अनुज हनुमत,
संगम नगरी इलाहाबाद में 12 और 13 को भाजपा की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक होगी, जिसमे पूरे देश से तमाम बड़े भाजपा नेताओं का जमावड़ा लगेगा और सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी भी शिरकत करेंगे। इस बाबत पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया जा चुका है, जिसमें हजारो करोड़ रूपये फूंके जा चुके हैं। शहर के सारे होटल बुक हो चुके हैं। लाखो-करोड़ों के पोस्टर भी नेताओं ने लगा रखे हैं।
भाजपा की इस राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में आगामी चुनावों के लिए पार्टी नई रणनीति तय करेगी। लेकिन उन सूखे की मार झेल रहे किसानों का क्या होगा, जिन्हें प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से आस है। बुन्देलखण्ड का सूखा इलाका इलाहाबाद से महज 100 किमी की दूरी से शुरू हो जाता है, ऐसे में जब किसानों को ये पता चल रहा है कि भाजपा अपने इस कार्यक्रम में हजारों करोड़ रूपये फूंक रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें शिरकत करने आ रहे हैं, तो उनमे इस बात को लेकर निराशा के साथ साथ गुस्सा भी पनप रहा है कि आखिर इतना बड़ा आयोजन और उसमें खर्च किया जा रहा है बेफिजूल धन कहाँ तक जायज है ?
प्रदेश की अखिलेश सरकार से तो किसानों को अब कोई आस नही बची है, वैसे भी उत्तर प्रदेश के दो तिहाई से भी ज्यादा जिले सूखे की मार झेल रहे हैं। ऐसे में बीजेपी द्वारा इतना बड़ा आयोजन इस सूखे से बदहाल प्रदेश में नही करना चाहिए था ! पार्टी जिस आगामी यूपी के किले को फतह करना चाहती है, उसके मुख्य केंद्रबिंदु में किसान ही है, पर ये भी एक सच्चाई है की उसकी सुध भी पार्टी नही लेना चाहती। लगातार सूखे और कर्ज से किसान आत्महत्या कर रहे हैं और अभी तक भाजपा की तरफ से कोई भी बड़ा नेता बुन्देलखण्ड नही पहुंचा। किसानों को सबसे ज्यादा आस प्रधानमंत्री जी से थी कि वो तो जरूर बुन्देलखण्ड आएंगे, पर उन्होंने अभी तक सुध नहीं ली। इलाहाबाद की धरती पर नरेंद्र मोदी दो दिन रहेंगे और इधर महज कुछ दूरी पर बुन्देलखण्ड का किसान शायद इन्तजार ही करता रह जायेगा ।
🏼पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से बुंदेलखंड के किसान आत्महत्या और सर्वाधिक जल संकट से जूझ रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 (करीब चार हजार) किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सूखे की भीषण मार झेल रही बुन्देलखण्ड की बंजर धरती के किसान इस बार भी पहले सूखे और फिर हाड़तोड़ मेहनत के बाद तैयार फसल पर ओलों की बारिश से आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।
🏼पिछले 2 महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो, जब गांव से निकलती खबर में किसी किसान के आत्महत्या का मामला न आया हो। लाशों पर आंदोलन और सियासत का माहौल गर्म है, मगर उन गांव का हाल जस का तस है, जहां सन्नाटे को चीरती किसान परिवारों की चींखे सिसकियों के साथ हमदर्दी जताने वालों की होड़ में बार बार शर्मसार होती है। सूखे का आलम इतना विकराल है कि अब यहां के किसान उसी छाते का प्रयोग अपने दो वक्त की रोजी रोटी के लिए कर रहे हैं, जिसका प्रयोग प्रायः लोग पानी बरसने पर अपनी शरीर ढंकने के लिए करते हैं।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र तीस लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। इनमें से 24 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य है परन्तु इनमें से मात्र चार लाख हेक्टेयर भूमि की ही सिंचाई हो पा रही है, क्योंकि इस इलाके में खेती के विकास के लिए सिंचाई की ऐसी योजनायें नहीं बनाई गई, जिनका प्रबंधन कम खर्च में समाज और गाँव के स्तर पर ही किया जा सके। बड़े-बड़े बांधों की योजनाओं से 30 हज़ार हेक्टेयर उपजाऊ जमीन बेकार हो गई, ऊँची लागत के कारण खर्चे बढे, और तो और ये बाँध कभी भी दावों के मुताबिक परिणाम नहीं दे पाए। मध्यप्रदेश भारत की परिभाषा का हिस्सा है, जहाँ 5 वर्ष में एक बार साधारण सूखा पड़ना स्वाभाविक है, परन्तु वास्तविकता यह है कि बुंदेलखंड में पिछले 9 वर्षों र्में 8 बार गंभीर सूखा पड़ा है।
🏼बुंदेलखंड में जंगल, जमीन पर घांस, गहरी जड़ें ना होने की कारण तेज गति से गिरने वाले पानी बीहड़ पैदा कर रहा है। हम सब को पता है कि चम्बल के इलाके में बीहड़ों में लाखों एकड़ जमीन को बर्बाद कर कई सामाजिक और आर्थिक समस्याएं पैदा की हैं, जिनसे हम निपट नहीं पा रहे हैं। वर्तमान परिस्थितियों में नदी और जल स्रोतों की सीमाओं से सटे क्षेत्रों में बीहड़ बढ़ता है। पिछले 20 वर्षों में यहां खूब भू-क्षरण हुआ है। बुंदेलखंड में छतरपुर के आस-पास और केन-धसान नदी के बीच 1.05 लाख एकड़ के क्षेत्र में जमीन बीहड़ का रूप लेती जा रही है। पन्ना जिले में 50000 एकड़ जमीन बीहड़ हो रही है, टीकमगढ़ में 12000 एकड़ में बीहड़ जम रहा है। दतिया में 70000 एकड़ और दमोह में 62000 एकड़ जमीन बीहड़ों की चपेट में आती दिख रही है। ऐसा लग रहा है कि बीहड़ का यह विस्तार बुंदेलखंड को चंबल की घाटियों से जोड देगा। तब बुंदेलखंड, सरकार के लिये विकास का नही कानून-व्यवस्था का मसला होगा। बुंदेलखंड के इस बीहड़ीकरण के कारण 471 गांव के सामने अस्तित्व का खतरा खड़ा हो गया है।
🏼उत्तर प्रदेश के हिस्से वालें बुन्देलखण्ड के जिलों में बांदा से 7 लाख 37 हजार 920 ,चित्रकूट से 3 लाख 44 हजार 801,महोबा से 2 लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से 4 लाख 17 हजार 489 ,उरई (जालौन) से 5 लाख 38 हजार 147, झांसी से 5 लाख 58 हजार 377 व् ललितपुर से 3 लाख 81 हजार 316 और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले जनपदों में टीकमगढ़ से 5 लाख 89 हजार 371 ,छतरपुर से 7 लाख 66 हजार 809,सागर से 8 लाख 49 हजार 148 ,दतिया से 2 लाख 901,पन्ना से 2 लाख 56 हजार 270 और दतिया से 2 लाख 70 हजार 277 किसान और कामगार आर्थिक तंगी की वजह से महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं।