जन्मदिवस विशेष: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्होंने सपनों के सही मायने से रूबरू कराया

अनुज हनुमत,

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से विख्यात डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम हमारे बीच नहीं हैं। वे अक्सर कहा करते थे, “सपने वे नहीं जो हम सोते समय देखते हैं, सपने तो वो हैं, जो हमें सोने नहीं देते।” जी हाँ, उन्होंने इस कथन को अपने कठिन व अनुशाषित जीवन शैली के माध्यम से बखूबी समझाया। कलाम साहब जैसा व्यक्तित्व निःसंदेह अब इस धरा पर वापस नहीं लौटने वाला, लेकिन उनका कार्य उन्हें हमेशा जीवित रखेगा। देश की संप्रभुता और अखण्डता को आगे भविष्य के लिये अटल बनाने वाले कलाम का आज जन्मदिन है, जिसे पूरा देश हर्षोल्लास के साथ मना रहा है।

डॉ कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम था। उन्हें सभी डॉक्टर ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम कहते थे। उनके व्यक्तित्व की सबसे खास बात ये है कि उन्हें मिसाइल मैन और ‘जनता के राष्ट्रपति’ के नाम से भी जाना जाता है। कलाम भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे और वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात थे।

इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को बखूबी संभाला। साथ ही भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास सम्बंधी प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है ।

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डॉ. कलाम ने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई ।

सन् 2002 ई. में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ कलाम भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये। सबसे खास बात यह है कि कलाम सर पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो अविवाहित थे।

जब एक वैज्ञानिक बना राष्ट्रपति-

वो तो राजनीति का शुभ संयोग व सौभाग्य ही था कि डॉ. कलाम का नाम राष्ट्रपति पद के लिए उभरा। भाजपा, कभी वाजपेयी तो कभी विपक्ष के धड़ों में ना-नुकुर, जब कलाम का नाम बतौर कंसेंसस कैंडीडेट आया तो भी वामपंथी माने नहीं और कैप्टन लक्ष्मी सहगल जैसे धुरंधर नाम को आगे कर दिया, लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। सारा विपक्ष कलाम सर के साथ हो गया और कलाम एक बड़े अंतर से जीत गए। जीतने के बाद जब कलाम सर से प्रमोद महाजन ने उन्हें पूछा कि आप कौन से शुभ मुहूर्त में शपथ लेना चाहेंगे, तब डॉ कलाम ने कहा कि जब तक सौरमण्डल में पृथ्वी अपने कक्ष में विद्यमान है और सूरज के इर्द-गिर्द अपने पथ पर गतिमान है, हर घड़ी शुभ है। इससे पहले महाजन को वह आकाशगंगा की पवित्रता का माहात्म्य बतलाते, महाजन निकल पड़े, उनके लिए हर वक्त व्यस्त था।

अमर ‘कलाम’ –

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कलाम साहब का दुनिया से चले जाना देश के लिये एक बहुत बड़ी क्षति है। खैर उनकी मौत ने जहां हमें दुखी किया, वहीं उनका जीवन हमारे लिये किसी मार्गदर्शन से कम नहीं रहा। डा. कलाम को विमानों से खास लगाव था, उनके वैज्ञानिक बनने के पीछे की प्रेरणा भी एक विमान ही थी। बचपन से ही पायलट बनने की शौक रखने वाले कलाम सर महज कुछ अंकों के कारण परीक्षा क्वालीफाई नही कर पाये, लेकिन कहते हैं कि जिस चीज को आप शिद्दत से चाहते हैं वो आपको जरूर नसीब होती है और ये हुआ जून, 2006 को जब तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने 30 मिनट के लिए लड़ाकू वायुयान सुखोई-30 एमकेआई को उड़ाया था, तो उन्‍हें देखने वालों की निगाहें बर्बश आसमान में ठिठक गई थीं। शायद दुनिया ने पहली बार भारत के राष्‍ट्रपति और मिसाइल मैन के हाथों में विमान की स्‍टीयरिंग देखी थी। उस समय उनके साथ सहयोगी पायलट विंग कमांडर अजय राठौर थे।

इसलिए याद आयेंगे डॉ. कलाम-

कलाम 84 साल के सबसे युवा भारतीय थे। मृत्यु से कुछ क्षण पहले तक उनमें वैसा ही जोश और उत्साह था, जैसा आप युवाओं में देखते है। उनकी मृत्यु स्वाभाविक तौर पर ऐसे समय हुई, जब वे अपने सबसे प्रिय विषय में युवाओं को संबोधित कर रह थे।

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