पिछली सरकारें छोड़ के गयी थी जो जवाब उनके थे बस आपने जवाबों को बदलकर उन पर जिम्मेदारी थोप दी है। भारत की जनता यदि किसी को सर पर बैठा सकती है तो उसे किसी को जमीन पर गिराने में भी वक़्त नहीं लगता। वो नोटबंदी झेल कर भी आपको राजसिंहासन पर पहुंचा सकती है तो अपने बच्चों की मौत के बाद उस सिंहासन से गिराना भी। अभी दो साल का वक़्त और है आपकी सरकार के पास, अब यह आप पर निर्भर करता है आपको इतिहास बनना है या बनाना है।

(यह लेख, लेखक के व्यक्तिगत स्वतंत्र विचार हैं।)

1 COMMENT

  1. बहुत ज़रूरी और उम्दा लेख है। “आपको इतिहास बनना है या बनाना है?” योगी सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण सवाल।

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